इसमें डीज़ल भी शामिल है. मंगलवार को फ़ाइनैंशियल टाइम्स में छपे एक इंटरव्यू में उन्होंने ये बात कही.रूस यूक्रेन जंग की शुरुआत के बाद से पिछले एक साल में भारत ने रूस से सबसे ज़्यादा तेल ख़रीदा है.
सस्ता क्रूड ऑयल मिलने से भारत में स्थित रिफ़ाइनरियों को बहुत फ़ायदा मिला है. वो यूरोप को रिफ़ाइंड प्रोडक्ट बेचकर अधिक पैसे कमा रही हैं.
बोरेल्ल ने कहा, “अगर डीज़ल या गैसोलीन भारत से यूरोप आते हैं, जो कि रूस के तेल से बने हैं, तो फिर ये सदस्य देशों के लिए चिंता का विषय है और उन्हें इसके ख़िलाफ़ क़दम उठाने चाहिए.”
“भारत का रूस से तेल लेना नॉर्मल है, लेकिन वो अगर रूस के तेल को रिफ़ाइन करने का सेंटर बन रहा है और बने हुए सामान हमें बेचे जा रहा है तो हमें क़दम उठाने होंगे.”
बोरेल ने कहा कि उन्होंने भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर से बातचीत में रूस के यूक्रेन पर हमले का ज़िक्र किया, इसमें फ़ूड सिक्योरिटी का मसला भी शामिल था. लेकिन उन्होंने रूस के तेल का ज़िक्र नहीं किया.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक़ यूरोपीय कमीशन के वाइस प्रेसिडेंट मार्गरेट वेस्टेगर ने कहा है कि यूरोपीय संघ भारत से इस बारे में बात करेगा, लेकिन “ये हाथ बढ़ाने जैसा होगा न कि उंगली उठाने जैसा.”
अगर डीज़ल या गौसोलिन भारत से यूरोप आते हैं, जो कि रूस के तेल से बने हैं, तो फिर ये सदस्य देशों के लिए चिंता का विषय है और उन्हें इसके ख़िलाफ़ कदम उठाने चाहिए. भारतीय रिफ़ाइनरियां पहले रूस से कम तेल लेती थीं क्योंकि ट्रांसपोर्टेशन का ख़र्च बहुत अधिक होता था. लेकिन साल 2022-23 के वित्त वर्ष में प्रतिदिन 970,000-981,000 बैरल तेल का आयात किया गया. ये देश के कुल आयात का पांचवा हिस्सा है.
रूस के सबसे बड़े तेल उत्पादक रोसनेफ़्ट (आरओएसएन.एमएम) और शीर्ष भारतीय रिफ़ाइनर इंडियन ऑयल कॉर्प (आईओसी.एनएस) ने भी भारत को आपूर्ति किए जाने वाले तेल के ग्रेड में पर्याप्त वृद्धि और विविधता लाने के लिए एक टर्म डील पर हस्ताक्षर किए हैं.
केप्लर के शिप-ट्रैकिंग डेटा के अनुसार, रिलायंस इंडस्ट्रीज़ और नायरा एनर्जी रिफ़ाइंड ईंधन के प्रमुख निर्यातक और रूसी तेल के ख़रीदार थे. रॉयटर्स के मुताबिक़ कंपनियों की ओर से तत्काल कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. यूरोपीय यूनियन काउंसिल के नियमों को देखें, रूसी कच्चे तेल को तीसरे देश में अगर काफ़ी हद तक बदल दिया गया है और तो इसे वहां का नहीं माना जाएगा.
केपलर के मुताबिक़, यूक्रेन पर रूस के आक्रमण से पहले भारत आमतौर पर यूरोप को औसतन 154,000 बैरल प्रतिदिन (बीपीडी) डीज़ल और जेट ईंधन का निर्यात करता था. इस साल 5 फरवरी से यूरोपीय संघ द्वारा रूसी तेल उत्पादों के आयात पर प्रतिबंध लगाने के बाद यह बढ़कर 200,000 बीपीडी हो गया है.
बोरेल्ल ने कहा कि रूसी तेल के प्रवाह को रोकने के लिए किसी भी तंत्र को राष्ट्रीय अधिकारियों द्वारा लागू करने की आवश्यकता होगी. उन्होंने इशारा किया कि यूरोपीय यूनियन ख़रीदारों को टार्गेट कर सकता है. उन्होंने कहा, “अगर वो बेच रहे हैं, इसका मतलब है कि कोई ख़रीद रहा है. हमें देखना होगा कि कौन ख़रीद रहा है.”
भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कहा कि उनकी समझ के मुताबिक़, ‘यूरोपीय यूनियन के प्रतिबंधों के नियम के तहत क्रूड जिनका स्वरूप किसी तीसरे देश में बदल जाता है, उन्हें रूसी सामान नहीं कहा जा सकता.’
उन्होंने कहा, “यूरोपीय यूनियन काउंसिल के नियमों को देखे, रूसी कच्चे तेल को तीसरे देश में अगर काफ़ी हद तक बदल दिया गया है, तो इसे वहां का नहीं माना जाएगा. मैं आपसे काउंसिल के विनियम 833/2014 को देखने का आग्रह करूंगा.”
इस लेख में Twitter से मिली सामग्री शामिल है. कुछ भी लोड होने से पहले हम आपकी इजाज़त मांगते हैं क्योंकि उनमें कुकीज़ और दूसरी तकनीकों का इस्तेमाल किया गया हो सकता है. आप स्वीकार करने से पहले Twitter cookie policy और को पढ़ना चाहेंगे. इस सामग्री को देखने के लिए ‘अनुमति देंऔर जारी रखें’ को चुनें.
जयशंकर बांग्लादेश, स्वीडन और बेल्जियम की अपनी तीन देशों की यात्रा के अंतिम चरण में सोमवार को ब्रसेल्स (बेल्जियम की राजधानी) पहुंचे.
इससे पहले भी जयशंकर ने रूस से भारत के आयात का बचाव किया था और यूक्रेन में सैन्य कार्रवाई के मद्देनज़र रूस के साथ अपने व्यापार को कम करने के लिए नई दिल्ली पर दबाव डालने के लिए अप्रत्यक्ष रूप से पश्चिम की आलोचना की थी.
उन्होंने कहा था, “यूरोपीय देशों की तुलना में रूस के साथ हमारा व्यापार बहुत छोटे स्तर पर है- 12-13 बिलियन अमेरिकी डॉलर का. हमने भी रूसियों को कुछ उत्पाद दिए हैं … मुझे नहीं लगता कि लोगों को इसे और किसी तरह से देखना चाहिए.”
भारत के रिफ़ाइंड पेट्रोल प्रोडक्ट्स का यूरोपीय बाज़ार में निर्यात का आंकड़ा 22 फ़ीसद तक पहुंचा.
रूस से बढ़ी तेल सप्लाई का फायदा अब यहां की निजी तेल रिफाइनिंग उठा रही हैं और इनका सबसे
तेल मामलों के जानकार नरेंद्र तनेजा का मानना है कि एक ऐसे समय में जब भारत के यूरोपीय देशों से रणनीतिक रिश्ते हैं, ऐसा बयान निंदनीय है.
वो कहते हैं, “अगर ये एक राजनीतिक बयान है, जो कि अपने देश के लोगों को ख़ुश करने के लिए है तो फिर ठीक है. लेकिन अगर वो सोच रहे हैं कि हम किसी तरह के प्रतिबंध लगाएंगे, तो फिर उन्हें चीन, तुर्की समेत कम से कम 15 देशों पर प्रतिबंध लगाने होंगे. और अगर ऐसा हुआ तो तेल की क़ीमतों में ऐसा उछाल आएगा जो कि ये देश बर्दाश्त नहीं कर पाएंगे.”
उनका कहना है कि तेल की क़ीमतों में उछाल पहले से ही जूझ रही अमेरिकी और यूरोपीय अर्थव्यवस्था के लिए ख़तरनाक होगी. वो कहते हैं, “भारत और चीन रूस से तेल ख़रीद रहे हैं, इसलिए तेल की दुनिया के बाज़ार में कमी नहीं हो रही है. अगर इस सिस्टम में दख़लअंदाज़ी हुई तो हड़कंप मच जाएगा.”
“यूरोप में प्रदूषण का हवाला देकर कई रिफ़ाइनरी बंद कर दी गई, लेकिन उन्हें ज़रूरत है. अब आप अलग-अलग देशों से तेल के प्रोडक्ट ले रहे हैं या टर्बाइन फ़्यूल ले रहे हैं तो उनके मॉलिक्यूल रूस के हैं, या तुर्की के हैं, या ईराकी हैं, ये आप कैसे पता लगाएंगे.”
तनेजा ये भी कहते हैं कि इस तरह के बयान का भारत के इन देशों के साथ रिश्तों पर असर पड़ेगा, इसकी आशंका कम ही है और भारत के लिए किसी भी सूरत में घबराने की बात नहीं है.