नई दिल्ली: प्रदेश में तिलहन के क्षेत्रफल को बढ़ाने के लिए सरकार किसानों को लगातार प्रोत्साहित कर रही है. विशेष रूप से, सरसों की खेती पर जोर दिया जा रहा है, क्योंकि ये फसल कम समय और लागत में अच्छी आय देती है. ये कदम किसानों के आर्थिक सशक्तीकरण की दिशा में महत्वपूर्ण है, जिससे वे अपनी आय बढ़ा सकते हैं और आर्थिक स्थिरता हासिल कर सकते है.
प्रदेश में तिलहन के क्षेत्रफल को बढ़ाने के लिए सरकार किसानों को लगातार प्रोत्साहित कर रही है. विशेष रूप से, सरसों की खेती पर जोर दिया जा रहा है, क्योंकि ये फसल कम समय और लागत में अच्छी आय देती है. ये कदम किसानों के आर्थिक सशक्तीकरण की दिशा में महत्वपूर्ण है, जिससे वे अपनी आय बढ़ा सकते हैं और आर्थिक स्थिरता हासिल कर सकते है.
किसानों के लिए लाभकारी नई सरसों की किस्म, पूसा मस्टर्ड-32, कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा विकसित की गई है. ये किस्म विशेष रूप से सफेद रतुआ रोग के प्रति प्रतिरोधी है, जिससे फसल की सुरक्षा बढ़ती है. प्रति हेक्टेयर 25 से 27 क्विंटल तक उत्पादन देने की क्षमता इसे किसानों के लिए एक आकर्षक विकल्प बनाती है.
इसकी उच्च पैदावार से किसानों को बेहतर मुनाफा हासिल करने का अवसर मिलता है. पूसा मस्टर्ड-32 केवल आर्थिक लाभ ही नहीं, बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद है. इस किस्म में इरूसिक एसिड की मात्रा बेहद कम होती है, जो हृदय रोगों के जोखिम को कम करती है.
इसके अलावा, इसमें ग्लूकोसिनोलेट की मात्रा सामान्य सरसों की तुलना में बहुत कम होती है, जिससे ये स्वास्थ्य के लिए बेहतर विकल्प साबित होती है. सरसों का तेल भी झाग कम बनाता है, जो इसे और भी अधिक उपयोगी बनाता है.
किसान इस सरसों की खेती से प्रति हेक्टेयर 1 लाख से 1 लाख 10 हजार रुपये तक की कमाई कर सकते हैं. ये फसल न केवल निवेश के लिहाज से लाभकारी है, बल्कि इसके उत्पादन में भी काफी अच्छे परिणाम मिलते हैं. इससे किसानों को अपने आर्थिक स्थिति को सुधारने का एक मजबूत अवसर मिलता है.
पूसा मस्टर्ड-32 की एक और खासियत ये है कि ये केवल 100 दिन में पक कर तैयार हो जाती है. ये जल्दी पकने वाली फसल किसानों को तेजी से आय अर्जित करने का मौका देती है, जिससे वे अगले सीजन में और अधिक फसलें उगाने की योजना बना सकते हैं.