नई दिल्ली: किसी इंसान की सफलता की कहानी सिर्फ उसकी मेहनत नहीं, बल्कि उसकी हिम्मत और लगातार कोशिशों का परिणाम होती है. केरल के कोझीकोड में जन्मे एम.पी. अहमद की ज़िंदगी में भी असफलताएं आईं, लेकिन उन्होंने हार मानने की जगह अपने सपनों को पंख दिए. शुरुआती दो कारोबारों की विफलता और 17 लाख का नुकसान के बावजूद उन्होंने 53,000 करोड़ रुपये साम्राज्य खड़ा कर दिया. यह कहानी है ‘मलाबार गोल्ड एंड डायमंड्स’ के संस्थापक एम.पी. अहमद की.

एम.पी. अहमद की पहली कोशिश तब नाकाम रही, जब उन्होंने 17 साल की उम्र में एग्रो प्रोडक्ट्स बेचने का कारोबार शुरू किया था. लेकिन असफलता के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी. 23 की उम्र में उनके पिता का निधन हो गया, और एक बड़े परिवार की ज़िम्मेदारी आ गई. परिवार में मां और पांच बहनें थीं. जिम्मेदारी के बोझ तले अहमद ने 24 साल की उम्र में फिर से कुछ नया करने का फैसला लिया.

अहमद ने एक सिंगल-टिकट ट्रेन यात्रा के जरिए केरल के कालीकट शहर का रुख किया और मसालों और कोपरा (सूखे नारियल) का व्यापार शुरू किया. इस बार वह इलायची, काली मिर्च और नारियल जैसे मसालों का कारोबार कर रहे थे. उन्हें लगा कि यह कारोबार सफल होगा, लेकिन बाज़ार में पहले से कई खिलाड़ी मौजूद थे. नतीजतन, उन्हें 17 लाख रुपये का भारी नुकसान हुआ और फिर कारोबार बंद करना पड़ा.

अब परिवार को बचाने के लिए कुछ ठोस करना था. अहमद ने नए सिरे से बाज़ार का अध्ययन किया और एक महत्वपूर्ण बात नोटिस की. सरकार ने 1990 में करेंसी का अवमूल्यन करते हुए रुपये को 17.5 रुपये से 30 रुपये कर दिया. इस वजह से लोगों ने सोने में निवेश करना शुरू कर दिया. अहमद ने इस मौके का फायदा उठाने का निर्णय लिया.

17 सितंबर 1993 को अहमद ने अपने जीवन की सारी बची-खुची पूंजी लगाकर कोझीकोड में 200 वर्ग फीट की एक ज्वैलरी दुकान खोली, जिसे उन्होंने ‘मलाबार गोल्ड’ नाम दिया. मलाबार नाम मलाबार तट से लिया गया, और उन्होंने अपने टारगेट कस्टमर के तौर पर मिडिल ईस्ट में बसे मलयाली प्रवासियों को चुना. अहमद ने स्थानीय कारोबारियों के साथ साझेदारी की, जहां उन्होंने डिबेंचर्स पर 15% ब्याज का ऑफर दिया, जिसे मुनाफा होते ही शेयरों में बदल दिया जाता था. और ये योजना काम कर गई.

कुछ ही समय में कारोबार 16 करोड़ रुपये के रेवेन्यू तक पहुंच गया, लेकिन अभी गुणवत्ता और कीमत की समस्याएं हल करना बाकी था. अहमद ने देखा कि हर कोई 24 कैरेट सोना बेच रहा था, जिसमें 99.99% शुद्धता होती थी. लेकिन इसकी वजह से मैन्युफैक्चरिंग लागत बहुत बढ़ जाती थी, जिससे उत्पाद महंगा हो जाता था. अब अहमद को एक नई योजना बनानी थी.

अहमद ने 22 कैरेट सोना बेचना शुरू किया, जिसमें 91.67% सोना होता है. इससे निर्माण लागत कम हो गई और उन्हें सस्ती कीमतों पर सोना बेचने का मौका मिला. उन्होंने हर भारतीय शहर में एक समान कीमत पर 100% बीआईएस हॉलमार्क सोना बेचना शुरू किया, जिसमें सोने की शुद्धता की जांच के लिए कैरेट चेक एनालाइज़र का उपयोग होता था. 2005 तक यह कंपनी 500 करोड़ रुपये के राजस्व तक पहुंच चुकी थी.

मलाबार गोल्ड का 40% व्यापार मिडिल ईस्ट से आ रहा था, लेकिन वहां कोई स्टोर नहीं था. 2008 में, कंपनी ने यूएई में अपना पहला और कुल मिलाकर 20वां स्टोर खोला. 2012 तक, कंपनी ने हीरे बेचने शुरू कर दिए और इसका नाम बदलकर ‘मलाबार गोल्ड एंड डायमंड्स’ कर दिया गया. इस समय तक कंपनी का कारोबार 12,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गया था.

2013 में मलाबार के लिए बड़ा बदलाव आया. 30 सितंबर 2013 को कंपनी ने गुड़गांव, हरियाणा में अपना 100वां स्टोर खोला. एक ही साल में 83% की ग्रोथ के साथ कंपनी का रेवेन्यू 22,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गया. 2018 तक मलाबार के 215 स्टोर्स थे और यह भारत में सबसे ज्यादा स्टोर्स वाली ज्वैलरी कंपनी बन गई.

आज मलाबार ग्रुप 53,000 करोड़ रुपये का साम्राज्य है, जिसमें रियल एस्टेट, लग्जरी घड़ी ब्रांड्स, घरेलू उपकरण और शॉपिंग मॉल जैसे 15 बिजनेस शामिल हैं. लेकिन इसका मुख्य ‘मलाबार गोल्ड एंड डायमंड्स’ है, जिसके 13 देशों में 350 से अधिक स्टोर हैं.

एम.पी. अहमद आज भी अपने ‘मलाबार चैरिटेबल ट्रस्ट’ के माध्यम से 15,000 बेघर परिवारों को आश्रय प्रदान कर रहे हैं, 20,000 बच्चों को शिक्षा दे रहे हैं और 10 लाख मरीजों का मुफ्त इलाज करवा रहे हैं.