नई दिल्ली : पाकिस्तान के विदेश मंत्री इसहाक़ डार ने पिछले दिनों ब्रिटेन में एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस के दौरान भारत के साथ व्यापारिक संबंधों की बहाली का संकेत दिया.
इसे भारत और पाकिस्तान दोनों के कारोबारी वर्ग ने सकारात्मक पहल कहा है.
उन्होंने प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कहा कि पाकिस्तान पड़ोसी देश भारत के साथ व्यापारिक संबंधों की बहाली के लिए गंभीरता से विचार कर रहा है. दोनों देशों के बीच साढ़े चार साल से अधिक समय से व्यापार ठप है.
पाकिस्तानी विदेश मंत्री की ओर से यह बयान ऐसे समय सामने आया है, जब पाकिस्तान में आठ फ़रवरी के आम चुनाव के बाद बनने वाली नई सरकार को एक महीना भी नहीं हुआ है. दूसरी और भारत में अगले महीने के अंत में चुनाव का पहला चरण आयोजित होने जा रहा है.
भारत और पाकिस्तान के बीच व्यापारिक संबंध उस समय ख़त्म हो गए थे, जब पाँच अगस्त 2019 को मोदी सरकार ने जम्मू और कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म कर दिया था.
कश्मीर के विवाद के कारण दोनों देशों के कूटनीतिक और व्यापारिक संबंध प्रभावित होते रहे हैं.
ध्यान रहे कि फ़रवरी 2019 में जम्मू और कश्मीर में पुलवामा हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के लिए मोस्ट फ़ेवरेट नेशन का दर्जा भी वापस ले लिया था.
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अनुच्छेद 370 की समाप्ति वह अकेली घटना नहीं है, जिससे दोनों देशों के बीच व्यापार ठप हुआ हो.
आर्थिक विशेषज्ञ डॉक्टर इकराम-उल हक़ ने कहते हैं कि पहले भी दोनों देशों के बीच आपसी व्यापार राजनीतिक और कूटनीतिक विवादों का शिकार हुआ है.
उन्होंने सन 2009 के मुंबई हमले और सन 1999 में कारगिल युद्ध की बात की. हालांकि इसके बाद भी अलग-अलग समय में व्यापारिक संबंध बहाल होते रहे हैं.
सन 2019 से पहले पाकिस्तान भारत से कपास, केमिकल्स, प्लास्टिक, मशीनरी और आम उपकरण मंगवा रहा था. दूसरी ओर भारत पाकिस्तान से फल, खनिज, सोडा ऐश, नमक समेत दूसरे सामान मंगवा रहा था.
पाकिस्तान इंस्टीट्यूट ऑफ़ डिवेलपमेंट इकनॉमिक्स में अर्थव्यवस्था की सीनियर रिसर्चर डॉक्टर उज़्मा ज़िया की राय है कि राजनीतिक विवादों से पैदा होने वाले व्यापारिक संकट से निपटने में दोनों देशों ने बहुत कम दिलचस्पी दिखाई है.
इस समय भी यही स्थिति है कि दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंध ख़त्म हैं.
पाकिस्तान ने भारत को अफ़ग़ानिस्तान से मिलने वाले सामान के लिए रास्ता दे रखा है लेकिन भारत से अफ़ग़ानिस्तान के लिए सुविधा नहीं है.
व्यापारिक मामलों के विशेषज्ञ इक़बाल ताबिश ने बताया कि दुनिया में पड़ोसी देशों के बीच सबसे अधिक व्यापार की संभावना होती है क्योंकि यह व्यापार सस्ता होता है और इससे दोनों देशों को फ़ायदा होता है.
लेकिन भारत और पाकिस्तान के बीच विवादों ने ऐसा होने नहीं दिया जबकि चीन के साथ विवादों के बावजूद भारत और चीन के बीच 100 अरब डॉलर का आपसी व्यापार होता है. यही स्थिति चीन और वियतनाम के बीच की है.
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हालांकि इसहाक़ डार का कहना है कि पाकिस्तानी व्यापारी भारत के साथ व्यापार के इच्छुक हैं लेकिन इसके बावजूद इसमें कई चुनौतियां हैं.
विदेशी व्यापार मामलों के विशेषज्ञ डॉक्टर अय्यूब मेहर ने बताया कि इस व्यापार को सबसे बड़ी राजनीतिक चुनौती का सामना है क्योंकि इसके लिए राजनीतिक संकल्प की ज़रूरत है जो फ़िलहाल दोनों देशों में कम है.
डॉक्टर इकराम-उल हक़ के अनुसार, व्यापार की बहाली में रुकावटें दोनों देशों में पाई जाती हैं.
उनकी राय है कि पाकिस्तान और भारत के औद्योगिक क्षेत्र को बहुत सारा ‘प्रोटक्शनिज़्म’ यानी सरकारी संरक्षण मिला हुआ है. इससे किसी दूसरे देश में सामान बेचना मुश्किल होता है.
वो कहते हैं, ”पाकिस्तान की इंडस्ट्री समझती है कि उसे भारतीय सामान से ख़तरे हो सकते हैं, इसलिए वहाँ से आयात होने वाले सामान पर बहुत अधिक टैरिफ़ यानी टैक्स और ड्यूटी लगी होती है.”
फ़ेडरेशन ऑफ़ पाकिस्तान चैंबर ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के सीनियर वाइस प्रेजिडेंट साक़िब फ़ैयाज़ ने कहा कि भारत की ओर से पाकिस्तानी सामान पर बहुत अधिक नॉन-टैरिफ़ बैरियर्स लगे हुए हैं
वो कहते हैं, ”इसकी वजह से पाकिस्तानी सामान को भी भारतीय मंडियों तक ले जाना मुश्किल होता है और उन्हें वहां बेचना एक बड़ी चुनौती होती है.”
नॉन-टैरिफ़ बैरियर्स में ग़ैर ज़रूरी लाइसेंसिंग, कस्टम क्लीयरेंस की ज़रूरतें, सख़्त वीज़ा पॉलिसी और सीमा पर क्लीयरेंस के लिए लगने वाला लंबा समय आदि शामिल हैं.
इक़बाल ताबिश ने इस बारे में कहा कि दोनों देशों के बीच सबसे बड़ी समस्या आर्थिक मामलों को राजनीतिक दृष्टि से देखना है.
उन्होंने कहा कि इसका सबसे बड़ा उदाहरण मोस्ट फ़ेवरेट नेशन यानी सबसे पसंदीदा देश के दर्जे को ग़लत ढंग से समझना है.
उन्होंने कहा कि भारत की ओर से यह दर्जा पाकिस्तान को दिया गया था (जो बाद में वापस ले लिया गया) लेकिन पाकिस्तान ने यह दर्जा भारत को नहीं दिया.
वो कहते हैं, ”हमारे यहां इसे सियासी नज़र से देखा गया है जबकि यह पूरी तरह एक आर्थिक मामला है. इसमें दो देश एक दूसरे के यहां अपने उत्पाद पहुँचाने के लिए टैरिफ़ और नॉन टैरिफ़ रुकावटों को दूर करने की सुविधा देते हैं लेकिन पाकिस्तान में ऐसा नहीं सोचा जाता.”
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इस मामले पर अर्थव्यवस्था और कूटनीति के विशेषज्ञ अलग-अलग राय रखते हैं.
आर्थिक विशेषज्ञ डॉक्टर इकराम-उल हक़ के अनुसार, अगर विदेश मंत्री की ओर से यह बयान दिया गया है तो इसका मतलब यह है कि सत्ता के गलियारों में इस बारे में सोचा जा रहा है क्योंकि विदेश मंत्री की ओर से सोच समझकर ही ऐसा बयान दिया जाता है.
उन्होंने कहा कि इसहाक़ डार ने इस पर देश में राजनीतिक और सैनिक नेतृत्व के प्रतिनिधि फ़ोरम ‘एसआईएफ़सी’ (स्पेशल इन्वेस्टमेंट फ़ैसिलिटेशन काउंसिल) से भी बातचीत की होगी.
वो कहते हैं, ”ऐसा लगता है कि सर्वोच्च स्तर पर यह समझ मौजूद है कि भारत के साथ व्यापारिक संबंधों को बहाल किया जाए.”
लेकिन दिल्ली में रह चुके पूर्व पाकिस्तानी हाई कमिश्नर अब्दुल बासित की राय है कि इसहाक़ डार ने ग़लत समय पर यह बयान दिया, जिससे भविष्य में पाकिस्तान की ”बारगेनिंग पोज़िशन कमज़ोर हुई.”
उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच व्यापार की बहाली की संभावना से भी इनकार किया और कहा कि भारत इन मामलों में दिलचस्पी नहीं रखता और ”उसका सारा ध्यान चुनाव पर है.”
अब्दुल बासित का कहना है कि इस मामले पर न तो कैबिनेट में चर्चा हुई और न ही संसद में. उनका कहना है कि राष्ट्रीय असेंबली की विदेश मामलों की कमिटी भी अभी नहीं बनी है.
उनकी राय है कि पाकिस्तान को भारत के साथ व्यापार से कोई विशेष फ़ायदा भी नहीं मिलता क्योंकि व्यापार का संतुलन हमेशा भारत की ओर झुका रहा है.
डॉक्टर अय्यूब मेहर पूर्व पाकिस्तानी हाई कमिश्नर की इस राय से सहमत हैं. वह कहते हैं कि यह बयान देने का सही वक़्त नहीं था. इससे कोई फ़ायदा हासिल नहीं किया जा सकता.
अब तक भारत के विदेश मंत्रालय ने इस मामले पर टिप्पणी करने के बीबीसी के अनुरोध का जवाब नहीं दिया है.
लेकिन शनिवार को सिंगापुर के एक प्रोग्राम में भारत और पाकिस्तान के आपसी संबंधों के बारे में एक सवाल के जवाब में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा था कि भारत का स्टैंड यह है कि आतंकवाद के मामले को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता.
उन्होंने कहा,” भारत अब इस समस्या को नज़रअंदाज़ नहीं करेगा. हम यह नहीं कहने वाले हैं कि आतंकवाद जारी है (लेकिन), आइए बातचीत जारी रखते हैं क्योंकि यह बहुत महत्वपूर्ण है. हमें इस समस्या का बहुत ईमानदारी से सामना करना चाहिए. चाहे यह कितना ही मुश्किल क्यों न हो.”
इधर, अमृतसर स्थित ‘कंफ़ेडरेशन ऑफ़ इंटरनेशनल चैंबर ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री’ के अध्यक्ष अशोक सेठी ने पाकिस्तान के विदेश मंत्री इसहाक़ डार के बयान का स्वागत किया है.
बीबीसी से बात करते हुए अशोक सेठी ने इसे सकारात्मक बताया और कहा, ”हम बड़ी देर से उम्मीद लगा कर बैठे हैं. हमें पूरी उम्मीद है कि पाकिस्तान के प्रस्ताव से कुछ सकारात्मक निकल कर आएगा.”
अमृतसर की सीमा पाकिस्तान से मिलती है और पड़ोसी देश के साथ व्यापार के लिए वहाँ एक व्यापारिक केंद्र भी है.
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