नई दिल्ली: लोगों की आमदनी क्या बढ़ी, उनके खाने-पीने की आदतें बदल गईं। अब शहरों को छोड़िए, गांव-गांव में जंक फूड आसानी से मिलने लगा है। रही-सही कसर स्विगी और जोमैटो जैसी कंपनियों ने पूरी कर दी है। इससे देश के अधिकतर इलाकों में भरपूर फूड डिलीवरी हो रही है। इससे लोगों को सुस्वादु भोजन तो मिल रहा है, लेकिन इसका असर कहीं और भी दिखा है। अभी एक सर्वे की रिपोर्ट आई है कि हर 10 में से 7 व्यक्ति पाचन की समस्या से पीड़ित हैं। जिनका पेट खराब रहता है, उन्हें कुछ और परेशानी होती है। जिनमें पेट की समस्‍या देखी गई, उनमें मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य की कुछ समस्‍याएं देखी गईं। जैसे कि चिंता की अधिकता, खराब स्‍मृति और बहुत जल्दी मूड बदलना। यह सर्वे फार्म फ्रेश टू होम ब्रांड कंट्री डिलाइट ने इंडियन डाइटेटिक एसोसिएशन, मुंबई के साथ मिल कर किया है।

इस सर्वे की रिपोर्ट से पता चला है कि शहरों में हर 10 में से 7 लोगों को पाचन संबंधी या पेट की समस्‍या है। 59% लोग साप्‍ताहिक और 12% लोग दैनिक आधार पर पेट खराब रहने की शिकायत करते हैं। ज्‍यादातर लोगों का (80%) का मानना है कि पाचन/पेट के स्‍वास्‍थ्‍य की समस्‍याएं जीवनशैली से जुड़ी लंबे समय की बीमारियां बन सकती हैं। दिलचस्‍प यह है कि 60% से ज्‍यादा ग्राहकों ने अपने आहार में बदलाव किया है, ताकि पाचन संबंधी और जीवनशैली की बीमारियों से बचा जा सके।

इस हेल्‍थ सर्वे से पता चला है कि खाने पीने की कुछ आदतों से पेट खराब हो सकता है। करीब 63% लोगों ने कहा कि वे हर हफ्ते जंक या प्रोसेस्‍ड या पैकेज्‍ड फूड खाते हैं और उनमें से 68% लोगों को पेट की समस्‍याएं हुई हैं। 66% लोगों का मानना है कि फास्‍ट/जंक फूड या केमिकल प्रोसेस वाले फूड पाचन सम्‍बंधी या पेट की समस्‍याओं के दोषी हैं। जिस दिन उन्हें इससे परहेज किया, उस दिन पेट की कम समस्या हुई।

सर्वे में शामिल लोगों ने स्वीकार किया पेट और दिमाग का कुछ तो संबंध है। इस मामले में 59% ग्राहक, जो हर हफ्ते पाचन/पेट की समस्‍याओं से पीड़ित होते हैं, को मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य की चुनौतियां भी मिली हैं। इन्हें किसी बात की ज्यादा चिंता होती है। इनकी स्मरण शक्ति कम हो रही है। कोई भी बात जल्दी भूल जा रहे हैं। यही नहीं, इनका मूड भी पल पल बदलता है। लगता है कि इन्हें कोई काम करने के लिए ऊर्जा ही नहीं मिल रही है। लगता है शरीर से किसी ने एनर्जी चूस लिया है। यह संख्‍या वैसे लोगों से कहीं ज्‍यादा दिखी, जिन्हें अक्सर पाचन की समस्‍या रहती है।

इस सर्वे में शामिल लगभग 67% लोगों ने माना कि जीवनशैली को बदलने का लाभ दिखता है। जिन्होंने लाइफस्टाइल बदली, शारीरिक गतिविधि करना शुरू किया और खान-पान की आदतें बदलीं, उन्हें पाचन संबंधी कम दिक्कतें हुईं। जवाब देने वाले दस में से चार लोगों का मानना है कि केमिकल से मुक्‍त और ताजी चीजें खाने से पाचन संबंधी या पेट के स्‍वास्‍थ्‍य की समस्‍याओं को रोकने में मदद मिल सकती है। इसलिये अब 10 में से 6 लोग अपने दैनिक आहार में केमिकल से मुक्‍त चीजें तलाशते हैं।

इस रिपोर्ट का कहना है कि पाचन/पेट के स्‍वास्‍थ्‍य की समस्‍याएं आज के शहरी भारतीयों की एक बड़ी चिंता के रूप में उभरी है। पेट के स्‍वास्‍थ्‍य को खराब करने वाले जंक/प्रोसेस्‍ड/पैकेज्‍ड फूड को तनाव/चिंता के लिये भी जिम्‍मेदार माना जाता है। इसका प्रमाण भी है कि पेट और दिमाग के बीच मजबूत सम्‍बंध होता है और पाचन/पेट के स्‍वास्‍थ्‍य की समस्‍याएं कई असंचारी रोगों को जन्म दे सकती हैं। इनमें मोटापा, मधुमेह, उच्‍च रक्‍तचाप और हृदय रोग शामिल है। मिलावटी खाद्य पदार्थ से तो कैंसर तक होने का खतरा रहता है।

अध्‍ययन से खुलासा हुआ है कि आधुनिक जीवनशैली से लोगों में तनाव बढ़ा है। जिनकी चिंता बढ़ी, उन्हें नींद की भी दिक्कत हुई। मतलब कि उन्हें गाढ़ी नींद नहीं आती है। रात में सोते वक्त देर से नींद आना, सो भी गए तो किसी बात पर नींद खुल जाना, फिर देर तक नींद नहीं आाना सामान्य लक्षण देखे गए। इस सर्वे में जवाब देने वाले लोगों में से आधे से ज्‍यादा लोगों को यह समस्‍याएं नियमित तौर पर रही है। खासकर महिलाओं को सेहत की कई समस्‍याएं हो रही हैं, जैसे कि ऊर्जा की कमी, मूड बदलना, बोर होना और चिंता।

ऊर्जा की कमी महिलाओं की सबसे आम समस्‍या के रूप में सामने आई। जवाब देने वाली महिलाओं में से 41% ने इसका नियमित रूप से अनुभव होने की बात कही है। मूड बदलना भी एक बड़ी समस्‍या है और 40% महिलाओं ने इसका नियमित अनुभव होने की बात कही है। बोर होना एक अन्‍य आम समस्‍या है और 39% महिलाओं ने इसे माना है, जिसके बाद चिंता का नंबर आता है, जिसे नियमित रूप से अनुभव करने की बात 34% महिलाओं ने कही है।

इसके तहत देश के तीन शहरों में एक सर्वे किया गया। यह सर्वे में शहरी भारतीयों के पाचन सम्‍बंधी स्‍वास्‍थ्‍य को समझने के लिए सवाल पूछे गए थे। ताकि पेट के स्‍वास्‍थ्‍य से जुड़ीं बीमारियों पर उनकी धारणा को जाना जा सके। YouGov के इंडिया पैनल का इस्‍तेमाल कर ‘गट हेल्‍थ सर्वे’ ‘Gut Health Survey’ ऑनलाइन किया गया था। इसमें दिल्‍ली एनसीआर, मुंबई और बेंगलुरु के 2017 लोगों से जवाब लिये गये। यह लोग 25 से 50 वर्ष तक के थे और इनमें 50% पुरूष तथा 50% महिलाएं थीं।