नई दिल्ली। हिन्दू धर्म में सप्ताह का प्रत्येक दिन प्रमुख देवी-देवताओं को समर्पित है। इन सब में शनिवार को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि शनिवार के दिन शनि देव की पूजा का विधान है। मान्यता है कि शनिवार के दिन शनि देव की पूजा करने से भक्तों को विशेष लाभ मिलता है और कुंडली में शनि ग्रह द्वारा उत्पन्न हो रही परेशानियां कम हो जाती हैं। ज्योतिष शास्त्र में बताया गया है कि जब किसी भी जातक की कुंडली में शनि दुर्बल स्तिथि होता है तो उन्हें इस दौरान कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। बता दें कि शनि देव को प्रसन्न करने के लिए शनिवार के दिन की गई पूजा को बहुत ही लाभदायक माना जाता है। इसलिए इस दिन शनि देव की पूजा के दौरान कुछ विशेष बातों का ध्यान अवश्य रखें, क्योंकि छोटी गलती से व्यक्ति को बड़े दुष्परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।
शास्त्रों में बताया गया है कि शनि देव की की पूजा में आक के फूल का इस्तेमाल करने से जातक को बहुत लाभ मिलता है। साथ ही कुंडली में शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या से मुक्ति प्राप्त हो जाती है।
इसके साथ शनि देव की पूजा में तांबे के धातु से बर्तनों का इस्तेमाल वर्जित है। तांबे का संबंध सूर्य देव से है और सूर्य देव के शत्रु शनि देव हैं। इसलिए पूजा के समय लोहे से बने बर्तनों का प्रयोग ही उचित माना जाता है।
शास्त्रों में यह भी बताया गया है कि मंदिर में शनि देव की पूजा के दौरान उनके समक्ष दीपक नहीं जलाना चाहिए। बल्कि उस दीपक को पीपल के पेड़ के नीचे जलाना चाहिए। ऐसा करने से व्यक्ति को बहुत लाभ मिलता है।
इस बात का विशेष ध्यान रखें कि मंदिर में शनि देव की पूजा के दौरान उनकी आंख से आंख मिलाकर पूजा या दर्शन न करें। बल्कि उनके चरणों के या शिला रूप के दर्शन करें। साथ ही उनकी पूजा कभी भी खड़े रहकर नहीं करनी चाहिए।
शास्त्रों में बताया गया है कि व्यक्ति को शनि देव की पूजा के दौरान रंग और दिशा का भी ध्यान रखना चाहिए। इसलिए पूजा में लाल रंग का इस्तेमाल बिलकुल ना करें। ऐसा करना अशुभ माना जाता है। साथ ही उनकी पूजा केवल पश्चिम दिशा में ही की जानी चाहिए। पूजा के दौरान वस्त्र भी काले या नीले रंग का ही धारण करें।