हर रोज अलीगढ़ के श्री अचलेश्वर महादेव मंदिर में स्थापित शिवलिंग 24 घंटे में दो बार रंग बदलता है। कभी काला, तो कभी गेरूआ रंग में शिवलिंग नजर आता है। शिवलिंग को जब जमीन में से निकालने के लिए खुदाई हुई, तो एक मजदूर का फावड़ा शिवलिंग पर लग गया। जिससे शिवलिंग में से पहले खून की धारा निकली और फिर दूध की। श्री अचलेश्वर महादेव मंदिर अलीगढ़ का सबसे प्रमुख और प्रसिद्ध पर्यटन स्थल हैं, जहां आकर महादेव बाबा से जो मांगा जाता है, वो मिलता है।
श्री अचलेश्वर महादेव मंदिर के पुजारी राजू गोस्वामी ने बताया कि मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है। लगभग 5000 साल पहले की बात है, सिधिया परिवार की महारानी को सपना आया कि अलीगढ़ में अचल सरोवर के पास एक शिवलिंग जमीन में दबा हुआ है, उसे निकाल कर स्थापित किया जाए। वहां की खुदाई के लिए मजदूर लग गए। एक मजदूर का फावड़ा खुदाई के दौरान एक शिवलिंग से टकराया और उसमें से खून की धारा निकलने लगी। यह देखकर सभी घबरा गए। उसके बाद उसमें से दूध की धारा निकली।
उस शिवलिंग को जमीन से निकाला गया और पूरे विधिविधान से स्थापित किया गया। अचल सरोवर के निकट होने से जहां यह शिवलिंग विराजमान है, उसे श्री अचलेश्वर महादेव मंदिर के रूप में मान्यता मिली। महारानी ने इस मंदिर को शुक्ला परिवार को सोंपा और उन्होंने इसे अचल गिरि महंत को सोंपा। अब अचल गिरि के वंशज इसकी पूजा-अर्चना की जिम्मेदारी निभा रहे हैं।
श्री अचलेश्वर महादेव मंदिर के पुजारी राजू गोस्वामी ने बताया कि मंदिर में स्थापित शिवलिंग हर रोज 24 घंटे में दो बार रंग बदलता है। कभी शिवलिंग काला, तो कभी गेरूआ रंग में नजर आता है। शिवलिंग की जलहरी की भी विशेष मान्यता है। गर्मी में अगर बारिश न हो रही हो, तो जलहरी को पानी से भरने पर जल्द से जल्द बारिश हो जाती है। यहां पर श्रद्धालु जो भी मांगते हैं, वो वे पाते हैं। मनोकामना पूरी होने पर भक्त मंदिर की जलहरी को जल और दूध से भरते हैं।
इतिहासकारों के अनुसार महाभारत काल में अज्ञातवास के समय नकुल और सहदेव ने अचल सरोवर में आकर स्नान किया था। उसके बाद उन्होंने श्री अचलेश्वर महादेव मंदिर में शिवलिंग की पूजा-अर्चना की थी। बताया जाता है कि प्राचीन समय में अचलसरोवर में बने गोमुखों से हरदुआगंज स्थित बरौठा गंग नहर से गंगा जल आता था। इस जल से भगवान शिव का जलाभिषेक किया जाता था और श्रद्धालु सरोवर में स्नान करते थे। जैसे-जैसे साल गुजरे श्री अचलेश्वर महादेव मंदिर के कारण अचल सरोवर के पास मंदिरों को संख्या बढ़ने लगी। वर्तमान में अचल सरोवर के आस-पास 100 से अधिक छोटे-बड़े मंदिर हैं, जहां देवी-देवता विराजमान हैं।
श्री अचलेश्वर महादेव मंदिर में सावन हो कोई भी महिना, सबुह हो या रात श्रद्धालु पूजा-अर्चना में मग्न देखे जा सकते हैं। वैसे मंदिर प्रात: 4 बजे खुलता है और रात 11 बजकर 30 मिनट पर बंद हो जाता है। पर श्रद्धालु देर रात तक पूजा करते दिख जाएंगे। मंदिर मे सुबह 5 बजे और शाम 7 बजे अचलेश्वर महादेव की आरती की जाती है। मुख्य मंदिर के साथ-साथ यहां राधा-कृष्ण मंदिर, लक्ष्मी मंदिर और गंगा मंदिर में आरती की जाती है।
श्री अचलेश्वर महादेव मंदिर पर प्राचीन समय से ही मेलों को आयोजन होता रहा है। वर्तमान में यहां शिवरात्रि, तीज, राखी, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर मेला लगता है। महाशिवरात्रि पर श्री अचलेश्वर महादेव मंदिर में कांवड़िया जलाभिषेक के लिए लाखों की संख्या में आते हैं। मंदिर के अंदर से जीटी रोड तक लंबी कतारें लग जाती हैं।
श्री अचलेश्वर महादेव मंदिर के संचालन के लिए एक नहीं दो-दो समिति हैं। एक है अचलेश्वर महासभा, जिसके अध्यक्ष पंकज सर्राफ हैं, तो दूसरी है अचलेश्वर सेवा समिति, जिसके अध्यक्ष मनोज वार्ष्णेय हैं। दो-दो समिति के रहते हुए भी मंदिर के पुजारी, सेवादार व उनके परिवार के रहने के लिए समुचित जगह नहीं है। मंदिर पुजारी ने दो समितियों के रहते हुए मंदिर के संचालन पर असंतोष जताया। पुजारिन विमला गोस्वामी ने बताया कि दो-दो समिति हैं, पर काम की कोई नहीं है। दोनों में मंदिर के पुजारी और सेवादारों को जगह नहीं दी गई।