लखनऊ| विधानसभा और विधान परिषद में 2020-21 में हुई भर्तियों की सीबीआई जांच हुई तो कई बड़े चेहरे बेनकाब होंगे। विधानसभा और विधान परिषद में न केवल रिक्त पदों से अधिक पदों पर भर्तियां की गई बल्कि नौकरी की रेवड़ी नेताओं और अधिकारियों के रिश्तेदारों को बांटी गई।
तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष हृदयनारायण दीक्षित के कार्यकाल में 95 पदों पर भर्ती की गई थी। इनमें समीक्षा अधिकारी के 20 सहायक समीक्षा अधिकारी के 23, एपीएस के 22, अनुसेवक के 12, रिपोर्टर के 13 और सुरक्षा गार्ड के 5 पदों पर भर्ती हुई। विधान परिषद के तत्कालीन सभापति रमेश यादव के कार्यकाल में विभिन्न श्रेणी के 100 पदों पर भर्तियां की गई।
विधान परिषद में हुई भर्तियों को लेकर उच्च न्यायालय में दाखिल याचिका में अविधिक और अनियमित तरीके से भर्ती करने का आरोप लगाया गया है। साथ ही भर्ती में भाई भतीजावाद और पक्षपात का आरोप है। याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया है कि विधान परिषद प्रमुख सचिव राजेश सिंह के बेटे अरवेंदु शेखर प्रताप सिंह, विधानसभा के प्रमुख सचिव के भतीजे शलभ दुबे, पुनीत दुबे को समीक्षा अधिकारी के पद पर नियुक्ति दी गई। वहीं सरकार में विशेष कार्याधिकारी रहे एक सेवानिवृत्त अधिकारी के बेटे को भी समीक्षा अधिकारी के पद नियुक्त कर उपकृत किया गया।
विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष हृदयनारायण दीक्षित के निजी सहायक रहे पंकज मिश्रा की ओएसडी के पद पर हुई नियुक्ति पर भी सवाल खड़े किए गए हैं। विधानसभा के एक ओएसडी के भाई को भी प्रतीक्षा सूची के जरिये समीक्षा अधिकारी बनाया गया। शासन और विधानसभा सचिवालय में कार्यरत अधिकारियों के रिश्तेदारों को भी सहायक समीक्षा अधिकारी और समीक्षा अधिकारी बनाया गया है। विभिन्न पदों पर करीब 26 कार्मिकों की नियुक्ति संदेह के दायरे में हैं। इनकी सूची अमर उजाला की वेबसाइट पर पढ़ी जा सकती है।
सर्वोच्च न्यायालय ने बीते दिनों एक याचिका पर सुनवाई करते हुए उत्तर प्रदेश में विधानसभा और विधान परिषद में होने वाली भर्तियां अब उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग या अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के जरिये ही कराने के निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने विधानसभा और विधान परिषद के स्तर से होने वाली भर्तियों पर रोक लगाई थी।
विधानसभा की अधिष्ठान शाखा के एक अधिकारी से जब भर्ती को लेकर बात की गई तो उन्होंने कहा कि सीबीआई के सामने चिल्ला चिल्लाकर बताएंगे कि भर्ती कैसे हुई।
विधानसभा और विधान परिषद में हुई भर्तियों की सीबीआई जांच के आदेश के बाद दोनों सदनों के दफ्तरों में बुधवार को हलचल मची रही। उस दौरान भर्ती हुए कार्मिकों की नौकरी पर तलवार लटक सकती है।