लखनऊ. मानहानि मामले में गुजरात की एक अदालत से दो साल की सजा सुनाए जाने के बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता चली गई। कांग्रेस इस मामले को लेकर कानूनी लड़ाई की तैयारी कर रही है। वहीं विपक्ष के कई नेताओं ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए बीजेपी सरकार पर विपक्ष की आवाज को दबाने की साजिश का आरोप लगाया है। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव भी उनमें से एक हैं। अखिलेश ने राहुल की सदस्यता समाप्ति को असली मुद्दों से ध्यान हटाने की बीजेपी की कोशिश करार देते हुए अब कांग्रेस को उसकी जिम्मेदारी याद दिलाने की कोशिश की है। एक सवाल के जवाब में अखिलेश ने कहा कि मैं इतना बड़ा नेता नहीं हूं कि मुलाकात करके कोई सलाह दे सकूं। सिर्फ इतना कह सकता हूं कि अब यह कांग्रेस पार्टी की जिम्मेदारी बनती है क्षेत्रीय पार्टियों को आगे करें और उनके साथ खड़े हो जिससे भाजपा का मुकाबला किया जा सके। उन्होंने कहा कि बीजेपी के सीनियर नेता से लेकर स्थानीय नेता तक कह रहे हैं कि पिछड़ों का अपमान हो गया। कोई बताए कि यदि हमारे हटने के बाद जब मुख्यमंत्री आवास को गंगा जल से धोया गया तो पिछड़ों का अपमान नहीं हुआ? अखिलेश ने कहा कि बीजेपी नेताओं के भाषण सुन लीजिए। इन पर तो मानहानि के ज्यादा केस बनने चाहिए।
दरअसल, अखिलेश यादव 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए तीसरे मोर्चे के गठन को लेकर कवायद में बड़ी शिद्दत से जुटे हैं। वह 2024 में समाजवादी पार्टी के लिए बड़ी भूमिका की सम्भावनाएं तलाश रहे हैं। इसी उद्देश्य से उन्होंने पिछले दिनों वह तेलंगाना के सीएम के चंद्रशेखर राव और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ मुलाकातें करते नज़र आए। पिछले दिनों कोलकाता में समाजवादी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के बहाने उन्होंने तीसरे मोर्चे की रणनीति को आगे बढ़ाया। इसके साथ ही यह भी साफ कर दिया था कि इस मोर्चे में कांग्रेस के होने की गुंजाइश बहुत कम है। अखिलेश ने रायबरेली और अमेठी की सीटों पर इस बार कांग्रेस को वॉकओवर न देने पर भी विचार करने की बात कही। अखिलेश ने कहा था कि सपा, इन सीटों पर कांग्रेस के खिलाफ अपने उम्मीदवार नहीं खड़ा करती लेकिन सपा नेताओं-कार्यकर्ताओं का उत्पीड़न होता है तो कांग्रेस का कोई नेता खड़ा नहीं होता इसीलिए इस बार विचार-विमर्श के बाद ही इन दो सीटों पर उम्मीदवार खड़े करने या नहीं करने पर निर्णय लिया जाएगा।
राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता जाने के बाद अब तक गैर भाजपाई, गैर कांग्रेसी तीसरे मोर्चे की बात कर रहे विपक्ष के दिग्गज नेताओं के भी सुर बदल गए हैं। राहुल के बहाने विपक्ष को बीजेपी सरकार की घेराबंदी का बड़ा मौका मिल गया है। शुक्रवार को इसका फैसला होने के बाद से ही दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से लेकर झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन तक ने इस लड़ाई में सबके साथ आने की अपील की। इन स्थितियों में एक बार फिर सबसे बड़ा सवाल यही उठ रहा है कि क्या यह विपक्षी एकता की यह पहल कामयाब हो पाएगी? क्या सभी क्षेत्रीय दल इससे सहमत हो सकते हैं? इस सवाल की वजह यह है कि अब तक क्षेत्रीय दलों का एक वर्ग बिना कांग्रेस के किसी विपक्षी मोर्चे की पहल से सहमत नहीं है। उद्धव ठाकरे, एम के स्टालिन, नीतीश कुमार और शरद पवार जैसे नेता कई बार कह चुके हैं कि बिना कांग्रेस के मोर्चा संभव नहीं है।
तीसरे मोर्चे के लिए सबसे सक्रिय केसीआर, ममता बनर्जी और अखिलेश यादव रहे हैं। इन्हें अरविंद केजरीवाल का भी परोक्ष समर्थन मिलता रहा है। केसीआर इस सिलसिले में विपक्ष के तमाम नेताओं से मुलाकात कर चुके हैं। अब अखिलेश यादव ने कांग्रेस को क्षेत्रीय दलों के साथ खड़े होने की सलाह देकर नए संकेत दिए हैं। अखिलेश ने कहा है कि कांग्रेस पार्टी की जिम्मेदारी बनती है क्षेत्रीय पार्टियों को आगे करें और उनके साथ खड़े हो जिससे भाजपा का मुकाबला किया जा सके। उन्होंने यह भी कहा कि अब भाजपा के नेता कह रहे हैं कि पिछड़ों का अपमान हो गया। भाजपा के लोगों ने जब मुख्यमंत्री आवास को गंगाजल से धौया तब अपमान नहीं हुआ था?
बता दें कि शुक्रवार को इस मुद्दे पर अपनी प्रतिक्रिया में अखिलेश यादव ने कहा था बीजेपी जबसे सत्ता में आई है तबसे विपक्षी नेताओं की आवाज को दबाने का प्रयास कर रही है। उन्होंने आजम खान और अब्दुल्ला आजीम का उदाहरण देते हुए कहा था कि आज कांग्रेस के सबसे बड़े नेता की सदस्यता गई है लेकिन बीजेपी सपा के विधायकों की सदस्यता खत्म करने की साजिश को पहले ही अंजाम दे चुकी है।