चांद सामने दिखता है. वैसे धरती से उसकी दूरी 3.83 लाख किलोमीटर है. ये दूरी सिर्फ चार दिन में पूरी हो सकती है. या हफ्ता भर. किसी भी अंतरिक्ष यान को सीधे किसी ग्रह पर क्यों नहीं भेजा जाता? क्यों उसे धरती के चारों तरफ चक्कर लगाने के लिए छोड़ दिया जाता है?

अपने यान को चंद्रमा पर चार दिन से हफ्ता भर के अंदर पहुंचा देता है. इसरो क्यों नहीं ऐसा करता? क्यों चार दिन के बजाय 40-42 दिन लेता है इसरो. क्या इसके पीछे कोई खास वजह है? है. वजह दो है. पहली बात तो ये धरती के चारों तरफ घुमाकर अंतरिक्ष यान को गहरे अंतरिक्ष में भेजने की प्रक्रिया सस्ती पड़ती है.

ऐसा नहीं है कि ISRO सीधे अपने यान को चंद्रमा तक नहीं भेज सकता. लेकिन NASA की तुलना में इसरो के प्रोजेक्ट सस्ते होते हैं. किफायती होते हैं. मकसद भी पूरा हो जाता है. इसरो के पास नासा की तरह बड़े और ताकतवर रॉकेट नहीं हैं. जो चंद्रयान को सीधे चंद्रमा की सीधी कक्षा में डाल सकें. ऐसे रॉकेट बनाने के लिए हजारों करोड़ रुपए लगेंगे.