प्योंगयांग. उत्तर कोरिया के सुप्रीम लीडर किम जोंग-उन की परमाणु हथियारों की सनक दुनिया को किस मोड़ पर लाकर खड़ा करेगी ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा. बहरहाल, उत्तर कोरिया के इस दबंग शासक ने दो दिन पहले ही यहां की संसद में एक कानून लाकर देश को परमाणु हथियारों से संपन्न राष्ट्र घोषित कर डाला है.

इसके साथ एक बड़ा एलान उत्तर कोरिया के इस तानाशाह ने किया है कि अगर उसके देश को 100 साल तक भी प्रतिबंधित कर दिया जाए, तो भी वह अपने परमाणु हथियार नहीं छोड़ेगा. ले देकर बात यही है कि हम तो जैसे हैं वैसे रहेंगे की तर्ज पर उत्तर कोरिया अमेरिका सहित दुनिया के देशों की नाक में दम करता रहेगा. इस देश ने अमेरिकी प्रतिबंधों पर डर के आगे जीत की कहावत सिद्ध कर डाली है और फिर से परमाणु परीक्षण के लिए तैयार है. आलम ये है कि दुनिया का ताकतवर देश भी इस कोरियाई तानाशाह के आगे बेबस नजर आ रहा है.

क्या है परमाणु हथियार राष्ट्र
परमाणु हथियार राष्ट्र का मतलब है एक ऐसा देश जिसने 1 जनवरी 1967 से पहले परमाणु हथियार या अन्य परमाणु विस्फोटक उपकरण का निर्माण और विस्फोट किया हो. हर परमाणु हथियार राष्ट्र के लिए ये भी शर्त है कि वो अपने अधिकार के तहत हथियारों, प्रतिबंधित परमाणु सामग्री और परमाणु सुविधाओं के विनाश की लागत को भी पूरा करेगा.

गौरतलब है कि साल 1964 तक अमेरिका ही इकलौता परमाणु हथियार राष्ट्र था. हालांकि पहले से ही 1964 तक, फ्रांस, यूनाइटेड किंगडम, चीन और सोवियत संघ ने परमाणु हथियार क्षमता विकसित कर ली थी. बाद में इन देशों के साथ भारत, पाकिस्तान, उत्तर कोरिया और इज़राइल भी इन देशों की श्रेणी में आ गए.

उदाहरण के लिए यूके एक परमाणु हथियार राष्ट्र है. इस तरह के राष्ट्र के तौर पर उसकी दुनिया के लिए जवाबदेही है. वह जनता, उद्योग और अंतरराष्ट्रीय भागीदारों के लिए जिम्मेदार है. इसके तहत वह परमाणु सुरक्षा उपायों और अप्रसार उपायों के अनुपालन के कानूनी वादों से बंधा है.

एक परमाणु राष्ट्र के तौर पर वह आश्वासन और विश्वास देता है कि उसकी असैन्य परमाणु सामग्री को सैन्य या हथियार कार्यक्रमों में नहीं बदला जाएगा. परमाणु हथियारों के प्रसार को आज के सबसे गंभीर और चुनौतीपूर्ण सुरक्षा मुद्दों में से एक के तौर पर देखा जाता है. एक परमाणु हथियार राष्ट्र के तौर पर उत्तर कोरिया का उदय इन हथियारों के निरस्त्रीकरण की सभी उम्मीदों पर पानी फेरता सा दिखता है.

रबर स्टैंप संसद में किम का कानून
उत्तर कोरिया में नाममात्र की संसद यानी रबर स्टैंप संसद ने गुरुवार को एक ऐतिहासिक कानून पास किया. देश की आधिकारिक कोरियन सेंट्रल न्यूज एजेंसी के मुताबिक गुरुवार को उत्तर कोरिया की संसद सुप्रीम पीपुल्स असेंबली ने 2013 के कानून को बदलकर एक नया कानून पास किया.

दरअसल इस कानून में सबसे पहले उत्तर कोरिया की परमाणु स्थिति की रूपरेखा तय की गई थी. मूल 2013 के कानून में कहा गया था कि उत्तर कोरिया परमाणु हथियारों का इस्तेमाल शत्रुतापूर्ण परमाणु राज्य से आक्रमण या हमले को रोकने के लिए कर सकता है और जवाबी हमले कर सकता है. नया कानून इससे आगे जाता है. अब नए कानून के तहत किम जोंग- उन ने अपने देश को परमाणु हथियार वाला राष्ट्र घोषित कर डाला है.

क्या है नए कानून में
उत्तर कोरिया की परमाणु स्थिति का ये नया कानून उन शर्तों को बताता है जिनके तहत उत्तर कोरिया परमाणु हथियारों का इस्तेमाल कर सकता है. इसके तहत जब उत्तर कोरिया के नेतृत्व को ये लगे कि उसके दुश्मन की ताकत उस पर जल्द ही गैर परमाणु और परमाणु हमला कर सकती है तो वह परमाणु हथियारों का इस्तेमाल कर सकता है.

इसके तहत यदि उत्तर कोरिया के नेतृत्व सहित सामूहिक विनाश के हथियारों से देश या उसके “रणनीतिक लक्ष्यों” को निशाना बनाकर अवश्‍यंभावी हमला किया जाता है, तो वह पहले ही परमाणु हमले करने का अधिकारी है.

ये नया कानून अन्य देशों के साथ परमाणु प्रौद्योगिकी को साझा करने पर भी प्रतिबंध लगाता है. किम के मुताबिक परमाणु हथियार नीति पर कानून बनाने की सबसे अहम बात ये है कि परमाणु हथियारों को लेकर उत्तर कोरिया किसी की बात नहीं सुनेगा.

इसमें कभी बदलाव नहीं होगा, ताकि दुनिया का कोई देश उनके परमाणु हथियारों पर कोई सौदेबाजी न कर सके. उन्होंने कहा फिर चाहे वो हमें 100 दिन, 1,000 दिन, 10 साल या 100 साल के लिए ही प्रतिबंधित क्यों न कर दें.

हम नहीं छोड़ेगे परमाणु हथियार
किम जोंग-उन ने कहा है कि उत्तर कोरिया अपने परमाणु हथियारों को कभी नहीं छोड़ेगा, भले ही उसके देश को “100 साल” के लिए प्रतिबंधित कर दिया जाए. किम ने ये बात संसद में उत्तर कोरिया को परमाणु हथियार देश (Nuclear Weapons State) घोषित करने वाले कानून के पास होने पर कही.

इस कानून के तहत हमले की आशंका के तहत प्योंगयांग (Pyongyang) को अपनी रक्षा के लिए शुरू में ही परमाणु हमलों का इस्तेमाल करने की इजाजत दी गई है. परमाणु रणनीति में पहला हमला या प्रीमेप्टिव स्ट्राइक भारी बल का इस्तेमाल कर पहले ही अचानक किया जाने वाला हमला है. उत्तर कोरिया के इस तानाशाह के इस कदम से इस क्षेत्र और तनाव बढ़ने की आशंका है.

आत्मरक्षा का हक नहीं छोड़ेंगे
उत्तर कोरिया के सुप्रीम लीडर किम जोंग-उन ने कहा, “हम अभी जिन अस्थाई मुश्किलों का सामना कर रहे हैं, उन्हें कम करने के लिए हम अपने आत्मरक्षा के अधिकारों को कभी नहीं छोड़ेंगे, जो हमारे देश के अस्तित्व और हमारे लोगों की सुरक्षा को पुख्ता करते हैं.”यदि प्योंगयांग के नेतृत्व पर हमला होता है तो इस कानून के तहत उत्तर कोरिया की सेना के सहज ही दुश्मन की ताकतों के खिलाफ परमाणु हमले करने की जरूरत तय होती है. इसमें दुश्मन का उकसावा और उकसावे के लिए प्रेरित करने को भी हमला माना जाएगा.

किम ने कहा कि ये कानून उनकी परमाणु स्थिति को “अपरिवर्तनीय” बनाता है और परमाणु निरस्त्रीकरण से संबंधित किसी भी तरह की बातचीत को खत्म करता है. किम ने कहा,”जब तक पृथ्वी पर परमाणु हथियार मौजूद हैं, और साम्राज्यवाद और अमेरिका और उसके अनुयायियों के उत्तर कोरियाई विरोधी युद्धाभ्यास जारी रहेंगे, हमारे परमाणु बल को मजबूत करने की हमारी सड़क कभी खत्म नहीं होगी.”

अमेरिका और दक्षिण कोरिया पर टेढ़ी नजर
किम जोंग उन ने दक्षिण कोरिया (South Korea) की अपनी पारंपरिक हमले की क्षमताओं का विस्तार करने और अमेरिका के साथ बड़े पैमाने पर सैन्य अभ्यास को फिर से शुरू करने की योजना के लिए आलोचना की, उन्हें “खतरनाक” बताया.किम जोंग उन का कहना है कि संयुक्त राज्य अमेरिका का मकसद केवल हमारी परमाणु शक्ति को खत्म करना ही नहीं, बल्कि अंततः हमें आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर करना है या हमारे परमाणु हथियारों को छुड़वा कर हमारे आत्मरक्षा के अधिकारों को कमजोर करना है, ताकि वे किसी भी वक्त हमारी सरकार को गिरा सकें.

फिर से परमाणु परीक्षण की तैयारी
उत्तर कोरिया की संसद में देश को परमाणु हथियार राष्ट्र घोषित करने का यह कानून उस वक्त पास हुआ, जब उत्तर कोरिया पांच साल बाद अपना परमाणु परीक्षण फिर से शुरू करने की तैयारी में है. वैश्विक परिदृश्य में उत्तर कोरिया पर नजर रखने वाले जानकारों का मानना है कि ये देश अपनी परमाणु परीक्षणों की पैरवी के लिए ये कानून लेकर आया है. गौरतलब है कि साल 2018 के ऐतिहासिक शिखर सम्मेलन में इस मसले का हल करने की कोशिश की थी.

तब तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प और विश्व के नेताओं की प्योंगयांग को उसके परमाणु हथियारों के विकास पर रोक लगाने की ये कोशिश भी नाकाम रही थी. किम ने इसके लिए साफ तौर पर इंकार कर दिया था. इसके बाद अमेरिका ने इस मामले में दक्षिण कोरिया के सहारे किम जोंग उन से बात करने की कोशिश की थी, लेकिन इस पेशकश को भी परमाणु हथियार के दीवाने इस देश ने ठुकरा दिया था.