नई दिल्ली। मध्यप्रदेश के उज्जैन शहर में शिप्रा नदी के तट पर भगवान शिव महाकाल के रूप में विराजमान हैं। द्वादश ज्योतिर्लिंगों में यह तीसरे स्थान पर आता है। उज्जैन में स्थित यह ज्योतिर्लिंग देश का इकलौता शिवलिंग है जो कि दक्षिण मुखी है। मंदिर से अनेक प्राचीन परंपराएं जुड़ी हैं। वहीं, इस मंदिर के कई अनसुलझे रहस्य भी हैं। भगवान शिव के कई नाम हैं, सदियों से उन्हें महादेव, भोलेनाथ, शंकर, शंभू, त्रिलोकपति के नाम से पुकारा जाता रहा है लेकिन उज्जैन में उन्हें महाकाल के नाम से पुकारा जाता है। आखिर भगवान शिव को यह नाम क्यों मिला और क्यों उन्हें कालों का काल कहा गया, आइए आज आपको भगवान शिव के महाकाल बनने की पौराणिक गाथा के बारे में बताते हैं।
कहा जाता है कि उज्जैन जिसे पहले उज्जैनी और अवंतिकापुरी के नाम से भी जाना जाता था। यहां एक शिव भक्त ब्राह्मण निवास करता था। अंवतिकापुरी की जनता दूषण नाम के राक्षस के प्रकोप से त्राहि-त्राहि कर रही थी। लोग उसे काल के नाम से जानते थे। ब्रह्रा से जी दूषण को कई शक्तियां मिली थी, जिनका दुरुपयोग कर वह निर्दोष लोगों को परेशान करता था। राक्षस की शक्तियों के प्रकोप से ब्राह्मण काफी दुखी था, उसने भगवान शिव से राक्षस के नाश की प्रार्थना की, लेकिन भगवान ने काफी वक्त तक कुछ नहीं किया। प्रार्थनाओं का असर न होता देख एक दिन ब्रह्म भगवान शिव से नाराज हो गया और उनका पूजन बंद कर दिया। अपने ब्राह्मण भक्त को दुखी देख भगवान शिव हुंकार के रूप में प्रकट हुए और दूषण का वध कर दिया। क्योंकि लोग दूषण को काल कहते थे, इसलिए उसके वध के कारण भगवान शिव का नाम महाकाल पड़ा।
काल का वध करने के कारण बाबा महाकाल की पूजा का विशेष महत्व है। कहा जाता है कि जो भी भक्त सच्चे मन से बाबा महाकाल की आराधना करता है, उसे कभी मृत्यु का भय नहीं डराता न ही कभी उसकी अकाल मृत्यु होती है। मंदिर में अकाल मृत्यु के निवारण के लिए बाबा महाकाल की विशेष पूजा की जाती है।
हाल ही में बने महाकाल लोक में भगवान शिव की दूषण के वध करने की एक विशाल प्रतिमा स्थापित की गई है। पीएम मोदी आज 11 अक्टूबर को श्री महाकाल लोक का लोकार्पण करेंगे।