कुछ समय पहले एलन मस्क पर आरोप लगा था कि वे अपने प्लेटफॉर्म पर यहूदियों से नफरत को बढ़ावा दे रहे हैं. दरअसल मस्क ने अमेरिकी अरबपति जॉर्ज सोरोस पर कई बार उल्टी-सीधी कमेंट्स कीं. सोरोस यहूदी मूल के हैं. इसके बाद मस्क के बारे में इंटरनेशनल मीडिया में कई रिपोर्ट्स आईं, जो आरोप लगाती हैं कि वे सोरोस से किसी और वजह से नहीं, बल्कि इसलिए चिढ़ते हैं क्योंकि वे यहूदी हैं. इस बात को छोड़ दें तब भी कई थिंक टैंक मानते हैं कि यहूदी दुनिया में सबसे ज्यादा हेट-क्राइम झेलते रहे. प्यू रिसर्च सेंटर इनमें एक है.

इसकी शुरुआत क्रिश्चियेनिटी के आगे बढ़ने के साथ हुई. यहूदी खुद को सबसे पहला कैथोलिक माना करते. वे मानते थे कि उन्हीं के पूर्वजों ने सबसे पहली प्रेयर हिब्रू में पढ़ी थी. हालांकि ईसा मसीह के सूली पर चढ़ने के साथ ही मामला बदलने लगा. माना जाने लगा कि यहूदियों के ही धोखे की वजह से ईश्वर को सूली चढ़ना पढ़ा. इसे उस दौर में ‘डीअसाइड’ कहा गया, यानी भगवान की हत्या करना. इसके बाद से उनके लिए नफरत बढ़ने ही लगी.

अमेरिकन ज्यूइश कमेटी (AJC) ने इसपर कई रिसर्च पेपर निकाले. इसमें बताया गया है कि कैसे मध्यकाल में वो दौर भी आया, जब यहूदियों से कैथोलिक समुदाय नफरत करने लगा. वो मानने लगा कि यहूदियों के चलते ही उनके घर पर बच्चे बीमार होते हैं, या पशुओं की मौत होती है.

यहां तक कि ज्यूइश समुदाय के बारे में बातें फैलने लगीं कि वे अपनी सीक्रेट रस्मों के लिए क्रिश्चियन बच्चों को अगवा कर उनकी बलि दे देते हैं ताकि उनकी बुद्धि और ताकत बढ़ती जाए. ये अंधविश्वासों का दौर था, जब जादू-टोने जैसी बातें खूब मानी जातीं. यहूदियों को भी इसी नजर से देखा जाने लगा.

जल्द ही यहूदियों को लेकर इतने किस्म की अफवाहें फैल गईं कि कभी पूरे यूरोप में रहते यहूदी काम से हटाए जाने लगे. उनसे घर छीने जाने लगे. इसका एक्सट्रीम दूसरे वर्ल्ड वॉर के समय देखने को मिला. हिटलर खुद को सर्वश्रेष्ठ मानता. दूसरी तरफ तमाम हिंसा झेलने के बाद भी ज्यूइश खुद को कमतर नहीं मानते थे. वे लगातार खुद को साबित भी करते रहते थे.

यही बात हिटलर को नागवार गुजरी. उसने यहूदियों के नरसंहार का आदेश दे दिया. साल 1939 से अगले 6 सालों के भीतर लगभग 7 लाख यहूदियों का होलोकास्ट हुआ.

बचे हुए यहूदी एक जगह इकट्ठा होने लगे और इजरायल पहुंच गए. इस जगह को वे लोग अपना मूल स्थान मानते हैं. साल 1948 में मॉडर्न इजरायल बना, जो खुद को यहूदी राष्ट्र कहता है. आज इस देश को तकनीक और हथियारों के मामले में काफी ताकतवर माना जाता है. लेकिन ये ताकत एक बार फिर इजरायलियों यानी यहूदियों के लिए मुसीबत लेकर आने लगी.

हुआ ऐसा कि दूसरे विश्व युद्ध के साथ रिश्तों के कई तानेबाने तैयार हुए. अमेरिका हिटलर से चिढ़ता, और हिटलर यहूदियों से. होलोकास्ट के बाद अमेरिका ने यहूदियों से दोस्ती का वादा किया. उसने वादा किया कि वो अलग देश बनाकर आराम से रहने में उसकी पूरी मदद करेगा. उसने काफी हद तक ऐसा किया भी. लेकिन ये तब तक ठीक था, जब तक वो कमजोर दोस्त की मदद कर रहा था.

जल्द ही इस कमजोर दोस्त ने साबित करना शुरू किया कि वो अक्ल में, साइंस में, साहित्य में और पॉलिटिक्स में किसी से कम नहीं. बहुत से यहूदी शरण लेकर अमेरिका भी आए हुए थे. उन्होंने राजनीति में तेजी से अपनी पैठ बनाई. कई ऐसे संस्थान बने, जिनके लीडर यहूदी थे, और जिनका अमेरिका में दबदबा था.

इसके बाद से यहूदियों के लिए अमेरिकी व्यवहार बदलने लगा. अमेरिकी आम और खास लोग गुस्साने लगे कि यहूदी हर जगह अपनी घुसपैठ कर लेते हैं. यहां तक कि इसे ज्यूइश लॉबी नाम दिया गया. आरोप लगने लगा कि वे अपनी ताकत से अपने ही लोगों को फायदा दे रहे हैं. फिर तो गुस्सा बढ़ता ही चला.

इसके बाद से सेफ कहलाने वाले अमेरिका में भी यहूदी हेट क्राइम झेलने लगे. अमेरिकी खुफिया एजेंसी फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन (FBI) साल 1990 से हर वर्ष इसका डेटा रख रही है कि यहूदियों के साथ क्या हो रहा है. उसके मुताबिक, नब्बे की शुरुआत से अब तक हर साल हेट क्राइम की 6 सौ से 12 सौ तक घटनाएं उनके साथ होती हैं.

यूएस डिपार्टमेंट ऑफ जस्टिस की ऑडिट ऑफ एंटीसेमिटिक इन्सिडेंट्स नाम की शाखा इसी बात पर फोकस करती है कि अमेरिकी यहूदी किस हाल में हैं. उसके अनुसार, हर साल 2 हजार से ज्यादा यहूदियों पर शारीरिक हिंसा के मामले आते हैं. ये क्रिमिनल हमले नहीं, बल्कि नफरत के चलते हो रहे हमले हैं. यहूदियों पर हमले और मानसिक हिंसा हर साल के साथ 10 से 12% तक बढ़ रही है. ये अकेले अमेरिका का हाल है.