मेरठ। मेरठ-हापुड़ लोकसभा सीट पर भाजपा और सपा में सीधी टक्कर नजर आई। चुनाव में मुद्दे हवा रहे, जातिगत समीकरण हावी रहे। मुस्लिमों का सपा की तरफ रुझान नजर आया, जबकि बाकी में बंटवारा दिखा। खासकर बसपा के वोट बैंक में सपा प्रत्याशी सुनाती वर्मा सेंध लगाती नजर आईं। पूरी टक्कर आमने-सामने की होने से बसपा प्रत्याशी देवव्रत त्यागी मुकाबले से लगभग बाहर दिखे, जबकि अन्य छोटे दलों के प्रत्याशियों का न तो बस्ता नजर आया न ही रुझान। इस लोकसभा में तीनों प्रमुख प्रत्याशियों समेत कुल आठ प्रत्याशी हैं। भाजपा प्रत्याशी को प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के नाम सहारा मिला तो सपा प्रत्याशी एससी-मुस्लिम गठजोड़ का सहारे हैं।
मतदाताओं में बसपा प्रत्याशी का शुरू से ही ज्यादा रुझान नजर नहीं आया। पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की 23 अप्रैल को हुई रैली और पूर्व कैबिनेट मंत्री हाजी याकूब की अपील का भी मतदान में ज्यादा असर नहीं दिखा। मेरठ-हापुड़ लोकसभा सीट में पांच विधानसभा (शहर, दक्षिण, कैंट, किठौर और हापुड़) हैं। इन सभी में मुस्लिमों ने साइकिल चलाई, दलितों में सपा और बसपा में बंटवारा नजर आया। कुछ दलित साइकिल तो कुछ हाथी की सवारी करते नजर आए। कई क्षेत्रों में शुरू में दलित हाथी की सवारी करते तो दिखे, लेकिन जैसे-जैसे दिन चढ़ा उनका रुझान साइकिल की तरफ नजर आया।
हालांकि शहर के मुकाबले देहात में एससी वोटर का रुझान बसपा की तरफ भी काफी रहा। मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में मतदान केंद्रों पर लंबी-लंबी कतारें उनके मतदान प्रतिशत बढ़ने की तरफ इशारा कर रही हैं।
किठौर में विधानसभा क्षेत्र पर सपा और भाजपा में बराबर में टक्कर नजर आ रही है। किठौर में सपा और खरखौदा में भाजपा आगे नजर आई। गांवों में मिलाजुला असर रहा। शहर विधानसभा क्षेत्र मुस्लिम बहुल होने के कारण खूब साइकिल दौड़ी।
मतदान भी जमकर किया। इनके मुकाबले यहां के हिंदू बहुल क्षेत्रों में मतदान केंद्रों पर कम भीड़ और कम कतारों से उनका मतदान प्रतिशत कम होने के संकेत मिल रहे हैं। मेरठ दक्षिण विधासनभा क्षेत्र में दलितों में विभाजन होने से बराबर की टक्कर देखने को मिली। कैंट विधानसभा क्षेत्र में पहले की तरह कमल खिला। भाजपा की साफ बढ़त नजर आई। हालांकि यहां सपा पिछली लोकसभा और विधानसभा चुनावों के मुकाबले पहले से मजबूत नजर आई।
इस बार के चुनाव में पिछली दोनों लोकसभा चुनाव के इतर मतदान नजर आया। लोकसभा चुनाव 2014 में मोदी लहर के बीच मुजफ्फरनगर दंगे के ताजा घावों में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण नजर आया था, जबकि 2019 में भी प्रत्याशियों की नजर इसी ध्रुवीकरण पर रही थी। 2019 में बसपा-सपा-रालोद का गठबंधन था, जिसके प्रत्याशी हाजी याकूब कुरैशी ने एससी-मुस्लिम गठजोड़ के सहारे भाजपा प्रत्याशी राजेंद्र अग्रवाल को कड़ी टक्कर दी थी। हालांकि शहर से देहात तक ध्रुवीकरण की हवा चलने से राजेंद्र अग्रवाल कम अंतर से जीत गए थे।
इस बार भी भाजपा का परंपरागत वोट वैश्य, गुर्जर, जाट, ब्राह्मण, सैनी, कश्यप, प्रजापति, पाल, वाल्मीकि भाजपा के साथ खड़ा दिखाई दिया है। हालांकि त्यागी समाज के वोटों में बंटवारा हुआ है। नतीजे तो 4 जून को आएंगे, लेकिन समीकरण बता रहे हैं कि भाजपा और सपा में कड़ी टक्कर है।