नई दिल्ली : बीआर आंबेडकर पंडित नेहरू की सरकार में कानून मंत्री थे। उन्होंने 4 साल, 1 महीना और 24 दिन नेहरू मंत्रिमंडल में काम करने के बाद 27 सितंबर 1951 को पंडित नेहरू की कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया था।

संविधान निर्माता बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर के नाम पर इन दिनों सियासत तेज है। उनके अपमान को लेकर देश की दो बड़ी राजनीतिक पार्टियां संसद से सड़क तक संग्राम कर रही हैं। सत्ताधारी भाजपा जहां कांग्रेस पर बाबासाहेब का अपमान करने का आरोप लगाती रही है, वहीं नए प्रकरण में कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पर संसद के अंदर अपने भाषण में कथित तौर पर आंबेडकर का अपमान करने का आरोप लगाया है और उनसे इस्तीफे की मांग कर रही है।

इस बीच डॉ. आंबेडकर और देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के संबंधों की गांठ फिर से खुलने लगी है। बीआर आंबेडकर पंडित नेहरू की सरकार में कानून मंत्री थे। उन्होंने 4 साल, 1 महीना और 24 दिन नेहरू मंत्रिमंडल में काम करने के बाद 27 सितंबर 1951 को पंडित नेहरू की कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने इस्तीफा देते हुए एक पत्र भी लिखा जिसमें उन्होंने अपने इस्तीफे की वजह बताई थी।

हालांकि डॉ. आंबेडकर की वह चिट्ठी सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध नहीं है लेकिन कई पुस्तकों और मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि आंबेडकर ने अपने इस्तीफे वाली चिट्ठी में उन कारणों का उल्लेख किया था, जिसकी वजह से उनका नेहरू कैबिनेट से मोहभंग हो चुका था। वैसे तो यह बात आम है कि उन्होंने हिन्दू कोड बिल पर प्रधानमंत्री नेहरू और उनकी सरकार से मतभेद गहराने के बाद मंत्री पद से इस्तीफा दिया था लेकिन इसके अलावा उन्होंने इस बात का भी जिक्र किया था कि कैसे सरकार के अंदर रहते हुए उन्हें कई बार कई मोर्चों पर बेइज्जती झेलनी पड़ी थी।

रिपोर्ट्स में कहा गया है कि डॉ. आंबेडकर ने अपनी चिट्ठी में लिखा था कि उन्हें कैबिनेट में जगह तो दी गई थी लेकिन वित्त जैसे महत्वपूर्ण विभागों की जिम्मेदारी उन्हें नहीं दी गई थी, जबकि उनकी शैक्षणिक पृष्ठभूमि अर्थशास्त्र की थी। उन्होंने यह भी आरोप लगाया था कि उन्हें कैबिनेट की मुख्य समितियों का सदस्य भी नहीं बनाया गया था।

वे सरकार से असंतुष्ट थे, क्योंकि नेहरू सरकार पिछड़े वर्गों (पिछड़े वर्गों के लिए आयोग की नियुक्ति नहीं करना) और अनुसूचित जातियों के साथ उपेक्षापूर्ण व्यवहार कर रही थी। इसके अलावा डॉ. आंबेडकर पंडित नेहरू की विदेश नीति से असंतुष्ट थे। इसमें कश्मीर मुद्दा और पूर्वी पाकिस्तान का मुद्दा शामिल है।

आंबेडकर टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने लिखा था, “अब 4 साल, 1 महीना और 26 दिन हो गए हैं जब से मुझे प्रधानमंत्री ने अपने मंत्रिमंडल में कानून मंत्री का पद स्वीकार करने के लिए बुलाया था। यह प्रस्ताव मेरे लिए बहुत ही आश्चर्यजनक था। मैं विपरीत खेमे में था और अगस्त 1946 में अंतरिम सरकार के गठन के समय ही मुझे अयोग्य करार दिया जा चुका था। तब मुझे यह अनुमान लगाने के लिए छोड़ दिया गया था कि प्रधानमंत्री के रवैये में यह बदलाव लाने के लिए क्या-क्या हुआ होगा। मुझे संदेह था। मुझे नहीं पता था कि मैं उन लोगों के साथ कैसे पेश आ सकता हूँ जो कभी मेरे मित्र नहीं रहे।”