मुम्बई। माधुरी दीक्षित, शाहरुख़ ख़ान और ऐश्वर्या राय के अभिनय और संजय लीला भंसाली के निर्देशन वाली देवदास की रिलीज़ को 20 साल पूरे हो रहे हैं.
100 साल से भी पहले, दूर बंगाल में, पन्नों पर लिखा एक किरदार. किरदार जो किताब से निकलकर फ़िल्म के पर्दे पर आया और फिर फ़िल्मी स्क्रीन से निकलकर लोगों के ज़हन में उतर गया.
और देखते ही देखते देवदास नाम का वो पात्र सिर्फ़ एक काल्पनिक किरदार नहीं बल्कि एक जीवनशैली, ज़िंदगी जीने का एक ढंग बन गया. तभी तो कई बार आपने सुना होगा- बड़ा देवदास बना फिरता है, ख़ासकर तब जब कोई उदास, डूबा हुआ सा, ख़ुद को बर्बाद करने वाले काम कर रहा हो.
1917 में लिखी शरतचंद्र चट्टोपाध्याय की कहानी देवदास को आज की पीढ़ी शाहरुख़ खान के ज़रिए जानती है जिनकी फ़िल्म देवदास 20 साल पहले 12 जुलाई, 2002 को रिलीज़ हुई थी.
वहीं पहले की पीढ़ी दिलीप कुमार के ज़रिए देवदास (1955) को जानती है और उससे भी पहले केएल सहगल वाली देवदास (1936). अलग-अलग भाषाओं में कोई 15 से 20 बार देवदास या उसके इर्द-गिर्द फ़िल्म बनाई जा चुकी है.
लोग इसे ‘मदर ऑफ़ लव स्टोरीज़’ भी कहते हैं. आख़िर ऐसा क्या है देवदास की इस कहानी में? हर दौर में दिखाया देवदास कितना अलग है? और क्या ये वाकई देवदास की कहानी है या दरअसल उन दो औरतों की कहानी ज़्यादा है, जो देवदास की ज़िंदगी में थीं- पारो और चंद्रमुखी?