नई दिल्ली : बांग्लादेश की सत्ता से शेख़ हसीना के बेदख़ल होने के बाद उसकी पाकिस्तान से क़रीबी बढ़ने की आशंका भारत को पहले से ही थी.

बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच न केवल द्विपक्षीय व्यापार बढ़ाने पर बात हो रही है बल्कि दोनों देश सैन्य सहयोग बढ़ाने में भी लगे हैं. बांग्लादेश पहले पूर्वी पाकिस्तान था और 1971 में पाकिस्तान से आज़ाद होकर एक संप्रभु राष्ट्र बना था. शेख़ हसीना और उनकी पार्टी अवामी लीग जब भी सत्ता में रहीं हैं, तब पाकिस्तान से संबंध तनाव भरे रहे हैं. ख़ालिदा ज़िया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी जब सत्ता में रहती है तो पाकिस्तान से संबंध अच्छे रहे हैं. लेकिन अभी दोनों पार्टियां सत्ता से बाहर हैं और मोहम्मद युनूस की अगुवाई वाली अंतरिम सरकार भी पाकिस्तान से संबंध गहरा कर रही है.

पिछले साल पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ और बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद युनूस के बीच दो बार मुलाक़ात हो चुकी है. बांग्लादेश के हाई रैंकिंग सैन्य अधिकारी जनरल एसएम कमरुल हसन 14 जनवरी को पाकिस्तान गए थे. जनरल कमरुल ने पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर से मुलाक़ात की थी. पिछले हफ़्ते पाकिस्तान से बांग्लादेश के लिए एक और हाई प्रोफाइल दौरा हुआ था. पाकिस्तान के शीर्ष के ट्रेड निकाय फेडरेशन ऑफ पाकिस्तान चेंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज़ का एक प्रतिनिधिमंडल बांग्लादेश गया था.

इमेज कैप्शन,बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद युनूस और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ की दो इस प्रतिनिधिमंडल की मुलाक़ात बांगलादेश के वाणिज्य मंत्री से हुई थी. इस दौरे में दोनों देशों के बीच एक एएमओयू पर हस्ताक्षर हुआ था. पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल ने बांग्लादेश से मुक्त व्यापार समझौते की अपील की है.

फेडरेशन ऑफ पाकिस्तान चेंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज़ के उपाध्यक्ष साक़िब फ़याज़ मगून ने जापान के निक्केई एशिया से कहा, ”बांग्लादेश के वाणिज्य मंत्री ने हमसे कहा कि वह पाकिस्तान को प्राथमिकता देंगे. बांग्लादेश के पास केवल टेक्स्टाइल और प्लास्टिक इंडस्ट्री है. बाक़ी सारी चीज़ें बांग्लादेश आयात करता है. अब बांग्लादेश ने हमारे लिए दरवाज़ा खोल दिया है, जो कि पहले शेख़ हसीना के कारण बंद था.”

मगून ने कहा, ”बांग्लादेश ने पहले ही पाकिस्तान से 50 हज़ार टन चावल और 25 हज़ार टन चीनी के आयात का ऑर्डर दे दिया है. बांग्लादेश आने वाले दिनों में पाकिस्तान से आयात बढ़ाता रहेगा. बांग्लादेश पाकिस्तान से खजूर के आयात के लिए भी बात कर रहा है.”

अभी बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच सालाना द्विपक्षीय व्यापार महज 70 करोड़ डॉलर का है. मगून ने कहा, ”हमें उम्मीद है कि अगले एक साल में बांग्लादेश से पाकिस्तान का द्विपक्षीय व्यापार तीन अरब डॉलर तक हो जाएगा.”

पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच बढ़ते कारोबारी संबंध से ज़्यादा सैन्य सहयोग को लेकर बात हो रही है. विश्लेषकों का कहना है कि दोनों देशों के बीच सैन्य सहयोग गहराया तो भारत की चिंता और बढ़ सकती है.

पाकिस्तान के वरिष्ठ पत्रकार नजम सेठी ने पाकिस्तानी न्यूज़ चैनल समा टीवी के एक प्रोग्राम में कहा, ”बांग्लादेश की पॉलिसी शिफ्ट बहुत तेज़ी से हो रही है. मुझे उम्मीद नहीं थी कि इतनी जल्दी होगी. पहले भारत से संबंध ख़राब करना और फिर पाकिस्तान के क़रीब आना, बांग्लादेश ने बहुत जल्दी किया. मुझे लग रहा था कि इसमें टाइम लगेगा.”

नजम सेठी ने कहा, ”बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच सैन्य सहयोग की बात शुरू हो गई है. मुझे लगता है कि यह भारत के लिए बहुत बड़ा झटका है. भारत ने तो बांग्लादेश में बहुत बड़ा निवेश किया है. सबसे अहम बात है कि बांग्लादेश से कोई राजनीतिक प्रतिनिधिमंडल पाकिस्तान नहीं आया है. बांग्लादेश से सेना के बड़े जनरल का पाकिस्तान आना एक साथ कई संदेश दे रहा है. बांग्लादेश के जनरल ने मुलाक़ात पाकिस्तान के सैन्य नेतृत्व से की.”

नजम सेठी ने कहा, ”सबको पता है कि पाकिस्तान में सत्ता कहाँ है. जब सैन्य स्तर पर संबंध बन जाते हैं तो राजनीतिक स्तर पर संबंध ख़राब होने के बाद भी बहुत असर नहीं पड़ता है. बांग्लादेश और पाकिस्तान की सेना के बीच उच्चस्तरीय बातचीत हो रही है. यहां जिस किस्स के जेट्स की बात हो रही है, वैसे जेट्स तो इंडिया के पास भी नहीं हैं. पाकिस्तान बांग्लादेश को जेएफ़-17 देने पर विचार कर रहा है. बांग्लादेश यह जेट चीन नहीं पाकिस्तान से ख़रीदेगा. यह बहुत बड़ी ख़बर है और भारत को परेशान करने वाली है.”

नजम सेठी ने कहा, ”पाकिस्तान केवल जेट ही नहीं देगा बल्कि ट्रेनिंग भी देगा. ट्रेनिंग में केवल ट्रेनिंग ही नहीं होती है बल्कि भाईचारा भी बढ़ता है. कल को जब हम जहाज़ बांग्लादेश को दे देंगे तो यह बहुत ही ठोस और मज़बूत संबंध होगा. बांग्लादेश फिर पाकिस्तान के निवेशकों के लिए अच्छा ठिकाना बन जाएगा. मुझे लगता है कि यह बहुत ही अहम है. भारत के सारे पड़ोसी उसके ख़िलाफ़ हो रहे हैं. भारत को लग रहा है कि उसकी विदेश नीति नाकाम हो रही है.”

भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त रहे अब्दुल बासित मानते हैं कि बांगलादेश के लोगों के बारे में एक धारणा फैला दी गई थी कि ये पाकिस्तान विरोधी हैं.

अब्दुल बासित ने पाकिस्तानी न्यूज़ चैनल एबीएन से कहा, ”अब चीज़ें स्पष्ट हो गई हैं कि बांग्लादेश के लोग पाकिस्तान को चाहते हैं. भारत की परेशानी तो बढ़नी ही थी. अब तो दोनों देशों के बीच सरहद पर झड़पें भी हो रही हैं. भारत को अब पता चल गया है कि पाकिस्तान के साथ बढ़ती क़रीबी को वह रोक नहीं सकता है.”

अब्दुल बासित मानते हैं कि पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच बढ़ती क़रीबी के कारण ही भारत ने तालिबान से क़रीबी बढ़ानी शुरू कर दी.

बासित ने कहा, ”अब भारत हमारे लिए वेस्टर्न फ्रंट दोबारा खोलना चाहता है. बांग्लादेश में चुनाव तक यही हुकूमत रहेगी. ऐसे में पाकिस्तान के साथ संबंधों में गर्मजोशी बनी रहेगी. हमारे विदेश मंत्री अगले महीने बांग्लादेश जाने वाले हैं. बांग्लादेश से सैन्य जनरल का आना भारत के लिए बहुत बड़ा संदेश है. बांग्लादेश अतीत से आगे निकल वर्तमान की बात कर रहा है. मुझे उम्मीद है कि हम इस मौक़े को हाथ से नहीं जाने देंगे.”

थिंक टैंक ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में स्टडीज़ एंड फॉरन पॉलिसी के वाइस प्रेजिडेंट प्रोफ़ेसर हर्ष पंत भी मानते हैं कि बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच सैन्य सहयोग बढ़ना भारत के लिए परेशान करने वाला हो सकता है.

प्रोफ़ेसर पंत कहते हैं, ”यह बांग्लादेश को तय करना है कि अपनी दिशा किस ओर करना चाहता है. अगर उसका मक़सद भारत विरोध के नाम पर पाकिस्तान से दोस्ती बढ़ानी है, तो इसे आज़मा लेने में उसे कौन रोक देगा. शेख़ हसीना के समय में भी बांग्लादेश और चीन के बीच काफ़ी गहरा सैन्य सहयोग था. भारत जब बांग्लादेश और चीन की सैन्य साझेदारी के बीच रह सकता है तो पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच बढ़ते सैन्य सहयोग के बीच भी रह सकता है.”

प्रोफ़ेसर पंत कहते हैं, ”बांग्ला राष्ट्रवाद के ज़रिए बांग्लादेश बना था. यह राष्ट्रवाद पाकिस्तान के ख़िलाफ़ था. अगर बांग्लादेश के आज के नेतृत्व को लगता है कि उन्हें पाकिस्तान के क़रीब जाने से मज़बूती मिलेगी तो इस सोच को कौन रोक सकता है. ये बांग्लादेश को तय करना है कि उसे किससे मदद लेनी है. अगर बांग्लादेश को लग रहा है कि पाकिस्तान उन्हें कुछ दे सकता है तो ले लें.”

बांग्लादेश के संस्थापक शेख़ मुजीब-उर रहमान पाकिस्तान को लेकर बहुत सख़्त रहे थे. यहाँ तक कि शेख मुजीब-उर रहमान ने बांग्लादेश को मान्यता दिए बिना पाकिस्तान के राष्ट्रपति ज़ुल्फ़ीकार अली भुट्टो (बाद में प्रधानमंत्री) से बात करने से इनकार कर दिया था. पाकिस्तान भी शुरू में बांग्लादेश की आज़ादी को ख़ारिज करता रहा.

लेकिन पाकिस्तान के तेवर में अचानक परिवर्तन आया. फ़रवरी 1974 में ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ इस्लामिक कॉन्फ़्रेंस का समिट लाहौर में आयोजित हुआ. तब भुट्टो प्रधानमंत्री थे और उन्होंने मुजीब-उर रहमान को भी औपचारिक आमंत्रण भेजा. पहले मुजीब ने इसमें शामिल होने से इनकार कर दिया लेकिन बाद में इसे स्वीकार कर लिया था. 22 फ़रवरी 1974 को पाकिस्तान ने बांग्लादेश को मान्यता दे दी थी. भुट्टो ने यह मान्यता ओआईसी समिट में ही देने की घोषणा की थी.

बांग्लादेश की निर्वासित लेखिका तसलीमा नसरीन मानती हैं कि शेख़ हसीना के सत्ता से बेदख़ल होने के बाद बांग्लादेश में पाकिस्तान को लेकर उत्साह बढ़ा है.

तसलीमा नसरीन ने लिखा है, ”कुछ महीने पहले बांग्लादेश में बांग्ला बोलने वाले पाकिस्तान समर्थकों ने मोहम्मद अली जिन्ना की पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि दी थी. उसके बाद जिन्ना की जयंती मनाई गई. बांग्लादेश में अचानक जिन्ना प्रेम क्यों बढ़ा है? सच यह है कि जिन्ना प्रेम कोई नया नहीं है बल्कि शुरू से ही था.”

“बांग्ला बोलने वाले ये मुसलमान व्यापक इस्लामी दुनिया की सोच से संचालित होते हैं. मैं जानबूझकर इन्हें बांग्ला बोलने वाला कहती हूं, न कि बंगाली क्योंकि हर बांग्ला बोलने वाला व्यक्ति बंगाली नहीं हो सकता है. जो सच्चा बंगाली होगा, वह बंगाली संस्कृति से प्रेम करेगा.”