मुरादाबाद। यह बात सन 2004 की है। यूपी की ओर से घरेलू क्रिकेट खेलने की चाह में शमी कई बार ट्रायल में फेल हो चुके थे। कोच बदरुद्दीन की सलाह पर उन्होंने बंगाल का रुख किया। यही निर्णय उनकी जिंदगी में ऐसा मोड़ लेकर आया जिसने अमरोहा के ठेट गांव सहसपुर अलीनगर के लड़के सिम्मी को टीम इंडिया का स्टार गेंदबाज मोहम्मद शमी बना दिया।

बंगाल से पहले शमी ने त्रिपुरा में छह महीने क्रिकेट खेला लेकिन वहां के खेल में उन्हें दम नहीं दिखा। सन 2005 में शमी ने बंगाल में डलहौजी क्रिकेट क्लब ज्वाइन किया।शमी के साथ बंगाल में क्रिकेट खेल चुके मुरादाबाद निवासी मिर्जा दानिश आलम बताते हैं कि दास ने शमी की प्रतिभा को पहचाना। 2007 में शमी ने बंगाल की अंडर-22 टीम के लिए ट्रायल दिया था। उस साल लीग मैचों में उन्होंने 58 विकेट लिए थे। इसके बाद भी अंडर-22 टीम में चयन नहीं हुआ।

शमी निराश नहीं हुए और अगले साल फिर ट्रायल दिया। उस साल वह लीग मैचों में 32 विकेट ही ले पाए थे लेकिन चयन हो गया। फिर 2008 में सैयद मुश्ताक अली ट्रॉफी में उन्होंने गेंदबाजी में कई कारनामे किए और चयनकर्ताओं की निगाह में आ गए। इसके बाद उन्हें रणजी ट्रॉफी में खेलने का मौका मिला था।

बंगाल की ओर से लगातार दो साल रणजी ट्रॉफी में खेलने के बाद शमी को आईपीएल फ्रेंचाइजी कोलकाता नाइट राइडर्स ने मौका दिया। मिर्जा दानिश बताते हैं कि 2010 में शमी को केकेआर प्रबंधन की ओर से फोन आया।

बंगाल से पहले शमी ने त्रिपुरा में छह महीने क्रिकेट खेला लेकिन वहां के खेल में उन्हें दम नहीं दिखा। सन 2005 में शमी ने बंगाल में डलहौजी क्रिकेट क्लब ज्वाइन किया।