ये चार फ़िल्में हैं ‘देवदास’, ‘आन’, ‘राम और श्याम’ और ‘शक्ति’. ये फ़िल्में शनिवार और रविवार को दिखाई गईं.

इन फ़िल्मों को देखने के लिए बड़े बुजुर्ग से लेकर युवा पीढ़ी के दर्शक भी पहुंचे. कुछ शहरों में हमने दिलीप कुमार के इन फैन्स से बात की और उन्होंने अपने प्रिय अभिनेता की अदाकारी के अलग-अलग पहलुओं पर बात की.

64 साल के डॉक्टर एके बग्गा कहते हैं, “हम उनके ज़माने के हैं. मैंने बहुत छोटी उम्र से ही उनकी फ़िल्में देखना शुरू कर दिया था. उनमें एक सौम्यता और शिष्टता थी.”

“दिलीप कुमार सिर्फ़ हीरो नहीं थे उस ज़माने में हीरो की पूजा होती थी क्योंकि हीरो कभी गलत नहीं होता था. ठीक भी था हम सब हीरो बनना चाहते थे लेकिन अब ज़माना बदल गया है. विलेन में भी खूबियां होती है.”

वो कहते हैं, “आज का सिनेमा सचाई के बहुत करीब है. जबकि दिलीप कुमार के टाइम पर सितारे सचमुच आसमान में रहते थे. उनके घर, उनकी गाड़ियां, उनकी जीवनशैली सब कुछ सपने जैसा होता था. आम आदमी उसके बारे में सोचता ही नहीं था. उस ज़माने में दो चार फिल्मी पत्रिकाएं होती थीं, हमलोग उन्हीं से फिल्मी सितारों के बारे में जानते थे. दिलीप कुमार का जादू तो ऐसा था कि उनकी एक एक तस्वीर कई कई बार देखते थे. अब सबकुछ मोबाइल में सिमट गया है.”

“लेकिन मैं अपनी पत्नी शशि के साथ दिलीप कुमार की फ़िल्में देखने के लिए आया हूं क्योंकि उनके प्रति मेरा क्रेज आज भी कम नहीं हुआ है.”

ज़ीशा अमलानी कहती हैं, “दिलीप कुमार बहुत ऊँचे कद के एक्टर रहे, उनकी इमेज बहुत बड़ी है. आज भी कोई उनके आस पास नहीं दिखता. और उनकी स्क्रीन प्रजेंस तो लाजवाब थी. दिलीप कुमार की डायलॉग डिलीवरी का अंदाज़ भी एकदम निराला था. ”

वो बताती हैं, “आज मैंने उनकी फिल्म आन देखी. इस फ़िल्म को देखना बेहद दिलचस्प था. बिना नाराज़ हुए बहुत धीमे डायलॉग बोलते हुए भी काफी असर डाला करते थे और ये वाक़ई कमाल की बात है. आज के फिल्मों से काफी अलग. जो करैक्टर अब दिखाते हैं दिलीप कुमार उनसे बिलकुल अलग थे.”

“उनमें बतौर अभिनेता एक अलग तरह की ज़िद दिखाई देती है. वे बिना किसी आडंबर के भी शानदार लग रहे थे और ईमानदारी से कहूं तो उनका व्यक्तित्व लुभाता रहा. फ़िल्म आन के हर फ्रेम पर उनका असर दिखता है.”

वो कहती हैं, “हालांकि एक बात मुझे थोड़ी अज़ीब ज़रूर लगी है दिलीप कुमार की फिल्मों में, वो महिलाओं के लिए स्टैंड लेते नहीं दिखे. हो सकता है ऐसी कोई फ़िल्म हो भी उनकी लेकिन अभी तक तो नहीं दिखी है. इसके अलावा शायद उस दौर में महिलाओं के मुद्दे वाली फ़िल्में भी बहुत कम बनती होंगी.”

क़ानूनविद निमेश दासगुरू कहते हैं, “दिलीप कुमार से हमारा परिचय हमारे पिता ने ही कराया था. वे एक लीजेंड थे और जब भी हमारे पिताजी उनके बारे में बात करते थे तो उनको दिलीप साहब ही बोलते थे. तो बचपन से ही दिलीप साहब हमारे ज़हन में बस गए. सच कहूं तो आम आदमी के लिए आज भी दिलीप कुमार का यही कद है.”

“हर कोई न केवल उनके काम के लिए बल्कि उनके तौर-तरीकों और शिष्टाचार के लिए भी उनका सम्मान करता था. लोगों पर उनकी स्क्रीन की छवि का ऐसा असर था कि लोग असल ज़िन्दगी में उनका सम्मान करते थे . ये बहुत बड़ी बात है.”

“अब तो लोग साफ़ कहते है एक्टिंग अच्छी कर लेता है लेकिन आदमी पता नहीं कैसा है दिलीप कुमार की छवि ऐसी थी कि आम लोग उन्हें संदेह नहीं करते थे. जैसी नफ़ासत पर्दे पर दिखती थी, वैसी ही उनकी शख़्सियत थी और ये कोई मामूली बात नहीं थी. इसी वजह से उनके चाहने वाले हर ओर मिल जाएंगे.”

इलाहाबाद की रमा त्रिपाठी कहती हैं, “मैं ये दावे से कह सकती हूं कि दिलीप कुमार जैसा अभिनेता आज तक न हुआ है और आगे भी नहीं होगा. उनकी फ़िल्मों को देखते हुए कभी ऐसा नहीं लगता है कि हम फ़िल्में देख रहे हैं.”

वो कहती हैं, “ऐसा लगता है कि वह वास्तविक जीवन में दाख़िल हो गए हैं. मैं उनकी फ़िल्मों की प्रशंसक रही हूं इसलिए जब पता चला कि उनकी फ़िल्मों को इस तरह से दिखाया जा रहा है, वो भी उनके जन्म दिन पर तो हमने तुरंत टिकट बुक करा ली.”

“उनके सौवें जन्मदिन पर उनके फैंस के लिए इससे अच्छा तोहफ़ा क्या ही होगा. हालांकि चार ही फ़िल्मों को प्रदर्शित किया जा रहा है लेकिन युवा पीढ़ी को इससे दिलीप कुमार के अभिनय को जानने समझने का मौका मिलेगा.”

उदय प्रकाश मिश्र कहते हैं, “दिलीप कुमार जी के सौवें जन्मदिन पर हमारे शहर में पीवीआर सिनेमा जिस तरह का आयोजन किया गया है, वैसा आयोजन उनके हर जन्मदिन पर होना चाहिए. दिलीप कुमार की हर फ़िल्म को बड़े पर्दे पर दिखाना चाहिए, बार-बार तब जाकर आज की युवा पीढ़ी को पता चलेगा कि हम सब ने कितने बड़े कलाकार का काम देखा है.”

“उनकी हर फ़िल्म मैंने कई बार देखी है. उन्हें ट्रेजडी किंग कहा जाता है लेकिन आप देखिए रोमांस और कॉमेडी भी उनके आसपास कोई नहीं दिखता. हर कलाकार उनकी नकल करता नज़र आता है. उनकी किसी भी फ़िल्म को देखकर मुझे कभी कोई बोरियत महसूस नहीं हुई.”

“दिलीप कुमार के पहले और बाद में ना जाने कितने अभिनेता आए और गए लेकिन अभिनय की गहराई के लिहाज से कोई उनकी बराबरी का नहीं दिखा.”

इंदौर के दीपक टी कहते हैं, “अब तक तो दिलीप कुमार की फ़िल्में हमलोगों ने सिनेमा हॉल में ही देखी थी, सिंगल थिएटर में. यह पहला मौका है जब उनकी फ़िल्म हमारे शहर में मल्टीप्लेक्स में प्रदर्शित हो रही है. मैं तो दिलीप कुमार के साथ साथ अमिताभ बच्चन का भी फ़ैन रहा हूं, इसलिए शक्ति फ़िल्म देखने आया हूं, दोनों का रोल कितना शानदार था इस फ़िल्म में.”

“पिछले दिनों शोले को थ्री डी में बनाया गया, मेरी इच्छी तो यही है कि दिलीप कुमार की फ़िल्में भी थ्री डी में प्रदर्शित होनी चाहिए. जहां तक मुझे याद आता है दिलीप कुमार साहब की जो फ़िल्म मैंने सबसे पहले देखी थी वो राम और श्याम थी. इस फ़िल्म में उन्होंने दिखाया था कि उन्हें कॉमेडी में कोई हरा नहीं सकता. इसके बाद कर्मा और क्रांति तो कई कई बार देखी. ”

इंदौर के विमल जैन कहते हैं, “मैं दिलीप कुमार का मुरीद हूँ. प्रशंसक से भी ज़्यादा. जब मुझे पता चला कि दिलीप कुमार के 100वें जन्मदिन के उपलक्ष्य में पीवीआर सिनेमा में उनकी फिल्में दिखाई जाएगी तो मेने एक दिन पहले ही ऑनलाइन टिकट बुक कर दिया और उनकी फ़िल्म शक्ति देखने आ गया हूँ.”

“इसके बाद आन का टिकट बुक कराया है. मैं अपनी युवावस्था से ही दिलीप कुमार की फ़िल्में देखता आय़ा हूं. अब तो प्रोफेसर बन चुका हूं लेकिन मुझे हमेशा लगता है कि फ़िल्में भी शिक्षा का माध्यम हैं. दिलीप कुमार की जितनी भी फ़िल्में हैं, वो आपको जीवन के प्रति नया दृष्टिकोण मिलता है. शक्ति फ़िल्म को ही लीजिए, इसमें वे अपने बेटे का पक्ष नहीं लेते हैं, वे न्याय के साथ हैं और ये दिलीप कुमार का जादू है कि लोगों को लगता है कि ये आदमी ऐसा ही होगा.”

“वैसे एक बार मैं मुंबई उनके घर चला गया था, मिलने की इच्छा लिए. हालांकि वे अपने घर पर नहीं थे, लेकिन उनके स्टॉफ़ ने बिना जान पहचान के भी हमारे साथ अच्छा व्यवहार किया था. इससे पता चलता है कि दिलीप कुमार जितने अच्छे अभिनेता थे, उतने ही अच्छे इंसान भी थे.”