बिजनौर। अब तक चकबंदी में लेटलतीफी सुनी होगी, लेकिन बंदोबस्त का मामला चौंकाने वाला है। 1929 से अब तक गंगा किनारे के 92 गांवों का बंदोबस्त ही नहीं हो पाया है। अब सर्वे ने रफ्तार पकड़ी तो पांच गांव ऐसे सामने आए, जो मौके पर एक है और कागजों में दो है। यही नहीं एक गांव के रकबे में सरकारी जमीन है तो इसी नाम के दूसरे गांव में कास्तकारी की जमीन। इसमें सर्वे में लगे अफसर भी उलझ गए। अब बोर्ड ऑफ रेवेन्यू के रिकॉर्ड से इस समस्या को सुलझाने की तैयारी चल रही है।
जिले में वर्ष 1929 के बाद से गंगा किनारे बिजनौर और चादंपुर तहसील में 72 गांव में आज तक बंदोबस्त नहीं सका। इसके अलावा 20 गांव पड़ोसी जनपद मुजफ्फरनगर के भी इसमें शामिल हैं। आज तक इन गांवों के लोगों को यह नहीं पता कि कागजों में जो जमीन उनके नाम दर्ज है, धरातल पर उसकी सही स्थिति क्या है।
हालात यह है कि जहां जिसे जमीन मिली, कब्जा कर लिया। फसल काटने का समय आता है, तो लोग आपस में भिड़ जाते हैं। कभी कभी हालात खूनी संघर्ष तक पहुंच जाते हैं। अब प्रशासन ने सर्वे के लिए अलग टीम बनाई तो रिकॉर्ड तलाशे जाने लगे।
पिछले दिनों फोर लेन के लिए जमीन का अधिग्रहण होना था। जमीन का अधिग्रहण हुआ तो बात मुआवजे तक पहुंची। 1359 फसली के रिकॉर्ड की जांच में यह जमीन नदी की निकली तो मुआवजे पर रोक लगाई गई। टीम ने विस्तृत जांच की तो पता चला पांच गांव कागजों में दो हैं और मौके पर एक।
इसके अलावा यहां पर नदी की जमीन भी काफी है। अब टीम यह पता लगाने में उलझ रही है कि जो मौके पर जमीन है वह सरकारी है या कास्तकारी की। इसके लिए जिला प्रशासन बोर्ड ऑफ रेवेन्यू के रिकॉर्ड से मिलाने की तैयारी कर रहा है।
पांच गांव नवलपुर, रंजीतपुर, रामपुर ठकरा, शेखपुर चमरा, महमूदपुर ढूंगर ऐसे हैं, जो बिजनौर और मुजफ्फरनगर दोनों जिलों के राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज हैं। ऐसे में इनकी जमीन कौन से जिले में हैं, इसका किसी को सही नहीं पता। बोर्ड ऑफ रेवेन्यू के रिकॉर्ड और 1359 फसली डाटा की जांच के बाद एक जिले से इनका रिकॉर्ड भी हटाए जाने की तैयारी भी है। इन पांच गांवों का करीब 1200 एकड़ रकबा दोनों ही जिलों में दर्शाया जा रहा है।
प्रशासन ने 2009 में बिजनौर और चांदपुर तहसील के इन गांवों में बंदोबस्त करने के लिए सर्वे शुरू किया। सर्वे की रफ्तार इतनी धीमी कि अभी तक मात्र पांच गांवों का ही रिकॉर्ड तैयार हो सका है। इसके अलावा 27 गांवों में सर्वे पूरा हो चुका है। इसके बावजूद जिन गांवों का रिकॉर्ड तैयार हुआ, धरातल पर उसे लागू नहीं किया गया है।
इस विभाग के पास गांवों की जमीन का जो रिकॉर्ड उपलब्ध है, उसमें अधिकांश फारसी में लिखा गया है। जिन गांवों का सर्वे हुआ, उसका रिकॉर्ड पढ़वाने के लिए नजीबाबाद के एक फारसी के जानकार की मदद ली गई थी। वर्तमान में जिले में फारसी का कोई जानकार न होने के कारण सर्वे आगे ही नहीं बढ़ पा रहा है।
यदि गांव कागजों में दर्ज हैं तो इनका नोटिफिकेशन भी हुआ होगा। ऐसे में बोर्ड ऑफ रेवेन्यु के डाटा से मदद ली जाएगी। उसके लिए लेखपालों की टीम बनाई जा रही है, जो उस रिकॉर्ड की जांच करेगी। इसके बाद ही सही पता चल पाएगा कि सही गांव कौन से हैं या फिर तहसील के खसरा-खतौनी के रिकॉर्ड से छेड़छाड़ की गई है। सर्वे का काम तेजी से चल रहा है। – नितिन तेवतिया, एसडीएम सर्वे
ऐसे गांव जो गंगा किनारे के हैं और दोनों जिलों में दर्ज हैं, इसका सर्वे प्राथमिकता के आधार पर हो रहा है। मुजफ्फरनगर के अफसरों के साथ बैठक की गई थी। दोनों जिलों की टीम मिलकर रिकॉर्ड का मिलान करेगी। यहां पर सरकारी जमीन काफी है।