मुंबई. अभिनय के लिए तीन राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों से सम्मानित अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती जितने बेहतरीन और उम्दा कलाकार हैं, उतने ही अच्छे इंसान भी हैं। बिना किसी स्वार्थ और लालच के लोगों की मदद करना उनकी आदत रही है। फिल्म इंडस्ट्री में उनका बहुत सम्मान है और सलमान खान, शाहरुख खान और ऋतिक रोशन जैसे सितारे भी सामने पड़ते हैं तो सीधे पैरों को हाथ लगाते हैं। मिथुन को जुबान का धनी इंसान माना जाता है। एक बात उन्होंने कमिटमेंट कर दी तो फिर वह खुद की भी नहीं सुनते। इसका उनको नुकसान भी हुआ है, लेकिन प्राण जाई पर वचन न जाई, की परंपरा वाले मिथुन इसीलिए मिथुन दा कहलाते हैं।
ये उन दिनों की बात है जब 93 के बम धमाकों के बाद मुंबई में दंगे भड़क गए थे। निर्देशक विवेक शर्मा उन दिनों ‘तड़ीपार’ फिल्म में असिस्टेंट डायरेक्टर थे। वह बताते हैं, ‘जितने भी लोग दूर से आते थे, सबके रुकने की व्यवस्था मिथुन दा ने कमालिस्तान स्टूडियो के मेकअप रूम करवा दी ताकि किसी को कोई परेशानी न हो। उन दिनों ऐसा माहौल था कि अगले पल कब क्या हो जाए पता नहीं।’
मिथुन दा न सिर्फ फिल्म कर्मचारियों की मदद करते थे बल्कि उनकी निजी जरूरतों को भी पूरा करने में हमेशा आगे रहते थे। विवेक बताते हैं, ‘एक बार उन्होंने मुझे पूछ लिया कि तुम कहां रहते हो ? उन दिनों मैं किंगसर्कल रहता था। दादा को बताया कि किंगसर्कल में रहता हूं और बान्द्रा से हर्बर लाइन की ट्रेन बदल कर जाता हूं। मिथुन दादा भी उस समय बान्द्रा के में रहते थे। उन्होंने अगले दिन से कमालिस्तान स्टूडियो में जाने के लिए अपने मेकअप वैन में मेरे आने जाने की व्यवस्था करवा दी। मैं बान्द्रा स्टेशन से निकल कर उनके मेकअप वैन से कमालिस्तान स्टूडियो आता जाता था। कई बार तो दादा खुद ही मेकअप वैन में होते थे।’
मिथुन चक्रवर्ती ने सिनेमा से जुड़े वर्कर्स के लिए भी बहुत कुछ किया है। वह फेडरेशन ऑफ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्प्लाइज के चेयरमैन भी रह चुके है। उस दौरान उन्होंने वर्कर्स के हितों के लिए बहुत सारे काम लिए। जब भी वह मजदूर यूनियन के चुनाव में खड़े हुए तो उनकी एकतरफा जीत हुई है। विवेक शर्मा कहते है, ‘मैंने इंडस्ट्री में बहुत लोगों को बदलते देखा है, लेकिन मिथुन दा कभी नही बदले। हमेशा वह आत्मीय, प्रिय और जमीन से जुड़े हुए इंसान रहे है।’
मिथुन की याददाश्त का किस्सा सुनाते हुए विवेक बताते हैं, ‘आज के किसी कलाकार को अगर चार लाइन का डायलॉग बोलने के लिए दे दिया जाए तो वह उसको याद करने में घन्टों लगा देता है और उसके बाद जाकर शॉट देने के लिए तैयार होता है। लेकिन इस मामले में मिथुन दा की मेमोरी पॉवर बहुत ही तेज है। मुझे याद है जब ‘तड़ीपार’ की शूटिंग के दौरान ढाई पेज का सीन मिथुन दा को पढ़कर सुनाया तो एक ही बार सुनकर उन्हें ढाई पेज का सीन याद हो गया।’