मेरठ। लंपी रोग से पीड़ित गोवंशियों की संख्या बढ़ने के साथ ही मेरठ मंडल को अति संवेदनशील घोषित कर दिया गया है। साथ ही विशेष निगरानी के लिए निर्देश जारी किए गए हैं। जिले में गुरुवार को लंपी रोग से पीड़ित पशुओं की संख्या बढ़कर 376 पर पहुंच गई, जबकि उपचार व देखरेख से 46 पशुओं ने रोग को हरा दिया। हालांकि जनपद में अभी लंपी रोग से पीड़ित किसी पशु की मौत नहीं हुई है।

गठित की गई रेस्पांस टीम को 24 घंटे निगरानी के लिए लगाया गया है। लंपी रोग से गोवंशी को बचाने के लिए हर स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं। रेस्पांस टीम का गठन कर विकास खंड स्तर पर गांव-गांव निगरानी शुरू की गई है। खंड विकास अधिकारी के साथ ग्राम प्रधानों को भी टीम में शामिल कर किसानों को रोग से बचाव के लिए जागरूक किया जा रहा है। मेरठ में गुरुवार को 101 नए ऐसे पशु सामने आए, जिनमें रोग के लक्ष्ण मिले। अब जिले में लंपी रोग से पीड़ित पशुओं की संख्या बढ़कर 376 पर पहुंच गई है। जबकि बेहतर देखरेख व उपचार के कारण 46 गोवंशी ठीक भी हो गए हैं। सीवीओ ने बताया कि मेरठ से भेजे गए सेंपल में दो सेंपल पाजिटिव मिले, जबकि एक सेंपल निगेटिव आया। अन्य सेंपल की जांच रिपोर्ट का इंतजार है।

सामने आए नए लक्षण
पशु में तेज बुखार (41 डिग्री सेल्सियस तक)
आंख व नाक से पानी गिरना।
पूरे शरीर में कठोर व चपटी गांठ उभर आना।
गाभिन गायों का गर्भपात हो जाना।
दुधारू गायों में दूध देने में कमी आना।
पशु को कमजोरी आना।

सर्तकता ही है बचाव –
रोग के लक्ष्ण दिखते ही पशु चिकित्सक को सूचना दें।
प्रभावित पशु को अन्य पशुओं से अलग रखें।
रोग से पीड़ित पशु की आवाजाही रोक दें।
कीट व मच्छर से पशु को बचा कर रखें।
बीमार पशु की देखभाल करने वाला व्यक्ति अन्य पशुओं से दूर रहे।

लंपी रोग से पशुओं को बचाने के लिए गांव-गांव जागरूकता व निगरानी के लिए टीम का गठन किया गया है। जनपद में लंपी रोग से पीड़ित 376 पशु सामने आ चुके हैं। जिनका उपचार जारी है। अच्छी देखभाल के कारण 46 पशु ठीक हो चुके हैं और अन्य की स्थिति में भी सुधार है। एक-दो दिन में वैक्सीन भी प्राप्त हो जाएगी और टीकाकरण अभियान शुरू कर दिया जाएगा।

डा. अखिलेश गर्ग, सीवीओ मवाना में चार और गोवंशी रोग ग्रस्त मवाना
पशु चिकित्सालय क्षेत्र में चार और गोवंशी लंपी रोग की चपेट में आ गए। चिकित्सा केंद्र के आंकड़ों के मुताबिक अब इस रोग से ग्रस्त पशुओं की संख्या बढ़कर छह हो गई है। जिनका उपचार किया जा रहा है। मोहल्ला तिहाई निवासी मोहम्मद इलियास व चंद्रपाल पुत्र सुमरू तथा गांव कोहला निवासी हर्षपाल व पिलौना निवासी रविंद्र की गाय भी लंपी रोग से संक्रमित पाई गई हैं। जबकि मोहल्ला तिहाई में विजय अग्रवाल, चौहान चौक निवासी कंवरपाल व फलावदा के गांव मौजीपुरा में भी गाय रोग ग्रस्त मिल चुकी हैं। जबकि मोहल्ला खैरातअली में पशुपालक प्रकाश रस्तोगी की गाय में उक्त रोग के लक्षण मिले थे।

प्राचीन चिकित्सा पद्धति से करें गायों का बचाव गंगानगर
प्राचीन चिकित्सा पद्धति से गायों को लंपी वायरस से बचाया जा सकता है। आइआइएमटी विश्वविद्यालय के कुलाधिपति योगेश मोहन गुप्ता ने बताया कि आइआइएमटी विश्वविद्यालय ने अपनी गोशाला में प्राचीन चिकित्सा पद्धति से सुरक्षा प्रदान की है। दावा है कि इस पद्धति से काफी हद तक गोवंशी को बचाया जा सकता हैमेरठ। लंपी रोग से पीड़ित गोवंशियों की संख्या बढ़ने के साथ ही मेरठ मंडल को अति संवेदनशील घोषित कर दिया गया है। साथ ही विशेष निगरानी के लिए निर्देश जारी किए गए हैं। जिले में गुरुवार को लंपी रोग से पीड़ित पशुओं की संख्या बढ़कर 376 पर पहुंच गई, जबकि उपचार व देखरेख से 46 पशुओं ने रोग को हरा दिया। हालांकि जनपद में अभी लंपी रोग से पीड़ित किसी पशु की मौत नहीं हुई है।

गठित की गई रेस्पांस टीम को 24 घंटे निगरानी के लिए लगाया गया है। लंपी रोग से गोवंशी को बचाने के लिए हर स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं। रेस्पांस टीम का गठन कर विकास खंड स्तर पर गांव-गांव निगरानी शुरू की गई है। खंड विकास अधिकारी के साथ ग्राम प्रधानों को भी टीम में शामिल कर किसानों को रोग से बचाव के लिए जागरूक किया जा रहा है। मेरठ में गुरुवार को 101 नए ऐसे पशु सामने आए, जिनमें रोग के लक्ष्ण मिले। अब जिले में लंपी रोग से पीड़ित पशुओं की संख्या बढ़कर 376 पर पहुंच गई है। जबकि बेहतर देखरेख व उपचार के कारण 46 गोवंशी ठीक भी हो गए हैं। सीवीओ ने बताया कि मेरठ से भेजे गए सेंपल में दो सेंपल पाजिटिव मिले, जबकि एक सेंपल निगेटिव आया। अन्य सेंपल की जांच रिपोर्ट का इंतजार है।

सामने आए नए लक्षण
– पशु में तेज बुखार (41 डिग्री सेल्सियस तक)
– आंख व नाक से पानी गिरना। –
पूरे शरीर में कठोर व चपटी गांठ उभर आना।
– गाभिन गायों का गर्भपात हो जाना।
– दुधारू गायों में दूध देने में कमी आना।
– पशु को कमजोरी आना।

सर्तकता ही है बचाव –
रोग के लक्ष्ण दिखते ही पशु चिकित्सक को सूचना दें।
– प्रभावित पशु को अन्य पशुओं से अलग रखें।
रोग से पीड़ित पशु की आवाजाही रोक दें।
– कीट व मच्छर से पशु को बचा कर रखें।
– बीमार पशु की देखभाल करने वाला व्यक्ति अन्य पशुओं से दूर रहे।

लंपी रोग से पशुओं को बचाने के लिए गांव-गांव जागरूकता व निगरानी के लिए टीम का गठन किया गया है। जनपद में लंपी रोग से पीड़ित 376 पशु सामने आ चुके हैं। जिनका उपचार जारी है। अच्छी देखभाल के कारण 46 पशु ठीक हो चुके हैं और अन्य की स्थिति में भी सुधार है। एक-दो दिन में वैक्सीन भी प्राप्त हो जाएगी और टीकाकरण अभियान शुरू कर दिया जाएगा।

डा. अखिलेश गर्ग, सीवीओ मवाना में चार और गोवंशी रोग ग्रस्त मवाना
पशु चिकित्सालय क्षेत्र में चार और गोवंशी लंपी रोग की चपेट में आ गए। चिकित्सा केंद्र के आंकड़ों के मुताबिक अब इस रोग से ग्रस्त पशुओं की संख्या बढ़कर छह हो गई है। जिनका उपचार किया जा रहा है। मोहल्ला तिहाई निवासी मोहम्मद इलियास व चंद्रपाल पुत्र सुमरू तथा गांव कोहला निवासी हर्षपाल व पिलौना निवासी रविंद्र की गाय भी लंपी रोग से संक्रमित पाई गई हैं। जबकि मोहल्ला तिहाई में विजय अग्रवाल, चौहान चौक निवासी कंवरपाल व फलावदा के गांव मौजीपुरा में भी गाय रोग ग्रस्त मिल चुकी हैं। जबकि मोहल्ला खैरातअली में पशुपालक प्रकाश रस्तोगी की गाय में उक्त रोग के लक्षण मिले थे।

प्राचीन चिकित्सा पद्धति से करें गायों का बचाव गंगानगर
प्राचीन चिकित्सा पद्धति से गायों को लंपी वायरस से बचाया जा सकता है। आइआइएमटी विश्वविद्यालय के कुलाधिपति योगेश मोहन गुप्ता ने बताया कि आइआइएमटी विश्वविद्यालय ने अपनी गोशाला में प्राचीन चिकित्सा पद्धति से सुरक्षा प्रदान की है। दावा है कि इस पद्धति से काफी हद तक गोवंशी को बचाया जा सकता है।

उन्होंने बताया कि इसके लिए नीम के पत्तों व फिटकरी को पानी में उबालकर दिन में तीन बार गायों के शरीर पर स्प्रे करना है। गायों को दिन में तीन बार नीम के पत्तों का जूस पिलाना है। गायों को हरी घास खिलाई जाए और जहां जख्म हो, उस जगह नीम की छाल को घिसकर लगाने से राहत मिलेगी। यदि संभव हो तो रोगी गाय को नीम के पेड़ के नीचे रखा जाए।

। उन्होंने बताया कि इसके लिए नीम के पत्तों व फिटकरी को पानी में उबालकर दिन में तीन बार गायों के शरीर पर स्प्रे करना है। गायों को दिन में तीन बार नीम के पत्तों का जूस पिलाना है। गायों को हरी घास खिलाई जाए और जहां जख्म हो, उस जगह नीम की छाल को घिसकर लगाने से राहत मिलेगी। यदि संभव हो तो रोगी गाय को नीम के पेड़ के नीचे रखा जाए।