अभिनेता जॉन अब्राहम ने हिंदी सिनेमा को आयुष्मान खुराना जैसा चमकता सितारा दिया है। उन्हीं के पैसों से बनी फिल्म ‘विकी डोनर’ से आयुष्मान लॉन्च हुए। लेकिन, जॉन ने कभी आयुष्मान पर अपना हक नहीं समझा और उन्हें सुपरस्टार बनाने के बाद आजाद कर दिया। अब, जॉन ने एक और युवक हर्षवर्धन राणे को स्टार बनाने का बीड़ा उठाया है। जॉन अब्राहम एंटरटेनमेंट कंपनी की फिल्म ‘तारा वर्सेस बिलाल’ से बड़े परदे पर बड़ा मौका पाने वाले हर्षवर्धन राणे की कहानी न सिर्फ बहुत भावुक कर देने वाली कहानी है बल्कि ये कहानी और भी बहुत कुछ सिखाती है। सबसे बड़ी सीख उनके संघर्ष की कहानी की ये है कि काम छोटा हो या बड़ा, उसमें किसी तरह की शर्म नहीं करनी चाहिए। हर्षवर्धन ने पहला काम अपने जीवन का एक ढाबे पर कप प्लेट धोने का किया है।

जरूरी नहीं की आपके बारे में जो लोग कहते हैं और आप से जिस काम की अपेक्षा करते हैं, आप वही काम करें। समाज की ऐसी ही बातों से तंग आकर हर्षवर्धन ग्वालियर से भाग कर दिल्ली चले गए। हर्षवर्षन कहते हैं, ‘मैं 16 या 17 साल का था जब घर से भागकर दिल्ली आया क्योंकि मुझे समाज की कही हुई बातें समझ गई नहीं आ रही थीं। मेरे मन में शुरू से यह बात रही कि जो लोग कहते हैं वही काम क्यों करना है? लेकिन दिल्ली में क्या करना है, ये मुझे भी नहीं पता था।’

हर्षवर्धन राणे कहते हैं कि जीवन में सफलता के लिए शिक्षा बहुत जरूरी है। अगर ये साथ हो तो संघर्ष आसान हो जाता है। वह बताते हैं, ‘जब मैं घर से निकला था तो मेरे पास सिर्फ 200 रुपये थे जिसमें से 74 रुपये ट्रेन के टिकट में और कुछ पैसे बस के भाड़े में खर्च हो गए और मेरे पास सिर्फ 100 रूपये बचे थे। मालवीय नगर में एक जानने वाले ने पास के हॉस्टल की किचन में मेरे सोने का इंतजाम करा दिया। वहां तीन चार लड़के काम करते थे। रात को मैं वहीं सो गया और अगले दिन मैंने उन लड़कों से कहा, क्या मैं आपकी मदद कर सकता हूं? बस अगले दिन से मैं वहां टेबल-कुर्सी और कप-प्लेट साफ करने लगा। ये मेरा पहला काम था।’

हर्षवर्धन राणे कहते हैं, ‘उसी हॉस्टल में एक छोटा सा एसटीडी बूथ था। मैं दस रुपये प्रतिदिन के हिसाब से वहां काम करने लगा। मेरी हैंड राइटिंग अच्छी थी तो मेरे एक और जान पहचान वाले ने पास के साइबर कैफे में नौकरी दे दी। ये मेरी पहली तरक्की थी और मेरा वेतन 10 रुपये प्रतिदिन से सीधे 20 रुपये हो गया। उसके बाद मैंने कोरियर बॉय का भी काम किया। यहां पता चला कि अगर अंग्रेजी नहीं आती है तो तरक्की की राह में आगे बढ़ना मुश्किल है।’

अंग्रेजी सीखने के लिए अक्सर लोग कोचिंग जाते हैं लेकिन हर्षवर्धन राणे ने इसके लिए मुफ्त का तरीका खोजा। वह कहते हैं, ‘जब मैंने इंग्लिश सीखने की कोशिश की तो कोचिंग क्लासेस बहुत महंगे थे और मेरे पास पैसे थे नहीं। फिर मैंने इंग्लिश सीखने के लिए कॉल सेंटर को अपना स्कूल बनाया। पहले कॉल सेंटर में नौकरी लगी। वहां एक महीना ट्रेनिंग में थोड़ी इंग्लिश सीखी, उसके बाद फिर दूसरी जगह एक महीने की ट्रेनिंग ली। और इसी को मैंने अपना पैटर्न बना लिया और बिना पैसे खर्च किए अंग्रेजी सीख ली।’