नई दिल्ली।  विपक्षी दलों के गठबंधन ‘इंडिया’ के दरकने और नीतीश कुमार के अलग होने की पटकथा सितंबर से ही लिखी जाने लगी थी। लेकिन इस पटकथा को मजबूती दिसंबर में तब मिली जब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक बड़ा दांव खेल दिया। जानकारी के मुताबिक इस दांव के तहत केजरीवाल और ममता बनर्जी ने कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को गठबंधन का चेहरा बनाकर पेश किया।

इस पेशकश के साथ सितंबर में लिखी जाने वाली नीतीश कुमार के गठबंधन से अलग होने की कहानी को मजबूत आधार दे दिया। जानकारी के मुताबिक चार महीने से चल रही अंदरूनी उठापटक का नतीजा नीतीश कुमार के बिहार में मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के साथ दोबारा भाजपा के सहयोग से सरकार बनाने के तौर पर सामने आया।

सियासी जानकारों की मानें तो इंडिया गठबंधन में नीतीश कुमार सबसे महत्वपूर्ण भूमिका में थे। गठबंधन में सभी विपक्षी दलों को इकट्ठा करने की महत्वपूर्ण भूमिका बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही निभा रहे थे। सूत्रों की मानें तो मुंबई में हुई पहली बैठक के बाद एक महत्वपूर्ण फैसला लिया गया, जिसमें तय हुआ कि गठबंधन में कोई चेहरा नेता के तौर पर प्रोजेक्ट नहीं होगा। इस बात पर जदयू के नेता नीतीश कुमार भी सहमत हुए।

लेकिन कहानी में मोड़ तब आया जब दिसंबर में दिल्ली के अशोका होटल में होने वाली बैठक के दौरान कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे का नाम ममता बनर्जी की ओर से सामने रख दिया गया। जिसमें दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल समेत 12 अन्य दलों ने अपनी सहमति भी जताई थी। सूत्रों के मुताबिक बैठक में जब खरगे का नाम रखा गया तो नीतीश कुमार और लालू यादव नाराज होकर बैठक छोड़कर भी चले गए थे। कयास तभी लगाए जाने लगे थे कि अब बड़े दिनों तक नीतीश कुमार गठबंधन के साथ नहीं रहने वाले।

नेताओं के मुताबिक खरगे के नाम के प्रस्ताव यह पूरी पटकथा दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के घर पर हुई, जिसे ममता बनर्जी की एक मुलाकात के बाद लिखी गई। जदयू के नेता भी इस बात को मानते हैं कि जब पहले से हो तय हो गया था कि कोई चेहरा गठबंधन का नहीं होगा तो खरगे का नाम अचानक क्यों सामने आया। जदयू के प्रवक्ता केसी त्यागी कहते हैं कि कांग्रेस का एक कॉकश साजिश तहत इस पूरे मामले में अपनी भूमिका निभा रहा था।

वह कहते हैं की ममता बनर्जी की अरविंद केजरीवाल के घर पर हुई बैठक के बाद उनकी ओर से ही यह नाम प्रस्तावित किया गया। त्यागी के मुताबिक ऐसा तो होना ही नहीं था। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी इस्तीफा देने के बाद कांग्रेस पर ही ठीकरा फोड़ा था। जानकारों की माने तो सिर्फ अशोका होटल में खरगे के नाम के प्रस्ताव से ही सियासत का खेल बिगड़ता नहीं शुरू हुआ। यह तो महज एक बड़ा मुद्दा मिला था। लेकिन पूरी कहानी तो इससे तीन महीने पहले ही लिखी जाने लगी थी।

राजनीतिक जानकार और वरिष्ठ पत्रकार विकास चौधरी कहते हैं कि सितंबर में ही नीतीश कुमार ने मन बना लिया था कि अभी नहीं तो थोड़े दिनों बाद सही खेला जरूर होगा। वह कहते हैं कि नंबर के आखिरी सप्ताह में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पटना में कुछ अपने नजदीकी लोगों के बीच इस बात का जिक्र किया था कि गठबंधन में सभी दलों को जोड़ने में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। लेकिन कांग्रेस इसका नाजायज फायदा उठाने में लग गई है।

चौधरी कहते हैं कि जिस नाजायज फायदे की बात नीतीश कुमार ने की थी दरअसल व कुछ और नहीं बल्कि पार्टी की ओर से गठबंधन को आगे बढ़ाने में की जाने वाली लापरवाही थी। दरअसल नीतीश कुमार पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा के चुनाव से पहले ही गठबंधन के सभी कील कांटों को दुरुस्त करने के साथ सीटों के बंटवारे पर सहमति चाहते थे। लेकिन उनका आरोप है कि कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव की तैयारियों पर ज्यादा तवज्जो दी और गठबंधन को महत्व नहीं दिया।

सियासी गलियारों में चर्चाएं तभी शुरू हो गई थी जब नीतीश कुमार ने खुले मंच से यह कहना शुरू किया कि कांग्रेस गठबंधन के मामले में सीरियस नहीं है। सीटों के बंटवारे पर नीतीश कुमार ने जवाब में कहा था कि जब उनके पास वक्त होगा तो वह सोचेंगे। इस तरीके के खुले हमले नीतीश कुमार ने गठबंधन में शामिल कांग्रेस पार्टी पर करने शुरू किए थे।

राजनीतिक जानकार और वरिष्ठ पत्रकार प्रभात कुमार कहते हैं कि 28 जनवरी को बिहार में जो सियासी उथल-पुथल मची है उसकी पूरी पटकथा सितंबर से ही लिखी जाने लगी थी। वह बताते हैं कि रही सही कसर विधानसभा चुनावों के दौरान गठबंधन के सहयोगी दलों के बीच हुई उठा पटक ने पूरी कर दी। इसके अलावा दिल्ली के अशोका होटल में खरगे के नाम के प्रस्ताव के साथ नीतीश कुमार ने गठबंधन का चैप्टर क्लोज कर दिया था।