इस्लामाबाद: पाकिस्तान और अफगानिस्तान के रिश्ते में बीते कुछ समय से तनातनी देखी जा रही है। इसकी वजह TTP (तहरीके तालिबान पाकिस्तान) की ओर से पाक सुरक्षा बलों पर किए गए हमले हैं। अफगानिस्तान की सीमा से लगते पाकिस्तान के बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वाह में बीते दो साल में आतंकी हमले बढ़े हैं। पाकिस्तानी आर्मी और पुलिस को यहां लगातार निशाना बनाया जा रहा है। पाकिस्तान का कहना है कि TTP के लोग अफगानिस्तान की जमीन पर पनाह पा रहे हैं और काबुल की सत्ता पर काबिज तालिबान उनपर सख्ती नहीं कर रहा है। यह तनाव हाल ही में तब चरम पर पहुंच गया, जब पाकिस्तानी आर्मी ने अफगानिस्तान में टीटीपी के कथित आतंकी ठिकानों पर हवाई हमले किए। इस पर अफगान तलिबान भड़क गया और जवाबी कार्रवाई की धमकी दी।

पाकिस्तानी न्यूज वेबसाइट जियो न्यूज की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2023 और 2024 में पाकिस्तान में सीमा पार से होने वाले आतंकवाद में वृद्धि देखी गई। इसने इस्लामाबाद और काबुल के रिश्तों को तनावपूर्ण बना दिया। इस समस्या की जड़ें 2021 में अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी से जुड़ी हैं। उस समय पाकिस्तान ने काबुल में तालिबान की वापसी पर खुशी जताई थी। पाकिस्तान को लगा था कि तालिबान की वापसी का मतलब पश्चिमी सीमा की सुरक्षा है लेकिन इसका ठीक उल्टा हुआ है। ऐसे में एक्सपर्ट का मानना है कि पाकिस्तान अफगान तालिबान को मदद करके खुद ही फंस गया है।

रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तानी अधिकारियों ने टीटीपी को रोकने के लिए कई उपाय किए। इनमें बातचीत शुरू करना, दोनों देशों के बीच सीमा पर बाड़ लगाना और अफगान सरकार पर आतंकवादी समूह को समर्थन ना देने का दबाव डालना शामिल था। पाकिस्तान ने पांच लाख से ज्यादा अफगान शरणार्थियों को भी निकाल दिया लेकिन इससे बहुत फायदा नहीं मिला। पाकिस्तान के लिए अफगानिस्तान सीमा मुश्किल का सबब बनी हुई है।

पाकिस्तान को वर्षों सालों तक अफगान तालिबान के संरक्षक के रूप में देखा जाता था, जो पहली बार 1996 में काबुल की सत्ता पर काबिज हुआ था। उस वक्त इस्लामाबाद एक अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन अभियान का हिस्सा बना, जिसे सोवियत संघ के अफगानिस्तान पर आक्रमण का मुकाबला करने के लिए बनाया गया था। ऐसे में जब 2021 में अफगान तालिबान सत्ता में आया तो इस्लामाबाद को उम्मीद थी कि नया निजाम टीटीपी पर सख्ती दिखाएगा।

तालिबान की अफगानिस्तान में वापसी के बाद पाकिस्तान में आतंकी हमले बढ़ गए। साल 2023 पाकिस्तान के इतिहास के सबसे खूनी वर्षों में से एक बन गया। देश भर में 650 से अधिक हमले हुए, जिनमें 1,000 से ज्यादा लोग मारे गए। टीटीपी और फितना अल-ख्वारिज जैसे संगठनों ने इन हमलं का जिम्मेदारी ली।। पूर्व सीनेटर मुशाहिद हुसैन सैयद ने जियोटीवी से कहा, पाकिस्तान की अफगान नीति विफल रही है। यह नीति पूरी तरह से गलत धारणाओं पर आधारित थी।

अफगानिस्तान नीति ने कई वर्षों तक बुरे परिणाम दिए। मुझे लगता है कि यह धारणा तालिबान पाकिस्तान की मदद करने के लिए तैयार रहेगा, गलत थी। पाक ने बड़ी संख्या में अफगान शरणार्थियों को निकाला लेकिन जब आप मानवीय मुद्दों को राजनीति और राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों में घसीटते हैं तो इससे कुछ नई चिंताएं पैदा हो जाती हैं।’

पाकिस्तान के सीनियर पत्रकार जियाउर्रहमान कहते हैं, ‘अफगान तालिबान अकेले इसके लिए जिम्मेदार नहीं है। अमेरिका ने पहले काबुल में हथियार छोड़े और अब तालिबान TTP को इन हथियारों तक पहुंच दे रहा है।’ रहमान का कहना है कि पाकिस्तान को अंतर्राष्ट्रीय भागीदारों के साथ जुड़ना चाहिए और क्षेत्रीय ताकतों जैसे चीन, रूस और मध्य एशियाई राज्यों के साथ अपनी भागीदारी को मज़बूत करना चाहिए ताकि TTP पर लगाम लगाने के लिए अफगान तालिबान पर सामूहिक दबाव डाला जा सके।

कुगेलमैन का मानना है कि ना तो तालिबान और न ही पाकिस्तान सरकार युद्ध का ख़र्च उठा सकती है। ऐसे में दोनों पक्षों को बेहतर समझ पैदा करनी होगी। दोनों पक्ष कोशिश करें तो संबंध सुधरेंगे और दोनों देश सामान्यीकरण की ओर बढ़ सकते हैं। हालांकि फिलहाल ये बात बहुत साफ है कि पाकिस्तान की अफगानिस्तान नीति और तालिबान को मदद करना भारी पड़ा है।