श्रीलंका. महिंदा राजपक्षे को कभी सिंहला बहुसंख्यक ‘वॉर हीरो’ के तौर पर देखा जाता था. उनके सिर पर देश में हिंसक ‘तमिल फ़्रीडम’ की मुहिम चलाने वाली एलटीटीई को जड़ से मिटाने का सेहरा भी बंधता रहा है.
लेकिन जानकारों को लगता है कि महिंदा और उनके परिवार ने देश पर जिस तरह से राज किया, वो लोगों को अखर रहा है.
कोलंबो यूनिवर्सिटी में पॉलिटिकल इकोनोमी के प्रोफ़ेसर फ़र्नांडो के मुताबिक़, “आप क़र्ज़ लेते गए, फिर उस पैसे का क्या हुआ साफ़ तौर पर पता नहीं चला. साथ ही आपने इस बात पर ध्यान ही नहीं दिया कि आपके सरकारी ट्रेज़री में विदेशी मुद्रा ख़ाली होती चली गई. क्या कह कर अब लोगों का ग़ुस्सा ठंडा कीजिएगा?”
श्रीलंका के इतिहास में शायद ऐसा पहली बार हो रहा है कि ग़ुस्सा हर तबके, हर समुदाय और हर उम्र के लोगों में दिख रहा है.
उनमें से एक सिस्टर शिरोमी ने कहा, “हम लोगों को न कोई लाभ चाहिए, न कोई फ़ायदा. बस ये देखना असंभव होता जा रहा था कि देश गर्त में जा रहा है. 9 मई को जो हुआ वो सबसे शर्मनाक था. ग़ुस्साए हुए राजनीतिक समर्थकों ने निहत्थे लोगों को निशाना बनाया. मैंने ख़ुद देखा है कि कैसे महिलाओं के साथ बदसलूकी हुई और कैसे युवा छात्रों को घसीटा गया. वरना उनके विरोध में देशभर में ये ग़ुस्सा क्यों फैलता?”.
हक़ीक़त यही है कि आज श्रीलंका में खाने-पीने के सामान, दूध, गैस, केरोसिन तेल और दवाओं जैसी ज़रूरी चीज़ों की क़ीमतें आसमान छू रही हैं. पेट्रोल पंप ख़ाली पड़े हैं, क्योंकि देश के पास बाहर से तेल आयात करने के बदले देने के लिए डॉलर नहीं हैं.
नूरा नूरा ने आख़िर में कहा, “आख़िर हमारा देश कैसे ख़राब हो गया. बिजली नहीं, पानी नहीं, पेट्रोल नहीं, खाना नहीं. हमारे बच्चों के पास पैसा नहीं. अगर अब कुछ नहीं हुआ तो हम कभी भी पहले वाला श्रीलंका नहीं हो सकेंगे