नई दिल्ली। चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को नए विक्रम संवत के साथ 09 अप्रैल से वासंतिक नवरात्रि की शुरुआत हो जाएगी। चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को नए संवत्सर की शुरुआत के साथ वासंती नवरात्र की घट स्थापना मां दुर्गा की पूजा एवं पाठ का कार्य शुरू हो जाएगा। इस वर्ष यह पर्व नौ अप्रैल से शुरू होगा। इस साल चैत्र नवरात्रि पर 30 साल के बाद अमृत सिद्धि योग बनने जा रहा है, जो अत्यंत शुभकारी है। इस दौरान मां दुर्गा की आराधना करने से सभी कष्ट और दुखों से मुक्ति मिलती है।

नक्षत्रों में पहला नक्षत्र अश्विनी नक्षत्र माना गया है। अगर मंगलवार के दिन अश्विनी नक्षत्र हो तो यह अमृत सिद्धि योग कहलाता है। इस बार चैत्र नवरात्रि पर बन रहा यह संयोग काफी अद्भुद माना जा रहा है। लगभग 30 साल बाद बन रहे इस योग के संबंध में अथर्ववेद में बताया गया है कि अश्विनी नक्षत्र के दौरान माता की आराधना करने से मृत्यु तुल्य कष्टों से मुक्ति मिलती है। अश्विनी नक्षत्र नौ अप्रैल को सूर्योदय के 02 घंटे बाद प्रारंभ हो जायेगा।

यह जानकारी देते हुए  ज्योतिषाचार्य ने बताया कि इस दिन ब्रह्मा जी की विशेष पूजा के साथ नए पंचांग की पूजा की जाती है। उस दिन से नए पंचांग का श्रवण शुरू किया जाता है। इस दिन नए पंचांग के नव वर्ष के राजा, मंत्री व सेनाध्यक्ष कथा वर्षफल का श्रवण किया जाता है। इस दिन नए पंचांग का दान करना विशेष महत्व है। धार्मिक अनुष्ठान के क्रम में इस दिन साधक को प्रातःकाल तेल मालिश करके स्नान कर नए वस्त्र धारण कर ब्रह्मा जी की पूजा निम्न मंत्र- मम सकुटुम्बस्य सपरिवारस्य स्वजन परिजन सहितस्य वाआयुरारोग्ययै अस्वर्यादि सकल शुभ फलोतरोत्तर अभिवृध्यर्थ ब्रह्मा दी संवत्सर देवता ना पूजनम अहं करिस्ये से शुरू करनी चाहिए।

17 अप्रैल को हवन के साथ मां देवी की आराधना का नौ दिवसीय अनुष्ठान संपन्न हो जाएगा। पंचागों के अनुसार इस बार 09 अप्रैल मंगलवार को नवरात्रि शुरू होने से देवी का आगमन घोड़ा पर हो रहा है, जो शुभ नहीं है। इससे राज्य में भय और युद्ध की स्थिति बन सकती है जबकि 18 अप्रैल गुरुवार दसवीं के दिन माता हाथी पर प्रस्थान करेंगी। माता का प्रस्थान शुभकारी है। इसके प्रभाव से राज्य में अच्छी बारिश और उन्नत खेती की संभावना है।
पूजा करें विधिपूर्वक, होगा सकल कल्याण

पंडित  कहते हैं कि सर्वप्रथम नवीन वस्त्र धारण कर एक चौकी पर श्वेत वस्त्र बिछाकर उस पर हल्दी या केसर के रंगे हुए अक्षत से अष्टदल कमल बना कर उसके मध्य ब्रह्मा जी की मूर्ति या फोटो स्थापना करें। इसके बाद उनका षोडशोपचार पूजन करें। इसके पश्चात अन्य देवी-देवताओं, यक्ष, राक्षस, गंधर्व, ऋषि, मुनि, मनुष्य, नदी, पर्वत, पशु-पक्षी, कीटाणु का पूजन कर प्रार्थना करें। माता दुर्गा की आराधना शुरू कर इस दिन से सायंकालीन उपवास करना अनिवार्य हो जाता है। वासंतिक नवरात्र इसी दिन से शुरू की जाती है। इस दिन दुर्गा पूजा की घट स्थापना के साथ नवरात्र का पूजा पाठ करें।