नई दिल्ली : भाजपा की जीत उसी फैक्टर के कारण हुई है, जिसके सहारे वह इस जाटलैंड पर पिछले दस सालों से राज करती आ रही थी। कांग्रेस ने अपना पूरा जोर जाट पॉलिटिक्स को मजबूत करने पर लगाया।

भाजपा हरियाणा में बड़ी जीत हासिल करती दिखाई दे रही है। इसके पीछे कई अहम कारण गिनाए जा रहे हैं। कांग्रेस ने अपना पूरा फोकस जाट-दलित जातियों के गठजोड़ पर अपना पूरा फोकस किया तो भाजपा ने बिना पर्ची-खर्ची के सरकारी नौकरी को अपना चुनावी मूल मंत्र बनाया। चुनाव परिणाम बता रहे हैं कि कांग्रेस का दांव कमजोर पड़ गया, जबकि भाजपा का दांव हिट साबित हो गया। गैर जाट जातियों की भाजपा की राजनीति एक बार फिर भाजपा के लिए फायदे का सौदा साबित हुई है।

भाजपा की जीत उसी फैक्टर के कारण हुई है, जिसके सहारे वह इस जाटलैंड पर पिछले दस सालों से राज करती आ रही थी। कांग्रेस ने अपना पूरा जोर जाट पॉलिटिक्स को मजबूत करने पर लगाया। किसान आंदोलन और महिला खिलाड़ियों के साथ हुई कथित अभद्रता को भी पार्टी ने ‘जाटों के स्वाभिमान के साथ खिलवाड़’ बताकर पेश किया। इसके साथ-साथ कांग्रेस ने अपना पूरा जोर दलित पॉलिटिक्स को अपने साथ जोड़ने में लगाया। उसे विश्वास था कि जाट-दलित का गठजोड़ उसे सत्ता तक पहुंचा देगा। लेकिन हरियाणा का जाट जितना अधिक कांग्रेस के पक्ष में बोलने लगा, गैर-जाट जातियां भाजपा के पक्ष में लामबंद होने लगीं। चुनाव के दौरान भी कांग्रेस के कई जाट नेताओं ने अब अपना दौर वापस आने की बातें कहीं। माना जा रहा है कि इसका असर गैर जाट जातियों पर हुआ और वे कांग्रेस से दूर हुईं।

कांग्रेस के तीन बड़े नेताओं के बीच चुनाव के दौरान भी आपसी फूट साफ दिखाई दी। भूपेंद्र सिंह हुड्डा, कुमारी सैलजा और रणदीप सुरजेवाला के बीच तनातनी की खबरों ने उनके मतदाताओं को भ्रमित कर दिया। कुमारी सैलजा का हुड्डा के साथ मतभेद को भाजपा ने दलितों के स्वाभिमान को चोट की तरह पेश किया। परिणाम बताते है कि मतदाताओं पर इस फैक्टर का भी असर पड़ा है। कांग्रेस आलाकमान की इन दूरियों को पाटने की कोशिश सफल नहीं हुई।

भाजपा ने इसी फैक्टर पर पिछले दस सालों से अपनी राजनीति आगे बढ़ाई है। अब वही राजनीति उसे फल देती दिख रही है। भाजपा का वोट शेयर इस समय भी लगभग 40 फीसदी के आसपास होता दिख रहा है जो बताता है कि कांग्रेस और राहुल गांधी के कड़े प्रचार के बाद भी भाजपा ने अपना कोर वोट बनाए रखा है। भाजपा की सफलता का यही सबसे बड़ा कारण रहा।

इसके साथ ही भाजपा के शासनकाल में लोगों को बिना खर्ची-पर्ची के नौकरी मिलने लगी थी। दरअसल, कहा जाता है कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा के शासनकाल में किसी नेता का पत्र (पर्ची) किसी को नौकरी पाने की गारंटी होती थी। इसके साथ ही उन्हें खर्ची यानी घूस भी देनी पड़ती थी। लेकिन भाजपा के राज में बिना खर्ची-बिना पर्ची के लोगों को नौकरी मिल रही थी। यही कारण है कि युवाओं ने कांग्रेस की तुलना में भाजपा पर ज्यादा भरोसा किया।