नई दिल्ली : राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में फिलहाल यमुना नदी के दूषित जल पर सियासी घमासान मचा हुआ है. यहां आम आदमी पार्टी “राजनीतिक स्थिरता” की प्रतीक बन गयी है. हालांकि इस बार विधानसभा चुनाव में पुनः जीत हासिल करना इस पार्टी के लिए थोड़ा चुनौतीपूर्ण कार्य बताया जा रहा है. केंद्र में सत्तारुढ़ भाजपा को भी अपनी रणनीति पर भरोसा है, इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बदलाव को लेकर आशान्वित हैं. करतार नगर इलाके में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए उन्होंने आम आदमी पार्टी की सरकार की तीखी आलोचना की.

पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल द्वारा हरियाणा पर दिए गए बयान पर पलटवार करते हुए मोदी ने कहा कि कोई कैसे बोल सकता है कि यमुना के जल में जहर मिलाया गया. हरियाणा और दिल्ली की अंतर्निर्भरता का जिक्र करते हुए उन्होंने सवाल किया कि क्या हरियाणा वालों के बच्चे, परिवार एवं नाते-रिश्तेदार दिल्ली में नहीं रहते. केजरीवाल के दावे को आधारहीन सिद्ध करने के लिए हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह ने दिल्ली से सटे पल्ला गांव में यमुना नदी से जल लेकर पिया. उनका मानना है कि केजरीवाल अपने राजनीतिक फायदे हेतु लोगों के मन में डर पैदा कर रहे हैं. विवाद का तकनीकी पक्ष यह है कि दिल्ली जल बोर्ड ने यमुना नदी के जल में जहरीले पदार्थों की मिलावट को लेकर स्पष्टीकरण दिया है, जिसके मुताबिक जहर की बात गलत है.

दिल्ली के राजनीतिक दंगल में यों तो भाजपा और आम आदमी पार्टी में सीधा मुकाबला है, लेकिन कांग्रेस इसे तिकोना बनाने की कोशिश कर रही है. लोकसभा चुनाव में केजरीवाल कांग्रेस के साथ खड़े थे, लेकिन विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के रवैये से केजरीवाल परेशान हैं. कांग्रेस नेता संदीप दीक्षित दिल्ली सरकार की आलोचना में सबसे आगे हैं. दीक्षित कांग्रेस के उन नेताओं में शुमार किए जाते हैं जो आम आदमी पार्टी से किसी भी किस्म के समझौते की मुखालफत करते हैं. सत्ता में वापसी के लिए कांग्रेस अपने घोषणापत्र में कई ऐसे वादे कर रही है जिसके बारे में रोचक चर्चा तो हो सकती है, लेकिन इन्हें अमलीजामा पहनाना मुमकिन नहीं है.

जयराम रमेश, देवेंद्र यादव एवं अन्य वरिष्ठ नेताओं के द्वारा जारी घोषणापत्र में जाति जनगणना कराने और पूर्वांचलियों के लिए एक मंत्रालय स्थापित करने समेत कई वादे किए गए हैं. साथ ही दिल्ली की महिलाओं को 2,500 रुपये की मासिक आर्थिक सहायता देने, 300 यूनिट तक मुफ्त बिजली और 500 रुपये में एलपीजी सिलेंडर देने का भी वादा किया है. आम आदमी पार्टी द्वारा बांटी जा रही मुफ्त रेवड़ियों के राजनीतिक मुनाफे को देखते हुए कांग्रेस भी इसी राह पर चल पड़ी है. हालांकि कर्नाटक में कांग्रेस को चुनावी वादे पूरे करने में पसीने छूट रहे हैं. इसलिए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे भी अपनी पार्टी के नेताओं को हिदायत दे चुके हैं कि ऐसे वादे न किए जाएं, जिन्हें पूरा करने में सरकारों को मुश्किलों का सामना करना पड़े. इसके बावजूद दिल्लीवासियों के लिए कांग्रेस के घोषणापत्र में 25 लाख तक का मुफ्त स्वास्थ्य बीमा, मुफ्त राशन किट की गारंटी, शिक्षित बेरोजगार युवाओं को एक वर्ष के लिए 8,500 रुपये प्रति माह सहायता व दिल्ली में 100 “इंदिरा कैंटीन” शुरू करने की योजना शामिल है.

कांग्रेस के लिए मुश्किल यह है कि इन सब वादों पर वोटर यकीन कर लें, इसके लिए स्थानीय स्तर पर संगठन में एकजुटता नहीं दिखाई देती है. वैसे भी सज्जन कुमार और जगदीश टाइटलर जैसे नेता जब सिख विरोधी दंगे के आरोपी बन गए तो कांग्रेस की छवि धूमिल हो गयी. शीला दीक्षित के विरुद्ध केजरीवाल ने बिजली व पानी के मुद्दे पर जिस तरह आंदोलन का नेतृत्व किया, उसकी चरम परिणति यह हुई कि दिल्लीवासियों ने केजरीवाल को अपना मसीहा मान लिया है.

भाजपा दिल्ली में लोकसभा की सभी सीटें जीत लेती है. लेकिन विधानसभा चुनाव में दशकों से बहुमत जुटा नहीं सकी है, जिसके परिणामस्वरूप यहां सत्ता का वनवास भोग रही है. भाजपा के पास नई पीढी में अब विजय कुमार मल्होत्रा, मदन लाल खुराना, साहिब सिंह वर्मा, किशन लाल शर्मा जैसे नेता नहीं हैं. कभी सुषमा स्वराज दिल्ली की राजनीति में प्रभावशाली भूमिका निभातीं थीं. भोजपुरी फिल्मों में अपने दमदार अभिनय का जलवा बिखेर चुके मनोज तिवारी भाजपा के टिकट पर कई चुनाव जीत चुके हैं. लेकिन दिल्ली की राजनीतिक जमीन को वे भाजपा के लिए इतना उर्वर नहीं बना पाए हैं कि विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की जा सके. पूर्वांचल के वोटर उनके गीतों का मजा तो जरूर लेते हैं, किंतु उन्हें विकास का एकमात्र प्रतीक नहीं मान रहे हैं. दिल्लीवासियों की बुनियादी समस्याओं को समझने अब भी भाजपा पीछे है. इसलिए केजरीवाल की “जेलयात्रा” के बावजूद भाजपा के पक्ष में लहर नहीं चल रही है. झारखंड में भी मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को भ्रष्टाचार के आरोप में जेल जाना पड़ा था, किंतु इससे उनकी राजनीतिक सेहत ख़राब नहीं हुई. भाजपा के रणनीतिकारों के अतिआत्मविश्वास को गलत साबित करते हुए सोरेन की पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा विधानसभा चुनाव में शानदार सफलता अर्जित की थी.

मोदी अपने भाषणों में आम आदमी पार्टी को दिल्ली के लिए “आप-दा” के रूप में प्रस्तुत करते हैं. उनका कहना है कि दिल्ली को ऐसी सरकार चाहिए जो गरीबों के लिए घर बनाए और दिल्ली को आधुनिक बनाए. पीएम के भाषण से असहमत हुआ जा सकता है, लेकिन इस सच से इंकार नहीं किया जा सकता है कि हर घर में स्वच्छ जल की आपूर्ति का वादा अभी भी अधूरा है और दिल्ली को टैंकर माफिया से मुक्त करना आवश्यक है. राष्ट्रीय राजधानी में जो युवा अपनी खुशियां बटोरने आते हैं उनका ठिकाना झुग्गी नहीं बने, यह सुनिश्चित करना दिल्ली सरकार की जिम्मेदारी होनी चाहिए. अब तो यह पांच फरवरी को ही वोटर तय करेंगे कि दिल्ली में किस पार्टी की सरकार गठित होगी.