नई दिल्ली: ज्योतिष शास्त्र में बताया गया है कि शनि देव न्याय के देवता हैं। ऐसा इसलिए जातकों को कर्मों के अनुसार फल प्रदान करते हैं। जिस जातक की कुंडली में शनि शुभ स्थिति में होते हैं, उन्हें कई प्रकार के सुख-सुविधाओं की प्राप्ति होती है। वहीं जिस जातक की कुंडली में शनि की साढ़ेसाती, ढैय्या या महादशा का प्रभाव पड़ता है, उन्हें मानसिक, शारीरिक व आर्थिक रूप से कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
ज्योतिष शास्त्र में बताया गया है कि शनि सबसे धीमी गति में चलते हैं। उन्हें एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करने के लिए ढाई साल का समय लगता है। इस दौरान शनि कई प्रकार से अपनी चाल बदलते हैं। लेकिन इनका प्रभाव तीन राशियों पर बहुत कम पड़ता है। बता दें कि शनि देव के 3 प्रिय राशियां हैं, जिनपर शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या का प्रभाव बहुत हद तक कम पड़ता है। आइए जानते हैं, किन राशियों पर पड़ता है शनि की साढ़ेसाती का कम प्रभाव।
ज्योतिष विद्वानों के अनुसार, शनि देव मकर और कुंभ राशि के स्वामी हैं और शनि की उच्च राशि तुला है। ऐसे में इन राशियों पर शनि की साढ़ेसाती का प्रभाव बहुत कम पड़ता है।
ज्योतिष शास्त्र में बताया गया है कि जिस जातक की कुंडली में चंद्रमा की स्थिति मजबूत होती है और उसमें शनि की साढ़ेसाती भी चल रही है। ऐसी स्थिति में शनि का नकारात्मक प्रभाव कम पड़ता है। इस अवस्था में शनि की साढ़ेसाती बहुत फलदाई साबित होती है।
किसी जातक की कुंडली में यदि शनि तीसरे, छठे, आठवें या बारहवें भाव में होते हैं तो ऐसी स्थिति में शनि की दृष्टि कमजोर होती है और ऐसे में इन राशियों पर शनि के अशुभ प्रभावों का सामना नहीं करना पड़ता है।