दिल्ली। कांग्रेस पार्टी ‘पुरानी पेंशन बहाली’ की मांग को धड़ाधड़ अपनी चुनावी गारंटी की सूची में शामिल कर रही है। हालांकि विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस पार्टी ने छत्तीसगढ़ और राजस्थान में सरकारी कर्मियों के लिए पुरानी पेंशन लागू कर दी थी। मध्यप्रदेश में इस मुद्दे को चुनावी गारंटी में शामिल किया गया है।

राजस्थान की चुनावी गारंटी में भी ओपीएस को जगह मिल गई है। कांग्रेस ने गारंटी दी है कि राजस्थान में दूसरी बार सरकार बनते ही कर्मचारियों के लिए ‘ओपीएस’ को कानून के जरिए पक्का कर दिया जाएगा। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा, तो वेट नहीं, वोट कीजिए और पोस्टल बैलेट से ओल्ड पेंशन स्कीम (ओपीएस) को लॉक कीजिए। केंद्र और राज्यों के सरकारी कर्मचारी संगठनों के नेता भी कह चुके हैं कि ओपीएस का विरोध कर भाजपा, सियासत में एक बड़ा जोखिम ले रही है।

दूसरी तरफ भाजपा, इस जोखिम से चिंतित नजर नहीं आ रही। कर्मचारी नेता बताते हैं कि इसके पीछे एक अहम वजह एनपीएस का पैसा है। वही पैसा जो ‘पेंशन फंड एंड रेगुलेटरी अथॉरिटी’ (पीएफआरडीए) में जमा है। यह केंद्र सरकार के नियंत्रण में है। केंद्र की मर्जी के बिना, एनपीएस का पैसा राज्यों को नहीं दिया जा सकता। केंद्र सरकार, इसे देने से साफ इनकार कर चुकी है। यानी ओपीएस के मुद्दे पर बॉल अभी केंद्र के पाले में ही है।

‘पुरानी पेंशन’ बहाली के लिए तीन नवंबर को दिल्ली के रामलीला मैदान में सरकारी कर्मियों ने चेतावनी रैली आयोजित की थी। कॉन्फेडरेशन ऑफ सेंट्रल गवर्नमेंट एम्प्लाइज एंड वर्कर्स के बैनर तले आयोजित हुई इस रैली में ऑल इंडिया स्टेट गवर्नमेंट एम्प्लाइज फेडरेशन सहित करीब 50 कर्मचारी संगठनों ने हिस्सा लिया था। कर्मियों का कहना था कि केंद्र सरकार को ओपीएस सहित दूसरी मांगों पर सकारात्मक विचार करना होगा। अगर केंद्र सरकार, एनपीएस की समाप्ति और ओपीएस की बहाली जैसी अन्य मागें नहीं मानती है तो कर्मचारी, अनिश्चितकालीन हड़ताल जैसा कठोर कदम भी उठा सकते हैं।

कर्मियों की मुख्य मांगों में पीएफआरडीए एक्ट में संशोधन करना या उसे पूरी तरह खत्म करना भी शामिल था। रामलीला मैदान में इस बाबत पोस्टर और बैनर लगाए गए थे। उन पर लिखा था कि सरकार, पीएफआरडीए और एफएसईटीओ को वापस ले। कर्मचारी संगठनों के नेताओं का कहना था कि जब तक इस एक्ट को खत्म नहीं किया जाता, तब तक विभिन्न राज्यों में लागू हो रही ओपीएस की राह मुश्किल ही बनी रहेगी। वजह, एनपीएस के तहत कर्मियों का जो पैसा कटता है, वह पीएफआरडीए के पास जमा है।

केंद्र सरकार, कह चुकी है कि वह पैसा राज्यों को नहीं लौटाया जाएगा। ऐसे में जहां भी ओपीएस लागू हो रहा है, वहां पर सरकार बदलते ही दोबारा से एनपीएस लागू किया जा सकता है। ऐसे में राज्यों द्वारा की जा रही ओपीएस बहाली में कई पेंच फंसे रहेंगे। कांग्रेस ने हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में भी ओपीएस लागू करने का वादा किया था।

कर्मचारी नेताओं का कहना है कि भले ही राजस्थान या किसी दूसरे राज्य में ओपीएस लागू हो गई है। अब कांग्रेस पार्टी ने राजस्थान में सरकारी कर्मचारियों के लिए ‘ओपीएस’ को कानून के जरिए पक्का करने की गारंटी दे दी है। इससे यह मामला खत्म नहीं हो जाता। राज्य में बिल पास होने से क्या होगा।

दूसरी सरकार आने पर वह बिल रद्द भी हो सकता है। उस कानून में कोई बदलाव हो सकता है। बिना केंद्र की सहमति या हस्तक्षेप के, एनपीएस का पैसा राज्यों को नहीं मिल सकता। ऐसे में राज्यों के कानून का कोई फायदा नहीं होगा। केंद्र सरकार पहले ही एनपीएस का पैसा लौटाने से मना कर चुकी है।

जब तक पीएफआरडीए एक्ट को खत्म नहीं किया जाता, तब तक विभिन्न राज्यों में लागू हो रही ओपीएस की राह मुश्किल ही बनी रहेगी। यही वजह है कि भाजपा, इस मुद्दे को लेकर ज्यादा चिंतित नहीं है। जो राज्य बाद में ओपीएस लागू कर रहे हैं, उन्हें आर्थिक दिक्कतों का सामना करना ही पड़ेगा। देश में पश्चिम बंगाल ही एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां पर एनपीएस लागू ही नहीं किया गया।