न्यूयार्क। यह एक ज्ञात तथ्य है कि पृथ्वी पर जीवन का मूल स्रोत सूरज ही है। सूर्य से मिलने वाला प्रकाश और उसकी गर्मी ही यहां जीवन को सुगम बनाती है। ऐसे में यदि कोई कहे एक समय ऐसा आएगा, जब सूरज ही पृथ्वी को निगल लेगा, तो विश्वास करना मुश्किल होगा। विभिन्न तारों पर अध्ययन करने वाले खगोलविदों का कहना है कि अब से करीब पांच अरब साल बाद सूरज अपने ग्रहों को निगलने लगेगा। हालांकि सूरज को खत्म होने में हजार अरब साल से ज्यादा समय लगेगा। यूरोपीय स्पेस एजेंसी की तरफ से भेजे गए गाइया स्पेस क्राफ्ट से मिले डाटा से सूरज को लेकर कई अहम जानकारियां मिली है। साथ ही ब्रह्मांड में ऐसे तारों को लेकर भी लंबे समय से शोध चल रहे हैं, जो अपने ही ग्रहों को निगलने लगते है।

सूर्य की उर्जा का स्रोत उस पर उपस्थित हाइड्रोजन है। हाइड्रोजन के नाभिकीय संलयन यानी न्यूक्लियर फ्यूजन से सूर्य पर उर्जी उत्पन्न होती है। गाइया स्पेसक्राफ्ट ने सैकड़ों तारों से जुड़े आंकड़े जुटाए है। इन्हीं का विश्लेषण करते हुए सूर्य के बारे में अनुमान लगाया जा रहा है। अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि करीब 8 अरब साल की उम्र होने तक सूर्य का तापमान चरम पर होगा। इसके बाद से धीरे-धीरे हाइड्रोजन कम होती जाएगी औऱ सूर्य का तापमान गिरने लगेगा।

कौन सा तारा किस तरह का व्यवहार करेगा, यह उसके आकार और द्रव्यमान आदि पर निर्भर करता है। सूर्य पर जब हाइड्रोजन की कमी होगी तब उसका आकार विस्तार लेना प्रारंभ कर देगा। उसका आकार सैकड़ों गुना बड़ा हो जाएगा। ऐसे तारे को रेड जायंट्स कहा जाता है। पहली बार करीब एक सदी पहले विज्ञानियों को रेड जाइंट्स तारों के बारे में पता चला था।

सौर व्यवस्था में तारे के इर्द-गिर्द ग्रह उसकी परिक्रमा करते है। इस प्रक्रिया में ग्रह तारे की गुरुत्व शक्ति से ही उससे बंधे रहते है और उसी तारे से उन्हें ऊर्जा भी मिलती है। जैसे ही तारा रेड जायंट्स में बदलता है, उसके ग्रह उसी में समाने लगते हैं। ऐसे तारों को कैनिबल स्टार यानी आदमखोर तारा कहा जाता है।

यूनिवर्सिटी आफ कैलिफोर्निया, सांताक्रूज के रिकार्डों यारजा ने कहा कि अभी यह तो स्पष्ट तौर पर नहीं कहा जा सकता है कि सूरज हमारी पृथ्वी को निगल लेगा, लेकिन इतना तय है यहां जीवन संभव नहीं रह जाएगा। इस बारे में गहराई से जानना इसलिए भी आवश्यक है, ताकि मानव समाज इस बात के लिए तैयार रहे कि एक समय ऐसा आएगा, जब उसे पृथ्वी को त्यागना पड़ेगा।

तारे में सामाने वाला हर ग्रह नष्ट नहीं हो जाता है। कुछ बड़े ग्रह नई व्यवस्था का आधार भी बनते है।
यारजा और उनके सहयोगियों ने एक माडल बनाया है, जिसमें तारे में विशाल ग्रहों के समाने का विश्लेषण किया गया है।
कभी-कभी विशाल ग्रह तारे से छिटककर अपने लिए एक नया आर्बिट बना लेता है। कुछ माडल के नतीजे बताते है कि नए आर्बिट में चक्कर लगाते हुए ग्रह कभी-कभी नई दुनिया के निर्माण का माध्यम बनते हैं।