हर साल सावन के महीने में भगवान शिव का जलाभिषेक करने के लिए शिवभक्त कांवड़ लेकर विभिन्न ज्योतिर्लिंगों की यात्रा पर पैदल निकलते हैं। महादेव के जलाभिषेक के लिए कांवड़िये मुख्य तौर पर हरिद्वार आकर पवित्र गंगा जल कांवड़ में भरकर ले जाते हैं। हरिद्वार आने वाले कांवड़ियों में सबसे ज्यादा संख्या दिल्ली-NCR, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान से आने वाले शिवभक्तों की होती है।
इस साल 4 जुलाई से सावन शुरू हो रहा है। कांवड़ियों की यात्रा को सुगम और सुरक्षित बनाने के लिए हर साल उत्तराखंड राज्य प्रशासन कुछ नियमों को लागू करती है। इस साल भी कांवड़ियों के लिए कुछ खास नियमों को लागू किया गया जिनका पालन नहीं करने पर हरिद्वार से गंगाजल भरकर भगवान शिव का जलाभिषेक करने की आपकी इच्छा अधुरी जरूर रह जाएगी।
हरिद्वार आने वाले शिवभक्तों और खास तौर पर कांवड़ियों को उत्तराखंड सरकार ने अपने पास आईडी कार्ड रखने की हिदायत की है। बताया जाता है कि कांवड़ियों को पहले उत्तराखंड की सीमा पर अपना आईडी कार्ड दिखाना होगा। इसके बाद ही उन्हें आगे बढ़ने की अनुमति दी जाएगी। यह आईडी कार्ड उन कांवड़ियों के लिए अनिवार्य है, जिनके पास 12 फीट या इससे ज्यादा ऊंचा कांवड़ होगा।
बिना इस आईडी कार्ड के 12 फीट या उससे ज्यादा ऊंचा कांवड़ ले जाने की अनुमति नहीं दी जाएगी। भगवान शिव की भक्ति में रमे कांवड़िये अक्सर अपने साथ डीजे बजाते हुए चलते हैं। इस साल भी कांवड़िये डीजे बजा सकेंगे लेकिन उनको इसकी आवाज पर नियंत्रण रखनी होगी।
कांवड़ियों को किसी भी प्रकार की असुविधा ना हो, इस बात का खास ख्याल रखने की जिम्मेदारी हरिद्वार प्रशासन ने अपने कंधों पर उठा रखी है। सावनी मेले के दौरान शहर में लोगों को पार्किंग की काफी परेशानियां झेलनी पड़ती है। इसलिए इस साल पार्किंग की नयी सुविधाएं बाहर से आने वाले कांवड़ियों को देने की योजना है। मिली जानकारी के अनुसार इस साल पहली बार चमगादड़ टापू और भारत माता मंदिर मार्ग में पार्किंग की अनुमति दी जा रही है। इसके अलावा सावन के महीने में बैरागी घाट पार्किंग, चंडी घाट पार्किंग और लालजी कॉलोनी पार्किंग का भी इस्तेमाल किया जाएगा।
हरिद्वार आने वाले कांवड़ियों की भारी संख्या को देखते हुए आपके मन में यह सवाल तो जरूर आया होगा कि भगवान शिव पर जलाभिषेक क्यों किया जाता है? गंगा तो भारत के कई राज्यों से होकर बहती है, फिर लोग हरिद्वार से ही क्यों गंगाजल लेने आते हैं? दरअसल, पुराणों के अनुसार सावन में भगवान विष्णु अपनी योग निद्रा में चले जाते हैं। इस समय तीनों लोकों के पालन-पोषण की जिम्मेदारी भगवान शिव के कंधे पर आ जाती है।
इसलिए पूरे सावन महीने के दौरान भगवान शिव हरिद्वार के पास अपने ससुराल कनखल (प्रजापति दक्ष के घर) आकर रहते हैं। कहा जाता है कि भगवान राम सबसे पहले कांवड़िये थे, जिन्होंने झारखंड के सुल्तानगंज से कांवड़ में जल भरकर देवघर में भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग पर जलाभिषेक किया था।
पुराणों के अनुसार जब समुद्र मंथन में जब हलाहल विष बाहर आया तो भगवान शिव ने उसे पीकर संपूर्ण सृष्टी की रक्षा की थी। उन्होंने उस विष को अपने कंठ में रोक लिया था जिस कारण उनका कंठ नीला पड़ गया और वह नीलकंठ कहलाये। लेकिन इस विष के कारण भगवान शिव का शरीर जलने लगा था। तब देवताओं ने उनपर जलाभिषेक करना शुरू कर दिया था। कहा जाता है कि तभी से कांवड़ यात्रा और भोलेनाथ पर जलाभिषेक करने की प्रथा की शुरुआत हुई।