नई दिल्ली. ‘असली हीरोपंती लोगों से जीतने में नहीं है, लोगों को जीतने में है’ हीरोपंती 2 का यह डायलॉग फिल्म के दुसरे ट्रेलर लॉन्च के बाद से फेमस हो गया था। दरअसल टाइगर की डेब्यू फिल्म हीरोपंती के बाद जिस तरह से इसके पार्ट 2 के धमाकेदार, हाई ऑक्टेन एक्शन और टाइगर-नवाज की जुगलबंदी से दो ट्रेलर रिलीज किए गए थे, उससे फैंस को काफी उम्मीदें थीं, मगर अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि कहानी कम पड़ जाने के कारण अहमद खान निर्देशित इस फिल्म में टाइगर श्रॉफ की हीरोपंती लोगों को जीतने में कामयाब नहीं रहती।

हालांकि कहानी की शुरुआत बेहद दिलचस्प ढंग से होती है, जहां जादूगरी का जलवा दिखाने वाला लैला (नवाजुद्दीन सिद्दीकी) एक ऐसा शातिर जालसाज हैकर है, जो फाइनेनशल ईयर की क्लोजिंग पर इंडिया के टैक्स के सारे पैसे हैक करने की फिराक में है। वहीं बबलू (टाइगर श्रॉफ) एक महत्वाकांक्षी हैकर है, जो पैसे कमाकर शोबाजी करना चाहता है। एक सरकारी मिशन के तहत लैला की पोल खोलने के लिए बबलू को नियुक्त किया जाता है, मगर वहां बबलू न केवल लैला की बहन इनाया (तारा सुतारिया) से प्यार कर बैठता है बल्कि हैकिंग जैसे गलत धंधे में लैला का साथी भी बन बैठता है। बबलू का जमीर तब जागता है, जब उसकी मुलाकात अमृता सिंह से होती, जो इस ठगी का शिकार होती है। लैला को इस बात का पता चलते ही वो अमृता को मारने की कोशिश करता है, उसी के बाद बबलू अपनी इस मुंह बोली मां को बचाने और अपराधियों को जेल भेजने की कसम खाता है।

निर्देशक अहमद खान ने अपनी इस फिल्म में टाइगर की एक्शन और माचो मैं इमेज के मुताबिक हैरतअंगेज ऐक्शन, रोमांस, गाने, मां का इमोशन, विलेन से पंगा, सोशल मेसेज, विदेशी लोकेशन जैसे सारे एलिमेंट ठूंसे, मगर हीरोपंती 2 एक लजीज बिरयानी नहीं बन पाई और उसका सबसे बड़ा कारण रहा बिना सिर-पैर की कहानी और कमजोर स्क्रीनप्ले। टाइगर के हीरोइज्म को दर्शाने के चक्कर में अहमद खान ने फिल्म में ओवर द टॉप वाले कई सीन रखे हैं, मगर कुछ ऐसे भी हैं, जो हास्यास्पद लगते हैं। जैसे बम विस्फोट की शिकार ट्रेन के चीथड़ों में से टाइगर श्रॉफ का उठकर मां का फोन रिसीव करना। हॉलिवुड स्टाइल का एक्शन, डांस, रोमांस, टाइगर और नवाज की खुन्नस के साथ साथ ‘मेरी जाती नहीं और सबको आती नहीं’ जैसे टाइगर के सीटीमार डायलॉग फैंस को आकर्षित कर सकते हैं, मगर फिर समस्या यह है कि हर दो-तीन सीन के बाद एक गाना आ जाता है और मारधाड़ होने लगती है। ए आर रहमान का संगीत बांध नहीं पाता और उसकी वजह है कि वो कहानी को आगे नहीं बढ़ाता। विसल बजा जैसे देखने लायक गाने के लिए भी अंत तक का इंतजार करना पड़ता है। हां अगर गानों को फिल्म से हटकर देखें, तो इसकी कोरियोग्राफी दर्शनीय है। फिल्म का क्लाइमैक्स दिलचस्प है।

एक्शन के मामले में टाइगर श्रॉफ हर तरह से बीस साबित हुए हैं। धमाकेदार एक्शन को उन्होंने अपने स्वैग और स्टाइल से बखूबी निभाया है। वहीं तारा सुतारिया इनाया की भूमिका में निराश करती हैं। टाइगर-तारा की केमिस्ट्री परदे पर उम्फ फैक्टर पैदा नहीं कर पाती। जहां तक नवाजुद्दीन सिद्दीकी के अभिनय की बात है, तो वे फिल्म का प्लस पॉइंट है। लैला का उनका किरदार दर्शकों का भरपूर मनोरंजन करता है। अमृता सिंह जैसी समर्थ अभिनेत्री को मुंह बोली मां के रूप में जाया कर दिया गया है।