मुरादाबाद : यूपी की इस सीट पर प्रतिष्ठा की लड़ाई वर्चस्व से है। उपचुनाव में भाजपा के दस जनप्रतिनिधियों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। सपा के आठ जनप्रतिनिधियों के लिए पार्टी के वर्चस्व को कायम रखने की चुनौती है।
मुरादाबाद की कुंदरकी विधानसभा उपचुनाव में प्रतिष्ठा की लड़ाई वर्चस्व से है। कुंदरकी सीट पर सपा के वर्चस्व के इतिहास को बदलने के लिए भाजपा के लिए दस जनप्रतिनिधियों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। इसमें प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह समेत सरकार के चार मंत्री शामिल हैं।
वहीं सपा के आठ जनप्रतिनिधियों के लिए कुंदरकी सीट पर दबदबा कायम रखने की चुनौती है। उपचुनाव के नतीजे भाजपा-सपा के इन 18 जनप्रतिनिधियों की आगे की सियासी राह पर असर डाल सकते हैं।
जिले में छह विधानसभा क्षेत्र (मुरादाबाद नगर, देहात, कांठ, ठाकुरद्वारा, बिलारी, कुंदरकी) हैं। वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा ने जिले की छह में से पांच सीटों पर जीत दर्ज की थी। भाजपा सिर्फ मुरादाबाद नगर सीट ही बचा सकी थी। जबकि 2017 के चुनाव में भाजपा के पास दो सीटें थीं।
विधायक जियाउर्रहमान बर्क के सांसद बनने पर रिक्त हुई कुंदरकी विधानसभा सीट पर 20 नवंबर को मतदान होगा। इस सीट पर सपा का वर्चस्व रहा है। पिछले छह चुनावों (1996 से 2022 तक) में चार बार जीत की बाजी सपा के हाथ लगी है। जबकि दो बार बसपा विजयी रही।
इस सीट पर भाजपा सिर्फ एक बार 1993 में जीत हासिल कर पाई है। इस इतिहास को बदलने के लिए तब से अब भाजपा जीतोड़ कोशिश कर रही है। कुंदरकी सीट पर सपा का वर्चस्व तोड़कर 31 साल के जीत के सूखे को खत्म करना भाजपा की प्राथमिकता है। इसके लिए भाजपा ने अपने चार मंत्रियों को करीब दो महीने पहले की चुनाव मैदान में उतार दिया था।
मुरादाबाद गृह जनपद होने के कारण भाजपा प्रदेश अध्यक्ष एवं एमएलसी भूपेंद्र सिंह लगातार कुंदरकी पर निगाह लगाए हुए हैं। इसके अलावा जिले में जिला पंचायत अध्यक्ष, एक विधायक और तीन विधान परिषद सदस्य भी भाजपा के हैं। जो पार्टी के उम्मीदवार रामवीर सिंह के पक्ष में चुनाव प्रचार में जुटे हैं।
दूसरी ओर सपा के जनप्रतिनिधियों की फेहरिस्त भी भाजपा से कम नहीं है। जो कुंदरकी सीट पर पार्टी के वर्चस्व बरकरार रखने में लगे हैं। इसके लिए पार्टी ने आठ जनप्रतिनिधियों को अलग-अलग जिम्मेदारियां सौंपी है।
-सपा ने भी उपचुनाव जीतने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी है। पार्टी ने आठ जनप्रतिनिधियों को चुनाव मैदान में उतारा है। इसमें चार सांसद (एक राज्यसभा सांसद) और चार विधायक शामिल हैं। जिन पर कुंदरकी सीट पर पार्टी को लगातार चाैथी पर जीत दिलाने का दबाव है। वहीं उपचुनाव में सपा जीती तो प्रत्याशी हाजी रिजवान की यह चौथी जीत होगी।
कुंदरकी विधानसभा सीट से दो जिले जुड़े हैं। यहां से दिल्ली और लखनऊ दोनों की सियासत होती है। कुंदरकी विधानसभा क्षेत्र मुरादाबाद जिले में आती है, लेकिन लोकसभा क्षेत्र में जिला बदल जाता है। कुंदरकी विधानसभा सीट की लोकसभा संभल लगती है। जहां से अब डाॅ. शफीकुर्रहमान बर्क के पोते जियाउर्रहमान बर्क सांसद हैं।
ये सिपाहसलार भी कम नहीं हैं। प्रत्याशियों का भरोसा जीतने के लिए अपने ही नेता जी की चुगली कर देते हैं। वहीं उम्मीदवार भी अपने साथ होने वाले भीतरघात को लेकर शांत नहीं बैठे हैं। चुनाव प्रचार में आने वाले प्रदेश के पदाधिकारियों और नेताओं के जरिये भीतरघातियों की शिकायत प्रदेश नेतृत्व तक पहुंचाने में देरी नहीं कर रहे हैं। शिकायत के साथ-साथ सबूत ही पेश करते हैं। व्हाट्सएप पर विरोध की इस सियासत से सत्ता के साथ-साथ विपक्ष के उम्मीदवार भी जूझ रहे हैं।