लखनऊ। शिक्षा व्यवस्था में सुधार और नगरीय क्षेत्र में पढ़ाई पर अधिक फोकस करने के लिए शहरी स्कूलों को नगर संवर्ग में लाने का फैसला उलटा साबित हुआ। करीब 43 साल पहले 1981 में जो नियमावली बनाई गई उससे कभी भी नगर क्षेत्र में शिक्षकों की भर्ती नहीं की गई। इसी कारण यहां छात्र संख्या कम हुई और कई स्कूल बंद हो गए।

बेसिक शिक्षा परिषद के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के प्राथमिक व उच्च प्राथमिक विद्यालयों के लिए शासन ने 1981 में बेसिक शिक्षा (अध्यापक) सेवा नियमावली में नगरीय व ग्रामीण संवर्ग को अलग कर दिया। इसके बाद ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षकों के रिक्त पद भरने के लिए भर्तियां हुईं, लेकिन नगरीय क्षेत्रों की ओर ध्यान नहीं दिया गया।

सरकार ने शहरी क्षेत्र के स्कूलों में रिक्त पद भरने के लिए बीच का रास्ता निकाला। तय हुआ कि ग्रामीण क्षेत्र में पांच साल के बाद शिक्षकों की शहरी क्षेत्र में तैनाती की जा सकेगी। लेकिन, ग्रामीण से शहरी क्षेत्र में तैनाती पर उनकी वरिष्ठता वहां तैनात शिक्षकों से नीचे हो जाएगी। इस वजह से शिक्षकों ने नगर क्षेत्र में जाने में रुचि नहीं दिखाई। अब कई स्कूल शिक्षामित्रों या एकल शिक्षकों के भरोसे चल रहे हैं। खास बात ये कि यह स्थिति तब हुई, जब काफी शिक्षक शहरी क्षेत्र में तैनाती के लिए हर स्तर पर जोर लगाते या सिफारिश करवाते हैं।

उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षक संघ के पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष राम सजन पांडेय का कहना है कि शहरी क्षेत्र के स्कूलों में शिक्षकों की तैनाती न होने से यहां के स्कूलों पर संकट आ गया है। इसका फायदा प्राइवेट कॉलेज ले रहे हैं। स्कूल बंद हो रहे हैं। शहरी क्षेत्र के गरीब बच्चों को पढ़ाई का अवसर नहीं मिल रहा है। शासन नियमावली में एक छोटा सा संशोधन कर स्थिति सुधार सकता है।

प्रमुख सचिव बेसिक शिक्षा डॉ. एमकेएस शंमुग्गा सुंदरम का कहना है कि नगरीय क्षेत्र में शिक्षकों की कमी की जानकारी हुई है। उच्च स्तर पर वार्ता के बाद इसका समाधान निकाला जाएगा। अगर कोई स्कूल सिर्फ इस कारण से बंद हुए हैं तो दोबारा शुरू कराया जाएगा। नगर क्षेत्र के स्कूलों को बेहतर स्थिति में लाया जाएगा।

ग्रामीण क्षेत्र में स्कूल 1.32 लाख
नगर क्षेत्र में शिक्षक (हेड मास्टर व सहायक अध्यापक) 5097
ग्रामीण क्षेत्र में शिक्षक (हेड मास्टर व सहायक अध्यापक) 2.65 लाख

एक पूर्व बीएसए कहते हैं कि नियमावली में संशोधन कर इस समस्या का समाधान किया जा सकता है। यह काम शासन को करना है। नगर क्षेत्र का एचआरए भी बेहतर होता है और शिक्षक भी काम करने के इच्छुक हैं।

सरकार के आंकड़ों के अनुसार परिषदीय प्राथमिक विद्यालयों में स्वीकृत 4,17,886 पद के सापेक्ष प्रधानाध्यापक व सहायक अध्यापक के 85,152 पद खाली हैं। इस तरह शिक्षक-छात्र अनुपात 31-1 का है। वहीं प्राथमिक में 1,47,766 शिक्षामित्रों को मिलाकर शिक्षक-छात्र अनुपात 21-1 का है। मानक के अनुसार शिक्षक-छात्र अनुपात पूरा है। फिलहाल नई भर्ती प्रस्तावित नहीं है।

लखनऊ के दो दर्जन से ज्यादा स्कूल शिक्षकों के अभाव में बंद हो गए। बाराबंकी में शिक्षक व बच्चों की कमी से 11 विद्यालय बंद हैं। यहां के बच्चों को अन्य विद्यालयों में शिफ्ट किया गया। रायबरेली में दो विद्यालय बंद हो गए तो कई शिक्षामित्रों के भरोसे चल रहे हैं। गोंडा के नगर क्षेत्र के 21 स्कूलों में दो शिक्षामित्र के भरोसे हैं तो पांच में एक-एक शिक्षक है। बलरामपुर में नगरीय क्षेत्र के 22 परिषदीय स्कूलों में सिर्फ 16 में शिक्षक हैं। बंद आठ स्कूलों में शिक्षामित्रों के सहारे पढ़ाई शुरू कराई गई है। अंबेडकरनगर में नगर क्षेत्र के 13 परिषदीय विद्यालयों में 6 शिक्षामित्रों के भरोसे हैं। ये तो कुछ उदाहरण मात्र हैं, पूरे प्रदेश में ऐसी स्थिति पैदा हो गई है कि शहरी क्षेत्र के स्कूल बंद हो रहे हैं।