नई दिल्ली. भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन तोड़ कर जीडीयू ने आरजेडी के साथ मिलकर बिहार में नई सरकार बनाई। सरकार बनने के साथ ही चर्चा यह शुरू हो गई थी कि तेजस्वी यादव को उपमुख्यमंत्री के साथ गृह मंत्रालय जैसा महत्वपूर्ण विभाग मिलेगा। जब मंगलवार को मंत्रालय का बंटवारा हुआ तो बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को गृह मंत्रालय जैसे महत्वपूर्ण विभाग नहीं दिया गया। बल्कि उनके बड़े भाई तेजप्रताप यादव के पुराने मंत्रालय को तेजस्वी को दे दिया गया।

राजनीतिक गलियारों में aचर्चा इस बात की हो रही है कि कहने को तो संख्या बल के हिसाब से आरजेडी के मंत्रियों की संख्या ज्यादा है, लेकिन उनको दिए गए मंत्रालय उतने महत्वपूर्ण नहीं हैं। ऐसे में अब बिहार से लेकर दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में चर्चा है क्या गठबंधन की सरकार मंत्रिमंडल के बंटवारे से खुश होकर पूरा कार्यकाल करेगी।

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव और पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव को पिछली कैबिनेट की तुलना में इस बार उतना महत्वपूर्ण मंत्रालय नहीं मिला है। पिछली बार तेज प्रताप के पास स्वास्थ्य मंत्रालय था, तो इस बार यह मंत्रालय उनके भाई और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को यह मंत्रालय दे दिया गया है।

राजनीतिक गलियारों में चर्चा इस बात की हो रही थी कि न सिर्फ तेजस्वी यादव को गृह मंत्रालय जैसे महत्वपूर्ण विभाग मिलेगा, बल्कि तेज प्रताप यादव को भी स्वास्थ्य मंत्रालय या परिवहन जैसा महत्वपूर्ण मंत्रालय मिलेगा। लेकिन जब मंत्रालय का बंटवारा हुआ तो इनमें से कुछ भी पूर्वानुमान के मुताबिक नहीं था।

फिलहाल जेडीयू और आरजेडी के गठबंधन वाली सरकार में आरजेडी को पर्यावरण, न्याय, आपदा प्रबंधन और राजस्व भूमि सुधार जैसे विभाग मिले हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि जिस पार्टी में इतने पूर्व मुख्यमंत्री रहे हों वहां ऐसे मंत्रालयों के बंटवारे से निश्चित तौर पर अंदरूनी चर्चाएं तो होंगी ही। बिहार के वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषण बृजमोहन सिंह कहते हैं कि दरअसल बिहार में हुआ जेडीयू और आरजेडी का गठबंधन किसी तरह की सैद्धांतिक सहमति के आधार पर नहीं है। वह कहते हैं चूंकि एक बड़े राजनैतिक घटनाक्रम के चलते जेडीयू को भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन तोड़ना था और सरकार चलानी थी। इसलिए जेडीयू ने आरजेडी समेत तमाम विपक्षी दलों के साथ मिलकर वहां पर सरकार तो बना ली है, लेकिन अब तमाम तरह के राजनीतिक पेच फंस रहे हैं।

बृजमोहन सिंह का कहना है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था के मुताबिक अगर कोई भी सरकार अपना कार्यकाल पूरा करती है तो निश्चित तौर पर उसका लाभ प्रदेश और देश की जनता को मिलता है। ऐसे में बिहार की जनता की भलाई के लिए पांच साल तक सरकार का चलना एक बेहतरी का संकेत तो है लेकिन उनका कहना है यह सरकार अपना पांच साल का पूरा कार्यकाल कर पाएगी यह थोड़ा मुश्किल दिख रहा है।

हालांकि, बिहार में हुए मंत्रिमंडल गठन में जेडीयू और आरजेडी समेत शामिल सभी घटक दलों ने जातिगत समीकरणों को बेहतर तरीके से साधा है। ज्यादा संख्या बलों के आधार पर मंत्रिमंडल में आरजेडी के 16 विधायकों को मंत्री बनाया गया है, जबकि जेडीयू के 11 विधायक मंत्री बने हैं। इसमें दो कांग्रेस के, एक हम के कोटे से और एक निर्दलीय विधायक को भी मंत्री पद से नवाजा गया है। बिहार के राजनीतिक जानकार और वरिष्ठ पत्रकार सुमित कुमार कहते हैं कि मंत्रिमंडल विस्तार में एमवाई समीकरण पर नीतीश सरकार ने बड़ा फोकस किया है। वह कहते हैं कि सात यादव और पांच मुस्लिम विधायकों को मंत्री बनाकर मुस्लिम यादव गठजोड़ का स्पष्ट संकेत मंत्रिमंडल विस्तार के माध्यम से दिया गया है।

सुमित कहते हैं कि आरजेडी के विधायकों को जो मंत्रालय मिले हैं वह इतने कमजोर नहीं है जितने की बताए जा रहे हैं। उनका कहना है कि यह जरूर चर्चा का विषय हो सकता है कि तेजस्वी यादव को गृह मंत्रालय क्यों नहीं मिला। लेकिन जो दूसरे मंत्रालय उनके विधायकों को मिले हैं वह कमजोर नहीं है। सुमित कहते हैं कि आरजेडी के हिस्से में शिक्षा पर्यटन, उद्योग, सहकारिता, और पिछड़ा वर्ग समेत गन्ना उद्योग जैसे महत्वपूर्ण विभाग भी मिले हैं।