मुंबई. अभिनेता रजा मुराद का जब भी नाम याद आता है तो जेहन में एक बुलंद आवाज गूंजती है। रजा मुराद ने फिल्मों में जितने खतरनाक किरदार निभाए हैं, उससे कहीं ज्यादा वह नर्म दिल इंसान हैं और आज भी मिट्टी से जुड़े हुए हैं। जब भी मौका मिलता है, वह अपने पैतृक शहर उत्तर प्रदेश के रामपुर जरूर जाते हैं। रजा मुराद अपने जमाने के मशहूर अभिनेता मुराद के बेटे हैं। मुराद ने अपने करियर में करीब 500 फिल्मों में काम किया और अभिनेता रजा मुराद अपने 51 साल के करियर में अब तक 548 फिल्मों में काम कर चुके हैं। 23 नवंबर 1950 को जन्मे रजा मुराद से ‘अमर उजाला’ ने उनके जन्मदिन के मौके पर ये खास बातचीत की। पढ़िए रजा मुराद की कहानी, उन्हीं की जुबानी…

अब अच्छी बात ये हो गई है कि मुंबई से बरेली की डायरेक्ट फ्लाइट हो गई है। बरेली से मेरा रामपुर बस 60 किलोमीटर दूर है। अभी पिछले महीने बरेली एक कार्यक्रम में गया था तो रामपुर चला गया। वहां सब मिलकर बहुत खुश हुए। अपने वतन से आपको दिली लगाव होता है जहां आप पले बढ़े हैं, वहां पर बचपन की बहुत सारी यादें जुड़ी होती हैं। वहां की एक एक गली, एक एक मोहल्ला और सारे बाजार मुझे अब भी याद हैं। वहां एक दिन भी रहता हूं तो मुझे बहुत अच्छा लगता है। अपने पुराने स्कूल भी मैं अक्सर जाता हूं। वहां का मशहूर हलवा मेरा पसंदीदा मिष्ठान्न है। वहां पैदल ही घूमता हूं, सब आते हैं, गले मिलते हैं, हाथ मिलाते हैं, सेल्फी लेते हैं। मैं किसी को मना नहीं करता हूं। मेरा अटूट रिश्ता है रामपुर से।

मुझे इंडस्ट्री में काम करते 51 साल हो गए और अब तक 548 फिल्में कर चुका हूं। हमारे पिता मुराद साहब 500 फिल्में कर चुके हैं। इस तरह से हम बाप बेटे ने 1000 से ज्यादा फिल्में कर ली। मुझे कई राजनीतिक पार्टियों से पार्टी ज्वाइन करने का ऑफर आता रहता है। लोग मुझे बहुत प्यार करते हैं। यही वजह है कि कभी राजनीति में नहीं गया। एक पार्टी में जाकर आप बाकी लोगों को अपने से दूर कर लेते हैं या वे ही आप से दूर हो जाते हैं। सभी पार्टियों में हमारे मित्र हैं तो, क्यों किसी एक के करीब आकर दूसरों से दूरी बना लें।

निर्माता निर्देशक बी आर इशारा की 1972 में रिलीज हुई अमिताभ बच्चन और जया भादुड़ी स्टारर फिल्म ‘एक नजर’ से मैंने करियर की शुरुआत की। बी आर इशारा को पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट के छात्रों से बहुत लगाव था। अपनी सुपरहिट फिल्म ‘चेतना’ भी उन्होंने इंस्टीट्यूट के छात्रों को लेकर ही बनाई थी। एफटीआई से पास होने के बाद मैं जब बी आर इशारा से मिलने गया तो उन्होंने कहा कि जब भी आपके लायक कोई रोल होगा तो बुलाऊंगा। फिल्म ‘एक नजर’ में वकील का जो किरदार मैने निभाया उसे पहले शत्रुघ्न सिन्हा करने वाले थे। लेकिन, तब तक शत्रुघ्न सिन्हा इतने व्यस्त हो चुके थे कि उनकी डेट्स में दिक्कत हो रही थी तो उनकी जहब बी आर इशारा ने मुझे बुलाया। मुझे आज भी याद है, 28 जुलाई 1971 को मैंने पहला शॉट दिया था।

राज कपूर साहब बिजनेस के लिए फिल्में नहीं बनाते थे। उन्हें फिल्म बनाने की दीवानगी थी और यही वजह थी कि दर्शक उनकी फिल्में दीवानगी से देखते थे। वह अपनी फिल्मों में नए नए प्रयोग करते थे। नए सिंगर शैलेंद्र सिंह और नरेंद्र चंचल को ‘बॉबी’ में लिया, सुरेश वाडकर और सुधा मल्होत्रा को ‘प्रेम रोग’ में लिया। दूसरे मेकर स्टार्स के साथ काम करते थे और राज साहब जिसको मौका देते थे, वह अपने आप ही स्टार बन जाता था। ‘मेरा नाम जोकर’ की लंबाई ज्यादा हो गई थी तो फिल्म उतनी नहीं चल पाई। उसमे सब जाने माने चेहरे थे, तो उन्होंने सोचा कि अब एक नई कास्ट के साथ फिल्म बनानी चाहिए और उन्होंने ऋषि कपूर और डिंपल कपाड़िया को लेकर ‘बॉबी’ बनाई। वह हमेशा फिल्म में सहायक कलाकारों में बड़े नाम रखते थे, जैसे ‘बॉबी’ में प्रेम नाथ, प्राण साहब और फरीदा जलाल को लिया। ‘राम तेरी गंगा मैली’ शुरू की तो उसमे भी सईद जाफरी, कुलभूषण खरबंदा और मुझे लिया।

मैं बहुत खुश नसीब हूं कि राज साहब के जीवन की आखिरी फिल्म ‘हिना’ में मैंने मेन विलेन का किरदार किया। वह ‘हिना’ का रोल मुझे सुनाकर गए थे। ‘हिना’ को वह 40 दिन में ही बनाना चाह रहे थे। उन्होंने मुझसे कहा था, रजा साहब अपनी तारीखें संभालकर रखिएगा, 40 दिन में हम नॉन स्टॉप एक फिल्म बनाएंगे। इसका नाम उन्होंने ‘रिश्वत’ रखा था। उनकी सेहत ठीक नहीं थी तो फिल्म शुरू नहीं कर पाए। उन्होंने तब मुझे जो कॉम्प्लीमेंट दिया था उसे मैं सीने से लगाकर रखूंगा। उन्होंने कहा था, ‘अपने 40 साल के फिल्मी करियर में तीन जो सबसे कमाल के एक्टर मैने डायरेक्ट किए हैं उनमें से एक आप हैं।’

ऋषिकेश मुखर्जी के साथ ‘नमक हराम’ में मैंने छोटा सा रोल किया था। ऋषिकेश मुखर्जी ने एक बात कही थी कि फिल्म में छोटा सा रोल है लेकिन ऐसे रोल जो खुशनसीब लोग होते हैं उनको ही मिलते हैं। ये रोल ऐसी छाप छोड़ेगा कि 10 साल तक दर्शक नहीं भूलेंगे। आज 50 साल होने को हैं और आज भी लोग उस बदनाम शायर को याद करते हैं। जहां भी मैं जाता हूं मुझसे फरमाइश की जाती है ‘नमक हराम’ की शेरो शायरी सुनाने की। एक काबिल निर्देशक ही अपने कलाकार की खूबियों को निखारकर परदे पर पेश करता है। वह कलाकार की कमजोरियों को छुपाना भी जानता है। मैंने राज साहब के साथ जितनी फिल्में की, सब किरदार लोगों को याद है। मैने सुभाष घई के साथ फिल्म ‘राम लखन’ की, उस फिल्म का किरदार आज भी लोगों को याद है।

मेरे ऐसे बहुत सारे किरदार हैं जो लोगों को अब याद हैं, संजय लीला भंसाली के साथ मैंने ‘गोलियों की रासलीला राम लीला’, ‘बाजीराव मस्तानी’ और ‘पद्मावत’ की, वे रोल भी लोगों को याद हैं। बात आपने मेरे पिता की छेड़ी है तो बता दूं कि मुझे मेरे वालिद मुराद साहब के नाम का न तो फायदा मिला और न ही नुकसान। मैंने कभी भी पिताजी से नहीं कहा कि किसी से परिचय करा दें। जैसे एक आम स्ट्रगलर ऑफिस के चक्कर काटता था। वैसे ही मैं भी अपनी तस्वीर लेकर निर्माताओं के दफ्तरों में जाता था। जीनत अमान मेरी सगी ममेरी बहन हैं लेकिन उनसे भी कभी मदद नहीं मांगी। मुझे मालूम था कि अगर मुझमें दम है तो अपनी जगह बना लूंगा। जितने भी एक्टर आए हैं सब अपने बलबूते पर आए हैं। अगर आपके अंदर प्रतिभा नहीं है तो आप किसी के भी बेटे या भाई हों, उससे कुछ होता नहीं है।

बदलते दौर की बात करें तो कुछ बातें आज अच्छी भी हैं कुछ अच्छी नहीं हैं। आज कास्टिंग एजेंसियां काम कर रही है। लेकिन हमारे जमाने में हीरो ही सब कुछ होता था। हीरो ही हीरोइन, विलेन और म्यूजिक डायरेक्टर के नाम का सुझाव देता था। किसी की हिम्मत नहीं होती थी कि हीरो के सुझाव को अनदेखा कर दे। आज हर आदमी अपना काम कर रहा है। पहले सेट पर कोई लड़की नहीं होती थी, आज हर डिपार्टमेंट में लडकियां काम कर रही हैं। पहले गुरु दत्त, विमल रॉय, महबूब खान, वी शांताराम, राज कपूर जैसे लोग हमारे इंडस्ट्री के पिलर रहे हैं। वे फिल्में दिल से बनाते थे। आज फिल्में दिल से कम दिमाग से ज्यादा बन रही हैं ।

आज बड़ी अच्छी बात है कि हर काम बड़ी प्लानिंग से हो रहा है। जबकि उस समय प्लानिंग से काम नहीं होता था। कई बार सेट पर ही डायलॉग लिखे जाते थे। कई बार हीरो देर रात तक पार्टी करता था तो अगले दिन दो बजे सेट पर पहुंचता था और किसी की कुछ कहने की हिम्मत नहीं होती थी। आज के एक्टर काफी अनुशासित हैं। बच्चन साहब आज भी बहुत ही अनुशासित हैं इसलिए अभी तक काम कर रहे हैं। आज अगर आप को चलना है तो नौजवान पीढ़ी के साथ चलना पड़ेगा।