मेरठ। चार जून अर्थात चुनावी नतीजे की घड़ी रफ्ता-रफ्ता करीब आ रही है। दिल थामकर बैठे सियासी दिग्गज गुणा-भाग में जीत के तमाम दावे कर रहे हैं। एनडीए गठबंधन हो या इंडिया गठबंधन दोनों ही अपनी-अपनी जीत को लेकर आश्वस्त हैं।

चुनावी एतबार से अतीत के आइने में झांककर देखा जाए तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश की विभिन्न सीटों पर अलग-अलग पार्टियों की चुनौती रही है। मसलन, मेरठ और बागपत सीट पर समाजवादी पार्टी ने कभी जीत हासिल नहीं की। वहीं, बसपा बुलंदशहर और रामपुर में अब तक अपना खाता खोलने में नाकाम रही है। भाजपा का प्रदर्शन पश्चिमी यूपी की सीटों पर अन्य पार्टियों से बेहतर रहा है।

बुलंदशहर ऐसी सीट है, जहां 1991 से लगातार भाजपा कब्जा रहा है। सिर्फ 2009 में समाजवादी पार्टी ने भाजपा को यहां शिकस्त दी। यानी बीते आठ चुनावों में भाजपा ने यहां सात बार जीत हासिल की। इस बार यह सीट इंडिया गठबंधन में कांग्रेस के पास है और शिवराम भाजपा के दो बार के सांसद भोला सिंह के सामने अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। जहां तक कांग्रेस का सवाल है तो वह इस सीट पर 1984 के बाद कभी भी जीत हासिल नहीं कर सकी है। सुरक्षित सीट होने के बावजूद बसपा भी इस सीट पर कभी नहीं जीती। इसी तरह मेरठ में भी 1991 से लेकर अब तक हुए आठ चुनावों में भाजपा ने छह चुनावों में जीत हासिल की है। 1999 में कांग्रेस और 2004 में बसपा इस सीट से चुनाव जीती थी। समाजवादी पार्टी इस सीट पर कभी भी जीत हासिल नहीं कर सकी। इस बार सपा की सुनीता वर्मा भाजपा के अरुण गोविल को कड़ी टक्कर देती नजर आ रही हैं।

बागपत को आरएलडी का गढ़ माना जाता है। हालांकि, बीते दो चुनाव में भाजपा ने यहां आरलडी को शिकस्त देकर इस मिथक को तोड़ने की कोशिश की। इस बार भाजपा और आरएलडी गठबंधन के साथ इस सीट पर मैदान में हैं और आरएलडी के प्रत्याशी राजकुमार सांगवान की किस्मत का फैसला चार जून को होगा। यहां समाजवादी पार्टी कभी चुनाव नहीं जीती और न ही अपनी विरोधी पार्टियों के सामने चुनौती पेश कर सकी है। 1996 और 1998 में भाजपा इस सीट पर जीती थी। 1999 में कांग्रेस के टिकट पर अजित सिंह चुनाव जीते थे। 2004 और 2009 में भी चौधरी अजित सिंह आरएलडी के टिकट पर चुनाव जीते थे।

कैराना ऐसी सीट है जहां की जनता हर बार अपना नया सांसद चुनती है। 1991 के बाद से आज तक इस सीट पर कोई भी प्रत्याशी लगातार दो चुनाव नहीं जीत सका। 1999 और 2004 में लगातार दो बार आरएलडी के पास यह सीट रही, लेकिन दोनों बार आरएलडी के प्रत्याशी अलग-अलग थे। 1999 में अमीर आलम चुनाव जीते थे और 2004 में अनुराधा चौधरी सांसद बनी थीं।

1999 और 2004 को अपवाद मानें तो यहां की जनता हर बार नई पार्टी का सांसद चुनती रही है। हालांकि, 2014 और 2019 में यहां से भाजपा जीती, लेकिन इन दोनों चुनाव के बीच 2018 में हुकुम सिंह के निधन के बाद उप चुनाव हुआ और यहां से आरएलडी की प्रत्याशी तबस्सुम हसन चुनाव जीत गईं थीं। मौजूदा सांसद भाजपा के प्रदीप चौधरी एक बार फिर मैदान में हैं। उनके सामने इकरा हसन कड़ी चुनौती पेश कर रही हैं। इसी तरह अमरोहा में 1971 के बाद से कोई प्रत्याशी या पार्टी लगातार दो बार चुनाव नहीं जीत सकी। यहां मौजूदा सांसद बसपा के टिकट पर जीते दानिश अली हैं, जो इस बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। 1984 के बाद से यहां कांग्रेस ने भी जीत दर्ज नहीं की है।

बुलंदशहर, कैराना, सहारनपुर और बिजनौर ऐसी सीट रही है, जहां कांग्रेस 1984 के बाद से जीत का इंतजार कर रही है। हालांकि, इस बार कांग्रेस पश्चिमी यूपी की मात्र चार सीटों पर चुनाव लड़ रही है। इसमें सहारनपुर, अमरोहा, गाजियाबाद और बुलंदशहर की सीट शामिल हैं।