यूपी। आगरा में संग-ए-मरमर से तराशी गई मुहब्बत की अजीम निशानी ताजमहल की खूबसूरती में चार चांद लगाने वाले बेशकीमती पत्थर गुम हो रहे हैं। दो आरटीआई के जवाब में एएसआई ने यह स्वीकार किया है। इन नायाब पत्थरों के गुम होने के बाद स्मारक की खाली जगहों को भरने के लिए एएसआई 2015 से 2021 तक करीब दो करोड़ रुपए से अधिक खर्च कर चुका है। यही नहीं, स्मारक में अन्य कार्यों पर भी इन वर्षों में करीब 23 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए जा चुके हैं।

विश्वदाय स्मारक ताजमहल में शाहजहां-मुमताज की कब्रें, सफेद संगमरमर की मुख्य इमारत और उसके सामने बने रॉयल गेट के अलावा ताज के दूसरे हिस्सों में भी बेशकीमती पत्थर लगे हैं। ये बेशकीमती रंग-बिरंगे पत्थर मोहब्बत की निशानी की शान और बढ़ा देते हैं। नीलम, पन्ना, रूबी, अकीक, मूंगा, फिरोज़ा और सीप आदि से सजी इमारत कई रंगों को अपने में समेटे है। जिसके चलते सुबह, दोपहर, शाम और रात में ताज रंग बदलता लगता है। बादलों की रंगत बदलने के साथ इमारत की खूबसूरती में चार चांद लग जाते हैं। एएसआई के केंद्रीय जनसूचनाधिकारी महेश चंद्र मीणा ने आरटीआई के जवाब और एएसआई के पच्चेकारी (इनले वर्क) के लिए जारी टेंडर, एस्टीमेट इन बेशकीमती पत्थरों के गुम होने की तस्दीक कर रहे हैं। हालांकि दीवारों से गुम पत्थर कहां गए, इस बारे में एएसआई ने चुप्पी साधे रखी है।

एएसआई ने साल 2021-2022 में ताजमहल की साउथ और वेस्ट मीनारों पर 1577884 रुपये का काम कराया। 2018-19 में 51 लाख, 2017-18 में 42 लाख, 2016-17 में 20 लाख रुपये का काम कराया। 2015-16 में आरटीआई में खर्च का आंकड़ा 12141 रुपये बताया गया है, लेकिन इनले वर्क को देखते हुए विशेषज्ञ इस आंकड़े को अधूरा मानते हैं। आरटीआई के मुताबिक, ताज के रॉयल गेट से सबसे ज्यादा पत्थर गायब हो रहे हैं।

साल 1924 में यानि 98 साल पहले लिखी गई एक किताब द ताज एंड इट्स एनवॉयरमेंट और इतिहासकार आर. नाथ की 1970 में लिखी गई किताब की मानें तो ताज को बनवाने के दौरान उसमें 42 तरह के बेशकीमती पत्थर लगवाए गए थे। मौलवी मुईन उद्दीन की किताब में बताया गया है कि कहां से और कितने पत्थर मंगवाकर ताजमहल में लगाए गए थे।

अकीक- बगदाद-540, फिरोजा-तिब्बत-670, मूंगा-भारतीय-143 , नीलम-नामालूम-74 , जवाहरात-नामालूम-42 ,
रुबी-बड़कसान-142 , पन्ना-नामालूम-625 , पुखराज-नामालूम-97 , अबरी-ग्वालियर-427 , गारनेट-गंगा-52 पत्थर , सीप-एक लाख

जानकारों के मुताबिक, ताजमहल से जब भी कोई पत्थर निकलता है तो नियमों के मुताबिक उसकी जांच करके देखा जाता है कि वो दोबारा से इस्तेमाल हो सकेगा या नहीं? अगर वो ज्यादा चटका और टूटा नहीं है तो उसे दूसरी जगह पर इस्तेमाल कर लिया जाता है। अगर वो इस्तेमाल करने लायक नहीं होता है तो उसे रिकार्ड में दर्ज करके ताजमहल के संग्रहालय में भेज दिया जाता है। नियम यह भी है कि अगर ऐसे पत्थरों की संख्या ज्यादा है तो एएसआई के दूसरे म्यूजियम को भी वो पत्थर दिए जा सकते हैं।

टूरिस्ट गाइड फेडरेशन आफ इंडिया के जनरल सेक्रेटरी शकील चौहान ने बताया कि ताजमहल में बेहद कीमती पत्थर लगाए थे, जो मौजूदा वक्त के हिसाब से और भी ज्यादा कीमती हैं। ज्यादातर पत्थर 400 साल से ज्यादा पुराने भी हैं। निकला पत्थर ताजमहल का ही है इसकी पहचान इससे हो जाती है कि स्मारक बनाने के दौरान जो कारीगर वहां काम कर रहे थे उन्होंने पत्थरों को तराशने के दौरान उन पर अपनी निशानी छोड़ दी थी। पत्थर अब और गुम न हों, इसके लिए एएसआई ने इमारत की दीवारों के किनारे बैरीकेडिंग कर दी है, जिससे पत्थर छुए न जा सकें।