लखनऊ। उत्तर प्रदेश में इस बार नवम्बर की शुरुआत होने के बाद भी गर्मी अपना असर दिखा रही है, ऐसे में गेंहूं की फसल का उत्पादन कम होने की आशंका जताई जा रही है। आईए जानते हैं कि वैज्ञानिक इस बारे में क्या कहते हैं।
कानपुर में अक्तूबर महीने का आखिरी सप्ताह और नवंबर का पहला सप्ताह गेहूं की बुआई के लिए सबसे मुफीद मौसम माना जाता है, लेकिन जलवायु परिवर्तन की वजह से मौसम की नमी गायब होती जा रही है। इस वर्ष इसमें बड़ा अंतर आ गया है। चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के मौसम विभाग के अनुसार इस बार इन दिनों में औसत तापमान सामान्य से 10 डिग्री सेल्सियस अधिक हो गया है।
इसका असर गेहूं की पैदावार पर पड़ सकता है। मौसम विभाग प्रमुख डॉ. एसएन पांडेय के अनुसार रबी की फसलों विशेषकर गेहूं की बुआई और उसके बेहतर उत्पादन के लिए सबसे अच्छा मौसम तब माना जाता है जब औसत तापमान 18 से 22 डिग्री के बीच होता है। इस बार यह मौसम 28 से 30 डिग्री सेल्सियस के बीच चल रहा है। फिलहाल इसमें अभी कमी आने की संभावना कम दिख रही है।
डॉ. पांडेय के अनुसार ऐसी स्थिति में यदि गेहूं की बुआई की जाती है, तो वह पूरी तरह से अंकुरित नहीं होगा। इससे उत्पादन पर असर पड़ेगा। गेहूं के अलावा मोटे अनाज पर भी इस मौसम का असर पड़ने की आशंका है। मोटे अनाज वाली फसलें भी इसी मौसम में बोई जाती है।
विभाग की ओर से किसानों को सतर्क किया गया है कि गेहूं की बुआई के लिए खेतों में नमी बनाकर रखें। इससे बीज के अंकुरित होने में अधिक समय न लगे। प्रदेश के 12 प्रमुख गेहूं उत्पादक जिलों में कानपुर, इटावा, फर्रुखाबाद और फतेहपुर भी शामिल है।
मौसम और कृषि विशेषज्ञ डॉ. एसएन पांडेय ने बताया कि जलवायु परिवर्तन का असर कानपुर-बुंदेलखंड क्षेत्र में भी दिख रहा है। बताया कि पिछले वर्ष अक्तूबर के आखिरी सप्ताह में तापमान का औसत करीब दो डिग्री सेल्सियस ज्यादा है। इसके अलावा गोरखपुर, मेरठ, बुलंदशहर, सहारनपुर, आगरा, अलीगढ़, मुजफ्फरनगर, मुरादाबाद भी गेहूं के मुख्य उत्पादक हैं।