नई दिल्ली। उत्तराखंड विधानसभा ने दो दिन की चर्चा के बाद 7 फरवरी को समान नागरिक संहिता (UCC) विधेयक, 2024 पारित कर दिया। यह विधेयक राज्य के सभी समुदायों (आदिवासियों को छोड़कर) में विवाह, तलाक और उत्तराधिकार जैसी चीजों को नियंत्रित करने वाले व्यक्तिगत कानूनों (Personal Laws) में एकरूपता लाता है।
अन्य बातों के अलावा मुस्लिम समुदाय तक एक पत्नीत्व (एक समय पर एक पत्नी) के नियम का विस्तार करता है। विवाह संपन्न कराने की शर्तों में से एक यह है कि “विवाह के समय किसी भी पक्ष का पूर्व जीवनसाथी जीवित न हो।”
यह धारा 1955 के हिंदू विवाह अधिनियम में पहले से ही मौजूद थी, लेकिन मुस्लिम पर्सनल लॉ अब तक पुरुषों को चार पत्नियां रखने की अनुमति देता था। सवाल उठता है कि क्या वर्तमान भारत में मुस्लिम पुरुषों के बीच एक से अधिक शादी की प्रथा आम है? इसे लेकर आंकड़े क्या कहते हैं?
जनगणना सीधे तौर पर बहुविवाह पर डेटा एकत्र नहीं करती है। बल्कि देश में विवाहित पुरुषों की संख्या और विवाहित महिलाओं की संख्या में अंतर से इसका अनुमान लगाया जाता है। अगर पुरुषों की तुलना में अधिक विवाहित महिलाओं का डेटा मिलता है, तो यह अनुमान लगाया जाता है कि पुरुषों ने एक से अधिक शादियां की हैं।
हालांकि, विवाहित पुरुषों और विवाहित महिलाओं की संख्या में अंतर के लिए केवल बहुविवाह को जिम्मेदार नहीं माना जा सकता। कई बार ऐसा भी होता है कि रोजगार के सिलसिले में विदेश जाने वाले पुरुषों की जीवनसाथी घर पर ही रहती है।
इसके अलावा, सबसे हालिया जनगणना एक दशक से भी अधिक समय पहले 2011 में हुई थी।
हालांकि, जनगणना के विपरीत, एनएफएचएस में पूरी आबादी को ध्यान में नहीं रखा जाता। सबसे हालिया NFHS-5 (2019-21) में लगभग 6.1 लाख परिवारों का नमूना लिया गया था, जो भारत में परिवारों की कुल संख्या का 1% से भी कम है।
बहुविवाह पर हुए आखिरी अध्ययन के मुताबिक, मुसलमानों से ज्यादा हिंदुओं में एक से अधिक शादी का चलन रहा है। बहुविवाह पर आखिरी प्रमुख सरकारी अध्ययन 1974 में आयोजित किया गया था। उसमें पाया गया था कि बौद्धों, जैनियों और हिंदुओं में मुसलमानों की तुलना में बहुविवाह की दर अधिक थी।
2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में 28.65 करोड़ विवाहित पुरुष और 29.3 करोड़ विवाहित महिलाएं हैं। दोनों संख्याओं के बीच का 65.71 लाख का अंतर है। यह अंतर बहुविवाह की घटनाओं की वजह से भी हो सकता और पुरुषों के विदेश चले जाने से भी।
विवाहित पुरुषों और महिलाओं की जनसंख्या में सबसे अधिक विसंगति हिंदुओं (भारत की बहुसंख्यक आबादी) में मिलती है, इसके बाद मुस्लिम, सिख, ईसाई, सिख और बौद्ध आते हैं। हालांकि, जब कुल जनसंख्या में संबंधित धर्मों के शेयर की तुलना की जाती है, तो मुस्लिम और ईसाई के बीच सबसे बड़ा अंतर नजर आता है।