कैसा होगा ये नया टोल सिस्टम, क्या फास्टटैग खत्म हो जाएंगे. फिर कारों में कौन सा नया डिवाइस लगाना होगा. बहुत ढेर सारे सवाल हैं जो हमारे दिमाग में इसे लेकर होंगे.
ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम का इस्तेमाल संयुक्त राज्य अमेरिका के ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) सहित किसी भी उपग्रह-आधारित नेविगेशन प्रणाली के संदर्भ में किया जाता रहा है. इसका सटीक इस्तेमाल एक सैटेलाइट से नहीं बल्कि आकाश में चक्कर लगा रहे सैटेलाइट के एक बड़े समूह द्वारा किया जाता है. इस मामले में ये जीपीएस से अलग है.
अगर ये सिस्टम पूरे भारत में लागू हो जाता है तो वाहनों पर फास्ट टैग लगाए रखने का कोई औचित्य नहीं रह जाएगा. तब वाहनों में अंदर एक नया डिवाइस लगाया जाएगा, जिसे ऑन-बोर्ड यूनिट (OBU) या ट्रैकिंग डिवाइस कहा जाता है, जो लगातार इंडियन सैटेलाइट नेविगेशन सिस्टम गगन GAGAN से जुड़ा होगा और ये मैप करता रहेगा कि आपका वाहन कहां जा रहा है और किन सड़कों के गुजर रहा है. ये सिस्टम आपके वाहन की पोजिशन की 10 मीटर की सटीकता के साथ काम करता है.
इसके लिए देश के सभी राष्ट्रीय राजमार्गों की पूरी लंबाई की स्थितियों को डिजिटल इमेज प्रोसेसिंग की मदद से लॉग इन करना होगा और हर राजमार्ग की टोल दर साफ्टवेयर के जरिए दर्ज किया जाएगा, जिससे वाहन जिस भी राजमार्ग से गुजरेगा, उसमें अपने आप वाहन में लगा डिवाइस आपके उतने पैसे काट देगा. लेकिन इस सिस्टम में बहुत कुछ और भी अभी काम किया जाना है या किया जा रहा होगा. मसलन अगर आपका वाहन आगरा से लखनऊ के एक्सप्रेस वे पर है और ये केवल इस रास्ते में केवल पहले 100 किलोमीटर तक चलकर इससे जुड़ी किसी ब्रांच सड़क की ओर चला जाएगा तो आपका डिवाइस उतना ही पैसा काटेगा, जितने रास्ते का इस्तेमाल आपके वाहन द्वारा किया जाएगा.
इस सिस्टम को लागू करने के लिए हाई-वे के विभिन्न बिंदुओं पर अतिरिक्त तौर पर सीसीटीवी कैमरों के साथ गैन्ट्री या मेहराब लगे होंगे. ये वाहन की उच्च सुरक्षा पंजीकरण प्लेट की एक छवि कैप्चर करेंगे. लिहाजा ये सिस्टम आपकी गति के साथ आपके लोकेशन को हमेशा देखते रहेंगे, लिहाजा ये नहीं हो सकता है कि आप तय स्पीड से ज्यादा गति से चल पाएंगे या अपने डिवाइस को खराब करके सिस्टम को चकमा दे पाएंगे.
बिल्कुल ऐसा ही होगा. द हिंदू अखबार में इस बारे में प्रकाशित एक एक्सप्लेनर में ये बात कही गई है. इस एक्सप्लेनर रिपोर्ट में परिवहन मंत्रालय के एक अधिकारी से बातचीत की गई. मंत्रालय के अधिकारी ने बताया कि इस तकनीक का उद्देश्य उपयोगकर्ताओं को केवल राजमार्ग पर यात्रा की गई वास्तविक दूरी के लिए टोल का भुगतान करने या उपयोग के अनुसार भुगतान करने का लाभ प्रदान करना है.सरकार को उम्मीद है कि इसके बाद यात्रा पूरी तरह बाधा मुक्त आवाजाही वाली होगी.
भारत जैसे देश में इस सिस्टम के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही आएगी कि हर वाहन में वो डिवाइस या यूनिट कैसे लगाई जाए, जो आवाजाही पर नजर रखे, दूसरे ये डिवाइस जिस वालेट से जुड़ा होगा, उसमें पैसे हैं भी कि नहीं. ऐसे में सड़क उपयोगकर्ता से भुगतान कैसे वसूल किया जाएगा. हमारे देश में हाल ये है कि अब तक बहुत से वाहनों में फास्ट टैग भी नहीं लगा है. तो इस सिस्टम की सबसे बड़ी चुनौती यही होगी कि पैसे का भुगतान नहीं करने वाले वाहन को कैसे रोका जाए.
कई बार लोग यात्रा से पहले वाहन के अंदर लगे डिवाइस को खराब कर देंगे, उस स्थिति में कैसे निपटा जाए. फिर हल्के वाहनों के लिए टोल दर अलग होती है और भारी वाहनों की अलग, तो इसमें भी देखना होगा कि कौन सा वाहन किस तरह के डिवाइस का इस्तेमाल कर रहा है. लिहाजा सरकार को इन उल्लंघनों को पक़़ने के लिए व्यापक तौर पर देशभर में गैन्ट्री माउंटेड आटोमैटिक नंबर प्लेट रिकग्निशन (एएनपीआर) आधारित सिस्टम राजमार्गों पर लगाना होगा, जिसका कोई ढांचा फिलहाल नहीं है.
नंबर प्लेट को फिर नई तकनीक के लिए सक्षम बनाना होगा और राष्ट्रीय राजमार्ग शुल्क (दरों और संग्रह का निर्धारण) नियमों में भी संशोधन करना होगा.
ये आशंकाएं भी जाहिर की जा रही हैं क्योंकि आपके कहीं भी आने जाने का डाटा रिकॉर्ड होता रहेगा, जो सरकार के सर्वर पर हमेशा मौजूद रहेगा. जिसका वो इस्तेमाल कर सकत है. लिहाजा ये प्राइवेसी में दखल होगा. हालांकि सरकार का कहना है कि वह वाहन उपयोगकर्ताओं की गोपनीयता की रक्षा करेगी.
इसके डेटा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए GAGAN उपग्रह प्रणाली का उपयोग करने का निर्णय लिया है, न कि जीपीएस का, जो अमेरिका के स्वामित्व में है.
पिछले साल संसद में पारित डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023 गोपनीयता संबंधी चिंताओं का समाधान करेगा. लेकिन ये तय है कि इस तरह की चिंताएं बनी रहेंगी और वो किसी हद तक जाएज भी हैं.
नई टोलिंग प्रणाली FASTag-आधारित टोल संग्रह के साथ शुरू में काम करती रहेगी, क्योंकि ना तो सरकार के पास अभी इसके लिए जरूरी ढांचा और संसाधन हैं और ना ही सरकार ने अभी तक ये निर्णय लिया है कि OBU को सभी वाहनों में अनिवार्य किया जाएगा या केवल नए वाहनों के लिए. परिवहन मंत्री नितिन गडकरी 2020 से उपग्रह-आधारित टोल संग्रह को लागू करने की बात कर रहे हैं.
टोल संग्रह के लिए रेडियो फ्रीक्वेंसी पहचान आधारित FASTags को 2016 से शुरू किया गया और केवल 16 फरवरी 2021 से अनिवार्य कर दिया गया. दिसंबर 2023 तक, राष्ट्रीय राजमार्गों पर टोल शुल्क प्लाजा से गुजरने वाले 98.9% वाहन FASTag के अनुरूप थे.
राष्ट्रीय राजमार्ग शुल्क प्लाजा पर टोल संग्रह 2016-2017 में 17,942 करोड़ था जो 2020-2021 में करीब डेढ़ गुना बढ़कर 27,744 करोड़ हो गया. इसमें वाहनों की बढ़ती संख्या और फास्टटैग को अपनाना शामिल है.
इससे टोल संग्रह प्रक्रिया में सरकार का आधारभूत खर्च काफी कम हो जाएगा.
फिलहाल इस सिस्टम का इस्तेमाल जो संयुक्त राज्य अमेरिका में इस्तेमाल किया जा रहा है, वहां इसे ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) कहा जाता है. इसके लिए सैटेलाइट की मदद से वाहनों के मूवमेंट पर नजर रखी जाती है. इसके जुड़े तमाम उपकरण और सिस्टम को अमेरिका में हर जगह लगाया हुआ है.
इस तकनीक के सामने आने वाली प्रमुख चुनौतियों में एक ये है कि यदि कोई सड़क उपयोगकर्ता राजमार्ग पर यात्रा पूरी करने के बाद अपना भुगतान चुकाने में विफल रहता है, तो उससे टोल राशि कैसे वसूली जाए अगर उसके ओबीयू से जुड़ा डिजिटल वॉलेट खाली है.
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