नई दिल्ली. जब शास्त्रीजी की मौत हुई तो हरिवंश राय बच्चन भी दिल्ली में ही थे, पहले विदेश विभाग के हिंदी अनुभाग में थे, फिर राज्यसभा सदस्य रहे तो उन्होंने भी अपनी आत्मकथा के चौथे भाग ‘दशद्वार से सोपान तक’ में उन दिनों शास्त्रीजी की मौत पर चल रही चर्चाओं बारे में लिखा है।

इस घटना को 56 साल गुजर गए, लेकिन फिर भी शास्त्रीजी की मौत को लेकर उठने वाले सवाल बंद नहीं होते। दरअसल, ज्यादा दिन नहीं हुए विवेक अग्निहोत्री की मूवी ‘ताशकंद फाइल्स’ और अनुज धर की किताब ‘यॉर प्राइम मिनिस्टर इज डैड’ को आए हुए। नेताजी बोस, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, दीनदयाल उपाध्याय और शास्त्रीजी, इन सबकी मौत को कभी भी उनके समर्थकों ने प्राकृतिक नहीं माना और बोस को तो आज तक जिंदा मानते हैं उनके चाहने वाले। लेकिन इन सबमें शास्त्रीजी की मौत को लेकर दिलचस्पी फिल्मकारों और लेखकों की अगर अभी भी कुछ नया रचने को प्रेरित करती है, तो उसकी एक बड़ी वजह है।

दरअसल, शास्त्री जी की मौत में पाकिस्तान ही नहीं रूस और अमेरिका का भी नाम आना। अब तक अलग-अलग सोर्सेज से मिली जानकारियां जितना केजीबी की तरफ इशारा करती हैं, उतना ही सीआईए की तरफ। केजीबी के रोल को लेकर काफी कुछ ‘ताशकंद फाइल्स’ में दिखाया गया है। ‘मित्रोखिन फाइल्स’ में केजीबी के गहरे राज दफन थे और भारत में उनका कारगुजारियों के भी। कैसे इंदिरा गांधी की सरकार के 4 केबिनेट मंत्री केजीबी के पे-रोल पर थे, उन फाइल्स से पता चला। लेकिन शास्त्रीजी की मौत के मामले में सीआईए पर शक गहराया नब्बे के दशक में एक किताब छपने के बाद।

नब्बे के दशक में जब ग्रेगरी डगलस नाम के एक अमेरिकी पत्रकार की किताब आई थी, तो अमेरिका में हंगामा मच गया था और भारत के कुछ तबकों में खलबली। अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के एक ऐसे जासूस के साथ बातचीत के बाद वो किताब लिखी गई थी, जिसको खुफिया ऑपरेशंस में विशेषज्ञता हासिल थी और उसका कार्यक्षेत्र रहा था सोवियत रूस, सो रूस की बदनाम खुफिया एजेंसी केजीबी कैसे काम करती है, इसका उसे जमीनी तजुर्बा था। उसका नाम था उसका रॉबर्ट ट्रम्बुल क्राउले और वो सीआए में 1947 से काम कर रहा था। इस किताब में सीआईए के कई राज थे, पर्किंसन की चपेट में आकर मौत की दहलीज पर खड़े रॉबर्ट ने भारत को लेकर भी ग्रेगरी की इस बुक ‘कन्वर्सेसंस विद द क्रो’ में दो बड़े खुलासे किए। एक शास्त्रीजी की मौत के बारे में और दूसरा भारत के परमाणु वैज्ञानिक होमी जहांगीर भाभा की विमान दुर्घटना में रहस्मयी मौत को लेकर।

इस किताब के मुताबिक दोनों की मौत में सीआए का रोल था। हालांकि ये खुलासे भी दबा दिए गए। इस किताब में डॉ. भाभा की हत्या के लिए प्लेन उड़ाने की बात तो विस्तार से इंटरव्यू में क्राउले ने बताई है, लेकिन उस इंटरव्यू में दो बार शास्त्रीजी का भी जिक्र आया और उससे पता चला कि सीआईए ही उनकी मौत के पीछे थी।

ये अलग बात है कि इंटरव्यू लेने वाला पत्रकार ना तो ज्यादा शास्त्रीजी को जानता था और ना उसकी उनकी मौत के रहस्य में दिलचस्पी थी, तभी ज्यादा विस्तार से नहीं पूछा। ग्रेगरी की किताब से क्राउले के इंटरव्यू के वो दो सवाल और जवाब आप यहां पढ़ सकते हैं, जिसमें भाभा की मौत के बारे में पूछा जा रहा है, लेकिन उनमें शास्त्रीजी का भी जिक्र आ जाता है.