नई दिल्ली : शारदीय नवरात्रि की अष्टमी व नवमी का खास महत्व माना जाता है। कई भक्तजन इन दिनों में कन्या पूजा व हवन आदि करते हैं। नवरात्रि के दौरान, अष्टमी तिथि की समाप्ति व नवमी तिथि प्रारंभ होने पर संधि पूजा भी की जाती है। इस पूजा का बंगाल में काफी महत्व है। कुछ जातक 9 दिन का व्रत नहीं रखते हैं, वह नवरात्रि के पहले दिन व अष्टमी के दिन व्रत रखते हैं। इस बार नवरात्रि में तिथि को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। आइए पंडित जी जानते हैं क्या अष्टमी व नवमी का व्रत एक ही दिन रखा जाएगा?
ज्योतिषाचार्य डॉ शुभम सावर्ण के अनुसार, 11 अक्टूबर, शुक्रवार को अष्टमी तिथि प्रात: 7:01 बजे तक है। इसके बाद महानवमी तिथि लग रही है। संपूर्ण दिन नवमी रहकर रात्रि शेष होने पर प्रात: 5:3 मिनट तक रहेगी। अष्टमी और नवमी के संधि काल में सभी भक्तों को चाहिए कि श्रद्धापूर्वक अष्टमी व्रत रखें। माताएं इसी दिन डलिया भरे एवं दुर्गा अष्टमी और दुर्गा नवमी में होने वाले सभी धार्मिक कार्य को विधिवत संपन्न करें। यही शास्त्र सम्मत एवं सर्वमान्य है।
दुर्गा अष्टमी कब मनाएं: पंडित आचार्य शुभम सावर्ण ने बताया “देवी पुराण के अनुसार, विद्वान जनों को चाहिए कि सदा ऐसा ही दुर्गा अष्टमी मनावें, जो नवमी तिथि से समन्वित हो। सप्तमी तिथि से युक्त अष्टमी तिथि पूर्व जन्मार्जित पुण्य के फल का नाश कर देती है।” विष्णु पुराण के अनुसार, भगवान शंकर का वचन है अष्टमी तिथि नवमी से युक्त होने पर साक्षात अर्धनारीश्वर के समान पूजनीय है और यह सभी व्रत आदि में पूजनीय है। नवमी तिथि दुर्गा की है तथा अष्टमी तिथि शंकर की है। इन दोनों तिथियों का मिलन एक ही दिवस में होना दुर्लभ माना जाती है। यह उमा-माहेश्वरी तिथि के रूप में विख्यात है। शास्त्रों में इसका फल महान पुण्यप्रद बतलाया गया है।
संधी पूजा शुभ मुहूर्त: ज्योतिषाचार्य डॉ शुभम सावर्ण के अनुसार, संधी पूजा का शुभ मुहूर्त प्रात: 6:39 से 7:27 दिन तक 11 अक्टूबर, शुक्रवार रहेगा। डलिया भरने का शुभ मुहूर्त प्रात: 6:00 बजे से 9:00 बजे तक है। इसके बाद अर्ध प्रहार दोष के कारण 12:00 दिन के बाद से रात्रि तक भरा जाएगा।