चंबा. पीएम नरेंद्र मोदी शुक्रवार को केदारनाथ में दर्शन के लिए पहुंचे हैं. यहां पर उन्होंने पूजा-अर्चना की. हालांकि, इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पोशाक को लेकर खासी चर्चा में रही. दरअसल, पीएम मोदी केदारनाथ दौरे के दौरान एक स्पेशल पोशाक में नजर आए. पीएम मोदी जो पोशाक पहनकर केदारनाथ पहुंचे, उसका हिमाचल के चंबा इलाके से कनेक्शन है. हाल ही चंबा दौरे के दौरान पीएम मोदी को यह पोशाक महिलाओं ने गिफ्ट की थी. इस पोशाक को चंबयाली चोला-डोरा कहते हैं.

दरअसल, हुआ यूं कि 13 अक्टूबर को पीएम मोदी चंबा आए थे. यहां पर महिलाओं ने उन्हें चोला-डोरा की पोशाक भेंट की थी. इस दौरान पीएम मोदी ने महिला से कहा था कि जब वो किसी ठंडे स्थान में जाएंगे तो इस पोशाक को पहनेंगे. अब हिमाचल चुनाव में चंद दिन बचे हैं तो ऐसे में पीएम की इस पोशाक के अलग-अलग मायने निकाले जा रहे हैं.

चंबा जिले में भरमौर की तरफ चोला डोरा की पोशाक पहनी जाती है. भेड़ और बकरियां चराने वाला गद्दी समुदाय ऊंची चोटियों पर रहता है. यहां बर्फ और ठंड अधिक होती है. ऐसे में ठंड से बचने के लिए गद्दी लोग यह पोशाक पहनते हैं. यह पोशाक गद्दी समुदाय की पारंपरिक वेशभूषा है. गद्दी समुदाय चंबा के अलावा कांगड़ा में निवास करता है.

चोला डोरा पोशाक को भेड़ की ऊन से तैयार किया गया था. भेड़ की ऊन निकालने के बाद उसे काता जाता है और फिर उसका धागा बनाया जाता है. इसके बाद उसकी मंडाई की जाती है और फिऱ पट्टू (चादर) बनाया जात है. ये पोशाक बहुत गर्म होती है. एक चोला बनाने के लिए क़रीब 18 से 25 मीटर का पट्टू की ज़रूरत होती है. पूरे बाज़ुओं के इस गाउन को बांधने के लिए जिस ऊन की मोटी डोर का इस्तेमाल होता है उसे डोरा कहते हैं. डोरा सफ़ेद या काला हो सकता है, पर अमूमन काला ही होता है. डोरा का वजन दो किलो के करीब होता है. चोले के साथ जिस चूड़ीदार पायजामे को पहना जाता है, उसे सुथनी या सुथनु भी कहते हैं.

मान्यता है कि गद्दी समुदाय के जयस्तंभ नाम के पूर्वज की तपस्या से शिव भगवान प्रसन्न हुए थे. उन्होंने जयस्तंभ को एक चोला, डोरा और टोपा भेंट किया. कहा जाता है कि तब से ये तीनों चोला, डोरा और टोपा गद्दी पुरुषों की वेशभूषा के अभिन्न अंग बन गए. हालांकि, केदारनाथ में पीएम ने केवल चोला ही पहना था औऱ डोरा की जगह मफलर लगाया था. गद्दी अपने कई कामों में डोरा का एक रस्सी के तौर पर भी इस्तेमाल करते हैं.

हिमाचल प्रदेश किन्रोर, लाहौल एंड स्पीति और चंबा ज़िलों में कई जनजातियाँ रहती हैं. मुश्किल और चुनौती भरी भौगोलिक स्थितियों में जीवन-यापन करने वाली इस जनजातियों में गद्दी काफ़ी मशहूर हैं. ये प्रदेश के मंडी, कांगड़ा और चंबा ज़िलों में रहते हैं. कांगड़ा और चंबा के ऊपरी हिस्सों में इस जनजाति का ख़ास प्रभाव होने के कारण चुनावी राजनीति में उनका अपना महत्व है. इन ज़िलों की कुछ विधानसभा सीटों पर गद्दी एक निर्णायक की भूमिका होते हैं. कांगड़ा लोकसभा सीट से मौजूदा सांसद – किशन कपूर भी गद्दी हैं. एक अनुमान के मुताबिक़ हिमाचल में गद्दियों की आबादी क़रीब आठ लाख है. वहीं, भाजपा ने मौजूदा समय में धर्मशाला से गद्दी समुदाय के राकेश चौधरी को मैदान में उतारा है.