यूक्रेन पर रूस के हमले को पाँच सप्ताह बीत चुके हैं. एक पल के लिए अंदाज़ा भर लगाइए कि अब इस देश में जीना कितना मुश्किल होगा.
बम, ख़ूनख़राबा, तनाव. बच्चों के लिए स्कूल नहीं, बुज़ुर्गों के लिए स्वास्थ्य सेवाएं नहीं. देश के कई हिस्सों में लोगों के पास रहने के लिए एक सुरक्षित छत तक नहीं है.
आप भी भागने की कोशिश करेंगे? संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक़, एक करोड़ यूक्रेनी अब तक देश छोड़कर जा चुके हैं.
अधिकांश लोगों ने यूक्रेन के उन इलाकों में शरण ली है, जिन्हें वो सुरक्षित मान रहे हैं. लेकिन साढ़े तीन लाख से ज़्यादा लोग सीमा पार कर के दूसरे देशों में जा चुके हैं.
इनमें अधिकतर महिलाएं और बच्चे हैं, क्योंकि यूक्रेन की सरकार ने 60 साल से कम उम्र के पुरुषों को जंग में शामिल होने को कहा है.
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अपना घर-बार सहित सब खो चुके अधिकतर शरणार्थियों को ज़रा भी अंदाज़ा नहीं कि उन्हें अब आगे क्या करना है. ऐसे में वे अक्सर अजनबियों पर भरोसा करने को मजबूर होते हैं.
युद्ध का शोर-शराबा अब उनके पीछे छूट चुका है लेकिन सच्चाई ये है कि ये लोग यूक्रेन के बाहर जाकर भी पूरी तरह सुरक्षित नहीं हैं.
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संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतेरस ने ट्विटर पर चेताया था, “दरिंदों और मानव तस्करों के लिए यूक्रेन में युद्ध कोई त्रासदी नहीं है. उनके लिए एक मौका है और महिलाएं-बच्चे उनका निशाना हैं.”
यूक्रेन और उसके पड़ोसी मुल्क़ो में तस्करी गिरोह तेज़ी से सक्रिय हो गए हैं. युद्ध की आड़ में वो अपने कारोबार को बढ़ाते जा रहे हैं.
लबलिन स्थित होमो फ़ेबर नाम के मानवाधिकार संगठन में कोऑर्डिनेटर कैरोलिना वीर्ज़बिंस्का ने मुझे बताया कि बच्चों को लेकर सबसे ज़्यादा चिंता है.
उन्होंने कहा कि कई युवा अकेले ही यूक्रेन से बाहर जा रहे हैं. पोलैंड और अन्य देशों में जा रहे इन युवाओं का पंजीकरण ठीक से या पूरा नहीं किया गया. इसकी वजह से ये बच्चे गायब हो गए हैं. इनके मौजूदा ठिकानों के बारे में कुछ भी नहीं पता.
स्थिति को ख़ुद देखने के लिए मैं और मेरे सहयोगी पोलैंड और यूक्रेन की सीमा पर गए.
हम एक ट्रेन स्टेशन पहुँचे, जहाँ अधिकतर शरणार्थी आते हैं. यहाँ हमें हर ओर घबराई औरतें और बच्चे ही दिखे.
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इनमें से कई को वहाँ मौजूद स्वयंसेवक गर्म ख़ाना परोस रहे थे. अब तक सबकुछ एकदम सही लग रहा है. हैं न? लेकिन क्या वाकई ऐसा है?
हमें मार्गेरिटी हुसमानोव नाम की एक युवती मिलीं, जिनकी उम्र 20 से 25 के बीच थी. वो कीएव से दो सप्ताह पहले सीमा तक आई थीं ताकि यहाँ से दूसरे देश जा सकें लेकिन उन्होंने यहीं रहने का फ़ैसला किया क्योंकि वो बाकी शरणार्थियों को गलत हाथों में नहीं जाने देना चाहती थीं.
मैंने उनसे पूछा कि क्या वो असुरक्षित महसूस करती हैं. उन्होंने कहा, “हां, इसी वजह से मुझे बाकी शरणार्थियों की सुरक्षा की चिंता है.”
वो कहती हैं, “महिलाएं और बच्चे भीषण युद्ध से जूझकर यहाँ आ रहे हैं. इन्हें पोलिश या अंग्रेज़ी नहीं आती है. उन्हें नहीं पता कि यहाँ क्या हो रहा है और वे हर किसी की बात पर भरोसा कर लेते हैं.”
उन्होंने बताया, “इस स्टेशन पर कोई भी आ जाता है. जब मैं पहले दिन लोगों की मदद करने पहुँची तो इटली के तीन लोग दिखे. वो सुंदर महिलाओं की तलाश कर रहे थे, जिन्हें देह व्यापार के लिए बेचा जा सके.”
“मैंने पुलिस को बुलाया और बाद में पता चला कि मैं सही थी. ये कोई बुरा सपना नहीं बल्कि हक़ीकत थी.”
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मार्गेरिटा कहती हैं कि स्थानीय अधिकारी अब पहले से ज़्यादा सजग हैं. पुलिस रोज़ाना स्टेशन पर गश्त करती है.
पहले यहां कई लोग, ख़ासतौर पर पुरुष हाथों में अच्छी-अच्छी जगहों तक ले जाने के लिए तख्तियां लिए खड़े दिखते थे, लेकिन अब वो भी ग़ायब हो गए हैं.
लेकिन जैसा कि हमारे सूत्रों ने बताया अब ऐसी बुरी नीयत रखने वाले बहुत से लोग स्वयंसेवकों के रूप में यहां खड़े रहते हैं.
एलीना मॉस्किवीतीना ने जागरूकता फैलाने के लिए फे़सबुक पर लिखा. वो अब सुरक्षित डेनमार्क पहुँच चुकी हैं. हमने एलीना से स्काइप पर खुलकर बातचीत की और उनका अनुभव डराने वाला था.
एलीना और उनके बच्चे युद्धग्रस्त यूक्रेन से भागकर रोमानिया पहुँचे थे. ये सब सीमा से आगे बढ़ने के लिए किसी से लिफ़्ट मिलने का इंतज़ार कर रहे थे.
एलीना ने बताया कि वॉलंटीयर्स के वेश में शरणार्थी केंद्र पर मौजूद कुछ लोगों ने उनसे पूछा कि वो कहां रह रही हैं.
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एलीना ने बताया कि उसी दिन एक बार फिर से आए और चिढ़े हुए अंदाज़ में कहा कि स्विट्ज़रलैंड अच्छी जगह है रहने के लिए और वो लोग वहां तक एक ऐसी वैन में लिफ़्ट दे रहे थे, जिसमें पहले से ही महिलाएं भरी हुई थीं.
एलीना ने मुझे बताया कि वो लोग उन्हें और उनकी बेटी को “अश्लीलता” भरी नज़रों से घूर रहे थे. ये सब देखकर एलीना की बेटी सहम चुकी थी.
इन लोगों ने एलीना से उनके बेटे के बारे में भी पूछा, जो उस समय दूसरे कमरे में था. एलीना ने कहा कि उन्होंने मेरे बेटे को ऊपर से नीचे तक घूरा.
इसके बाद उन्होंने कहा कि एलीना को जिस गाड़ी में स्विट्ज़रलैंड ले जाया जाएगा, उसमें उनके अलावा और कोई नहीं होगा. लेकिन जब एलीना ने उनसे आईडी कार्ड मांगा तो वो ग़ुस्से से आग-बबूला हो गए.
उन आदमियों को अपने बच्चों से दूर करने के लिए एलीना ने उनसे वादा किया कि वो उनके साथ तब जाएंगी जब वैन में दूसरी महिलाएं भी हों. लेकिन उनके जाते ही, एलीना अपने बच्चों को लेकर वहां से भाग गईं.
यूक्रेन के शरणार्थियों को एल्ज़बिएटा सुरक्षित ठिकानों तक पहुंचा रही हैं
एल्ज़बिएटा जार्मुलस्का, पोलैंड की जानी-मानी महिला आंत्रप्रन्योर (उद्यमी) हैं. जार्मुलस्का ‘वीमेन टेक द व्हील इनिशिएटिव’ की फ़ाउंडर हैं. वो कहती हैं कि उनका मकसद, यूक्रेन के शरणार्थियों को सुरक्षा मुहैया कराना है.
जार्मुलस्का कहती हैं, “पहले ही दुख-परेशानियां झेलकर जो महिलाएं पैदल या ड्राइव करते हुए इतना लंबा सफ़र तय करते हुए आई हैं, उन्हें यहां भी डर और उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है? उन्हें ये कैसा लगता होगा, इसे बयां करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं.”
अभी तक जार्मुलस्का ने पोलैंड-यूक्रेन सीमा तक शरणार्थियों को सुरक्षित लाने-ले जाने के लिए 650 पॉलिश महिलाओं की भर्ती की है. वो इन महिलाओं को “अमेज़िग वीमेन” कहती हैं.
एल्ज़बिएटा को लोग एला भी बुलाते हैं. मैं एला के साथ एक शरणार्थी कैंप तक गई, जहाँ उन्होंने घुसने से पहले अधिकारियों को अपना आईडी कार्ड और आवास प्रमाण दिखाया. इसके बाद उन्होंने लोगों से पूछा कि क्या किसी को वॉरसॉ के लिए लिफ़्ट की ज़रूरत है.
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लिफ़्ट पाने के बाद नादिया और उनके बच्चे सुकून में दिखे
उनकी गाड़ी पलक झपकते ही भर गई. इसमें नादिया नाम की शरणार्थी अपने तीन बच्चों के साथ बैठीं.
एला ने इस परिवार को गाड़ी में बैठने के बाद पूछा कि क्या उन्हें पानी, चॉकलेट और सफर में काम आने वाली दवाओं की ज़रूरत है.
इस बीच नादिया ने मुझे अपने यूक्रेन के खारकीएव से निकलने के ख़तरनाक सफ़र के बारे में बताया. अब पोलैंड पहुँचने के बाद एक महिला ड्राइवर के साथ नादिया काफ़ी सुकून महसूस कर रही हैं.
नादिया ने मानव तस्करी और उत्पीड़न के ख़तरों के बारे में यूक्रेन के रेडियो पर सुना था लेकिन वो फिर भी वहां से भाग गईं.
उन्होंने बताया कि उनके घर पर हमले हुए. वहां, उन्हें ज़्यादा ख़तरा था.
एला शरणार्थियों के लिए काम कर रही हैं. लेकिन सीमा से सुरक्षित निकल जाने का मतलब ये नहीं कि ख़तरा टल गया.
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हमने जिनसे बात की उनमें से अधिकतर लोगों को उम्मीद थी कि हिंसा रुकने के बाद जल्द ही वो अपने घर लौट सकेंगे.
लेकिन तब तक यानी अगले कुछ दिन, सप्ताह या महीनों तक उन्हें सोने, खाने, अपने बच्चों को स्कूल भेजने और ख़ुद के लिए नौकरी तलाशने के लिए भी एक सुरक्षित ठिकाने की ज़रूरत है.
ये ज़रूरते ही शरणार्थियों को असुरक्षित बनाती हैं.
ईयू नेताओं ने सर्वसम्मति से यूक्रेनियों के लिए रोज़गार बाज़ार, स्कूल और स्वास्थ्य सेवाओं को खोलने को मंज़ूरी दी है लेकिन मानवाधिकार समूहों का कहना है कि, शरणार्थियों को उनका पंजीकरण कराने और उनके अधिकार बताने के लिए मदद की ज़रूरत है.
पोलैंड-यूक्रेन की सीमा पर मिले एक स्वयंसेवक ने मुझे बताया कि जब आप थक चुके हों, आसपास कोई दोस्त न बचा और पैसों की ज़रूरत हो, तो आप आसानी से वो सब कर जाते हैं, जिसके बारे में कभी आपने कल्पना तक न की हो.
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इस महिला स्वयंसेवी को काफ़ी कम उम्र में ही लालच देकर देह व्यापार में धकेला गया था. इसी वजह से वो अब यूक्रेन के शरणार्थियों की मदद कर रही हैं.
वो कहती हैं, “मैं उनकी रक्षा करना चाहती हूं. उन्हें चेताना चाहती हूं.” महिला ने मुझे कहा कि उनका नाम न बताया जाए. उन्होंने कहा कि वो नहीं चाहतीं कि उनके बच्चे इस बीते कल के बारे में जाने.
यूक्रेन में रूस की कार्रवाई को पाँच हफ़्ते बीत चुके हैं. लेकिन यूरोप भर में यूक्रेनियों की मदद करने वाली संस्थाओं की जांच प्रक्रिया अभी फ़ुलप्रूफ़ नहीं हैं.
मानव और अंग तस्करी ही कुप्रथा नहीं है. शरणार्थियों को अलग-अलग लोग भी उत्पीड़ित कर रहे हैं.
पोलैंड, जर्मनी, यूके के साथ ही अन्य जगहों पर लोगों ने शरणार्थियों के लिए अपने घर के दरवाज़े खोल दिए हैं. इनमें से अधिकतर अच्छी मंशा से ऐसा कर रहे हैं लेकिन दुर्भाग्य से सभी की मंशा एक सी नहीं है.
हमें सोशल मीडिया एक यूक्रेनी महिला का पोस्ट मिला जो अब जर्मनी जा चुकी हैं. यहाँ जिस शख्स ने उनके लिए कमरे का इंतज़ाम किया, पहचान पत्र के कागज़ात जुटाए और ये कहा कि वो उनका घर मुफ्त में साफ कर दें. इसके बाद इस शख्स ने आपत्तिजनक मांगे करना शुरू कर दिया. लेकिन जब उन्होंने इससे इनकार कर दिया तो इस शख्स ने उन्हें सड़क पर फेंक दिया.
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वॉरसॉ में मानव तस्करी के ख़िलाफ़ काम करने वाले एनजीओ ला स्ट्राडा की चीफ़ एग्ज़ीक्यूटिव आईरीना डेविड ने मुझे बताया कि इस तरह की कहानियाँ आम है. युद्ध हो या नहीं लेकिन इस तरह के मामले सामने आते रहते हैं. लेकिन यूक्रेन में बढ़ते संघर्ष से महिलाओं और बच्चों के साथ शोषण के मामले भी बढ़ेंगे.
वो किशोर शरणार्थियों को बड़ी चिंता का विषय मानती हैं. वो कहती हैं, “हम सब किशोरों को जानते हैं. क्या नहीं जानते? वो असुरक्षित महसूस करते हैं. उन्हें स्वीकार्यता और पहचान चाहिए.”
“और अगर वो शरणार्थी हैं और घर-दोस्तों से काफ़ी दूर हैं, तो उनका शोषण आसान हो जाता है.”
“इस उम्र की लड़कियां अपने से ज़्यादा उम्र के पुरुषों की ओर से मिलने वाले अटेंशन को पसंद कर सकती हैं. उन्हें अपनी उम्र की दूसरी ‘कूल’ लड़कियों से जान-पहचान होना अच्छा लगे, जिनके पास अच्छे कपड़े हों और जो उन्हें पार्टियों में बुलाए.”
“ये सब ऐसे ही शुरू होता है. भूलिए मत. सिर्फ पुरुष ही तस्कर या शोषक नहीं होते.”
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युद्ध के इस समय में यूक्रेनी महिलाओं को ऑनलाइन भी मदद के कई प्रस्ताव दिए जा रहे हैं.
पहचान बताए बिना ही आईरीना ने हमें ला स्ट्राडा के पास आने वाले ऐसे कई केसों के बारे में बताया, जहां यूक्रेनी लड़कियों को मेक्सिको, तुर्की, संयुक्त राज्य अमीरात की टिकट देने का प्रस्ताव उन पुरुषों ने दिया, जिनसे वो कभी मिली तक नहीं.
वो कहती हैं, “मेरे सहयोगी एक 19 साल की लड़की को मनाने की कोशिश कर रहे हैं कि वो एक पुरुष के घर पर रह रहे अपने दोस्त के पास न जाए.”
“वो जानती है कि उसके दोस्त को पीटा जा रहा है. लेकिन वो शख्स उसे मोबाइल पर फ़ोन करता है और प्यारी बातें कर के लुभा रहा है.”
“अगर वो जाने की ज़िद करेगी तो हम लड़की से निवेदन करेंगे की वो स्थानीय अधिकारियों के पास अपनी जानकारी दे दे. अगर वो नहीं करती, तो उनके पास हमारा फ़ोन नंबर है.”
“मुझे उम्मीद है कि ज़रूरत पड़ने पर वो हमें फ़ोन कर पाएं.”
यूरोप के सारे देशों की सरकारों ने यूक्रेन के साथ एकजुटता दिखाई है.
मानवाधिकार समूह चाहते हैं कि ये सरकारे उन लोगों की रक्षा करे जो अपनी जान बचाने के लिए भाग रहे हैं. उन्हें सुरक्षा की ज़रूरत है.