नई दिल्ली. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि जिस भाव को देखता है। उसे नष्ट कर देता है। जब शनिदेव ने लंका पर दृष्टि डाली को सोने की लंका खाक हो गई। शनि स्थान की वृद्धि करता है और गुरु स्थान की हानि करता है। अतः कर्मफलदाता का बैठना इतना खराब नहीं जितनी उसकी दृष्टि होती है।
जब शनि एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है, तो ढाई महीने पहले अपना प्रभाव जमाना शुरू कर देता है। राशि में प्रवेश करते ही सर्वप्रथम शनिदेव जातक के कर्म अनुसार उसके मस्तिष्क पर सवार हो उसकी समस्त चेतना शक्ति का हरण कर लेते है। इस कारण जातक की निर्णय शक्ति भ्रमित हो जाती है। उसे अच्छे-बुरे का बोध समाप्त हो जाता है। जब शनिदेव राशि परिवर्तन करते हैं, तो उसके कुछ अन्य लक्षण घटित होते हैं। उनका वर्णन नीचे हैं-
1. जातक का मस्तिष्क बिना कारण के गर्म होता है। स्त्री हो या पुरुष लड़ने की भावना बनी रहती है। चिड़चिड़ापन रहता है और खुद पर भी गुस्सा करता है। महिला कलह से सारे घर को अंशात कर दें तो समझें कि उसकी जन्म राशि में शनि आ गया। इसमें स्त्री का दोष नहीं, उसके सिर पर शनि का दबाव होता है।
2. घर में पैसा टिकता नहीं है। घर में आने से पहले निकलने का रास्ता बन जाता है।
3. लंबी बीमारी पकड़ लेती है। जैसे- टीबी, कैंसर आदि भयानक रोग होना।
4. पति-पत्नी में लड़ाई होती है और तलाक हो जाए। तो समझना चाहिए शनि लग गया है। उसके साथ अन्य ग्रह भी अशुभ प्रभाव दे रहे हैं। इसलिए किसी अच्छे पंडित को कुंडली दिखा देनी चाहिए।
5. एक बच्चा पढ़ने में बहुत होशियार है। वह अच्छे मार्ग पर चल रहा है, लेकिन पढ़ना छोड़ देता है। कभी-कभी यह भी देखने में आता है कि दुकान अच्छी चल रही है, अचावक काम ठप्प पड़ जाता है। तब समझना चाहिए कि राशि में दोष आ गया है। शनि के साथ जब और कोई ग्रह होता है। तभी विशेष नुकसान होता है। शनि के उपाय करने से दोष निकल जाता है।