नई दिल्ली: डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता संभालने से पहले ही चीन ने मैसेज देना शुरू कर दिया है। उसका संदेश साफ है- वह अमेरिका के सामने झुकेगा नहीं। चीन ने पहले ही अमेरिका को गैलियम, जर्मेनियम और एंटीमनी जैसी दुर्लभ धातुओं के निर्यात पर रोक लगा दी है। ये धातुएं अमेरिका के तकनीकी और रक्षा उद्योगों के लिए बेहद जरूरी हैं। इससे अमेरिका को 3 अरब डॉलर से ज्यादा के नुकसान की आशंका है। यही नहीं, ट्रंप के टैरिफ बढ़ाने की धमकी के जवाब में अब चीन ने एक और चक्रव्यूह तैयार कर लिया है। इस चक्रव्यूह को भेदना आसान नहीं है। 2025 में चीन युआन को कमजोर करने पर विचार कर रहा है। युआन के अवमूल्यन से चीनी निर्यात सस्ता हो जाएगा। इससे टैरिफ का असर कम हो जाएगा।
ट्रंप ने कहा है कि वह सभी आयातों पर 10% और अमेरिका में चीनी आयात पर 60% टैरिफ लगाने की योजना बना रहे हैं। युआन के अवमूल्यन से चीनी निर्यात सस्ता हो सकता है। इससे टैरिफ का असर कम होगा। चीन में ढीली मौद्रिक नीतियां बनेंगी।
रॉयटर्स ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि अगले साल युआन के अवमूल्यन की अनुमति दी जा सकता है। इस हफ्ते कम्युनिस्ट पार्टी के अधिकारियों के निर्णय लेने वाले निकाय पोलित ब्यूरो की बैठक में चीन ने अगले साल उचित रूप से ढीली मौद्रिक नीति अपनाने का संकल्प लिया। यह लगभग 14 सालों में अपनी नीतिगत रुख में इस तरह की पहली ढील है।
इस साल वित्तीय विश्लेषकों के नोट्स और अन्य थिंक-टैंक चर्चाओं में युआन नीति का भारी महत्व रहा है। पीपल्स बैंक ऑफ चाइना (PBOC) ने इस संभावना पर विचार किया है कि किसी भी व्यापार झटके का मुकाबला करने के लिए युआन 7.5-प्रति-डॉलर तक गिर सकता है। यह मौजूदा स्तर 7.25 से लगभग 3.5% की गिरावट है।
राष्ट्रपति के तौर पर ट्रंप के पहले कार्यकाल में मार्च 2018 से मई 2020 के बीच टैरिफ घोषणाओं के दौरान युआन डॉलर के मुकाबले 12% से अधिक कमजोर किया गया था। युआन की कमजोरी दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था की मदद कर सकती है। यह निर्यात आय को बढ़ाकर और आयातित वस्तुओं को अधिक महंगा बनाकर डिफ्लेशन के दबाव को कम करती है।
विश्लेषकों का औसत पूर्वानुमान है कि अगले साल के अंत तक युआन गिरकर 7.37 प्रति डॉलर हो जाएगा। सितंबर के अंत से मुद्रा ने डॉलर के मुकाबले अपने मूल्य का लगभग 4% गंवाया है।
जब कोई देश अपनी मुद्रा को कमजोर करता है तो इसका मतलब है कि वह अपनी मुद्रा की तुलना में अन्य मुद्राओं को अधिक मूल्यवान बना रहा है। इससे उस देश के निर्यात सस्ते हो जाते हैं और आयात महंगे हो जाते हैं। चीन के मामले में युआन को कमजोर करने से चीनी उत्पादों की कीमतें वैश्विक बाजार में कम हो जाएंगी। इससे उन्हें प्रतिस्पर्धी बढ़त मिलेगी। हालांकि, इससे आयात महंगे हो जाएंगे और मुद्रास्फीति बढ़ सकती है।
भारत को अपने निर्यात को बढ़ावा देने के लिए नए बाजारों की तलाश करनी चाहिए। साथ ही अपने उत्पादों की गुणवत्ता और प्रतिस्पर्धात्मकता में सुधार करना चाहिए। भारत को उन उत्पादों के आंतरिक उत्पादन को बढ़ावा देना चाहिए जिनका आयात चीन से होता है, ताकि आयात पर निर्भरता को कम किया जा सके। यही नहीं, उसे अपनी मुद्रा और वित्तीय प्रणाली को स्थिर रखने के लिए आवश्यक कदम उठाने चाहिए।