सहारनपुर. सहारनपुर शहर का प्राचीन सिद्धपीठ श्री भूतेश्वर महादेव मंदिर अपने भीतर आस्था का अनूठा इतिहास समेटे हुए है। भूगर्भ से शिवलिंग निकलने पर मंदिर की स्थापना मराठाकाल में हुई थी। मान्यता है कि मंदिर में 40 दिन तक नियमित दीपक जलाने वाले भक्त की हर मुराद पूरी करने के साथ भूतेश्वर महादेव कष्ट हरते हैं।

फाल्गुन मास की महाशिवरात्रि एक मार्च को मनाई जाएगी। इसको लेकर तैयारियां शुरू हो गई हैं। ऐसे में पुराने शहर में स्थित प्राचीन सिद्धपीठ श्री भूतेश्वर महादेव मंदिर बेहद खास हो जाता है। 22 बीघा भूमि पर बना यह मंदिर पौराणिक और धार्मिक महत्व अपने अंदर समेटे हुए है।

धोबीघाट के निकट स्थित इस मंदिर की स्थापना 17वीं शताब्दी में भूगर्भ से शिवलिंग प्रकट होने पर हुई थी। मंदिर पर हुई नक्काशी मन को लुभाती थी, लेकिन मंदिर के रख-रखाव और सुंदरीकरण के दौरान नक्काशी कम हो गई। शहर के पांच शिवालयों में यह प्रमुख मंदिर है। श्रावण मास सहित पूरे वर्ष यहां दूसरे जिलों और प्रदेशों से भी श्रद्धालु पहुंचकर मनोकामना पूर्ति के लिए पूजा अर्चना कर मन्नत मांगते हैं।

चार बार लगता है प्रभु को भोग

मंदिर में रोजाना बाबा भूतेश्वर का भोग लगाया जाता है। सुबह चार बजे मंदिर के कपाट खुलते हैं और श्रद्धालु बाबा के दर्शन को पहुंचने लगते हैं। फिर आठ बजे भोग लगाया जाता है। दोपहर 12 बजे भोग लगाकर कपाट बंद कर दिए जाते हैं, जो शाम चार बजे खुलते हैं और रात में दस बजे बंद होते हैं।

महाशिवरात्रि पर उमड़ेगी भीड़, रोज आते हैं बड़ी संख्या में श्रद्धालु

श्री भूतेश्वर महादेव मंदिर महाशिवरात्रि पर सुबह चार बजे से ही भीड़ लग जाती है। शहर और जिले भर से लोग जलाभिषेक करने पहुंचते हैं। इसके साथ ही श्रावण में मास में हजारों की संख्या श्रद्धालुओं के अलावा कांवड़िए जलाभिषेक करते हैं।

इसके साथ ही विशाल भंडारे का आयोजन किया जाता है। मंदिर समिति मंत्री आशु अग्रवाल का कहना है कि महाशिवरात्रि को लेकर तैयारियों शुरू कर दी गई है। मंदिर को फूल मालाओं और रंग-बिरंगी लाइट से सजाया जाएगा।

जब खुद हुई थी आरती और बजने लगी थे घंटे

मंदिर के पंडित अनूप शर्मा और पंडित शिवनाथ बताते हैं कि करीब 45 वर्ष पूर्व रात में रोजाना की तरह दस बजे मंदिर के कपाट बंद कर दिए गए थे। तब, मंदिर के अधिष्ठाता लालता प्रसाद थे। श्रावण मास में रात में तीन बजे मंदिर के कपाट खुद ही खुल गए थे और अचानक मंदिर की सभी घंटियां बजनी लगी थी। शिवलिंग के पास जाकर देेखा तो भगवान शंकर का शृंगार हुआ था और उनकी आरती खुद ही हो रही थी। माना जाता है कि साक्षात देवताओं ने भगवान शंकर की आरती की थी।